Wednesday 17 April 2019

मंन्त्र संग्रह - 24 देवताओं के 24गायत्री मंन्त्र सहित*

📖🌺 *मंन्त्र संग्रह - 24 देवताओं के 24 गायत्री मंन्त्र सहित* 🌺📖

यह लेख यज्ञ पुरोहितों के लिए मंन्त्र की गहरी समझ विकसित करने, शब्द संरचना और संस्कृत-हिंदी अर्थ के साथ लिखा गया है। जिससे यज्ञ के दौरान लोगों की जिज्ञासा शांत कर सकें।।

मंन्त्र यदि शरीर हैं तो श्रद्धा-विश्वास युक्त भावना उसका प्राण है। कितना भी कमजोर मंन्त्र हो यदि दृढ़ श्रद्धा-विश्वास युक्त भावना से जपा जाए तो फ़लित होगा। कितना भी श्रेष्ठ मंन्त्र हो यदि बिना श्रद्धा-अविश्वास युक्त बिना भावना के जपा जाएगा।वो निष्प्राण और अप्रभावी होगा।

सोने पर सुहागा तब होगा, शक्ति भण्डार तब मिलेगा जब शक्तिशाली मंन्त्र पूर्ण श्रद्धा-विश्वास युक्त भावना से जपा जाएगा।
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👉🏼 *गायत्री मंत्र* - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*

भावार्थ:- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

👉🏼 *महामृत्युंजय मंत्र* - *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।*
*उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*

भावार्थ - हे त्रिनेत्रधारी महादेव, आपकी कृपा से हम भी त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं, दो नेत्रों से बाह्य दृष्टि विकसित करें और  तीसरे नेत्र से विवेकदृष्टि/अन्तः दृष्टि विकसित करें। त्रिगुणात्मक सृष्टि के प्रति गहरी समझ विकसित करें, हे महादेव आपकी कृपा से जीवन हमारा मधुर और परिपूर्णता को पोषित करता हुआ और वृद्धि करता हुआ हो। ककड़ी की तरह, एक फल की तरह हम मृत्यु के समय इसके तने रूपी शरीर से अलग ("मुक्त") हों, और आत्मता की अमरता और शरीर की नश्वरता का हमें सदा भान रहे। मृत्यु से अमरत्व की ओर गमन करें।

👉🏼 *महाकाली बीज मंन्त्र* -
ॐ भूर्भुवः स्वः  क्लीं क्लीं क्लीं  तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् क्लीं क्लीं क्लीं ॐ

👉🏼 *प्रखर प्रज्ञा श्री सद्गुरु मंन्त्र*-
ॐ प्रखरप्रज्ञाय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नो श्रीराम: प्रचोदयात्।
👉🏼 *सजल श्रद्धा माँ भगवती मंन्त्र*-
ॐ सजलश्रद्धाय विद्महे महाशक्तयै धीमहि। तन्नो भगवती प्रचोदयात्।

जिस देवता की जो गायत्री है उसका दशांश जप गायत्री मन्त्र साधना के साथ करना चाहिए। देवताओं की गायत्रियां वेदमाता गायत्री की छोटी-छोटी शाखाएं है, जो तभी तक हरी-भरी रहती हैं, जब तक वे मूलवृक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं। वृक्ष से अलग कट जाने पर शाखा निष्प्राण हो जाती है, उसी प्रकार अकेले देव गायत्री भी निष्प्राण होती है, उसका जप महागायत्री (गायत्री मन्त्र) के साथ ही करना चाहिए।

चौबीस देवताओं के गायत्री मन्त्र
१. *गणेश गायत्री*—ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।

२. *नृसिंह गायत्री*—ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्णदंष्ट्राय धीमहि। तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्।

३. *विष्णु गायत्री*—ॐ त्रैलोक्यमोहनाय विद्महे कामदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।

४. *शिव गायत्री*—ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।

या

ॐ पञ्चवक्तत्राय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।


५. *कृष्ण गायत्री*—ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।

६. *राधा गायत्री*–ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि। तन्नो राधा प्रचोदयात्।

७. *लक्ष्मी गायत्री*–ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे  विष्णुप्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।

८. *अग्नि गायत्री*–ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि। तन्नो अग्नि: प्रचोदयात्।

९. *इन्द्र गायत्री*–ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि। तन्नो इन्द्र: प्रचोदयात्।

१०. *सरस्वती गायत्री*–ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।

११. *दुर्गा गायत्री*–ॐ गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।

१२. *हनुमान गायत्री*–ॐ अांजनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि।  तन्नो मारुति: प्रचोदयात्।

१३. *पृथ्वी गायत्री*–ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे सहस्त्रमूत्यै धीमहि। तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।

१४. *सूर्य गायत्री*–ॐ आदित्याय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।

या

*सूर्य गायत्री*–ॐ भाष्कराये विद्महे दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।


१५. *राम गायत्री*–ॐ दशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि। तन्नो राम: प्रचोदयात्।

१६. *सीता गायत्री*–ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि। तन्नो सीता प्रचोदयात्।

१७. *चन्द्र गायत्री*–ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।

१८. *यम गायत्री*–ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नो यम: प्रचोदयात्।

१९. *ब्रह्मा गायत्री*–ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारुढ़ाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

२०. *वरुण गायत्री*–ॐ जलबिम्वाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि। तन्नो वरुण: प्रचोदयात्।

२१. *नारायण गायत्री*–ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो नारायण: प्रचोदयात्।

२२. *हयग्रीव गायत्री*–ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि। तन्नो हयग्रीव: प्रचोदयात्।

२३. *हंस गायत्री*–ॐ परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि। तन्नो हंस: प्रचोदयात्।

२४. *तुलसी गायत्री*–ॐ श्रीतुलस्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।

25 - *गुरुदेव गायत्री* - ॐ प्रखरप्रज्ञाय विद्महे, महाकालाय धीमहि। तन्नो श्रीराम: प्रचोदयात्।

26- *माता वंदनीया गायत्री* - ॐ सजलश्रद्धाय विद्महे, महाशक्तयै धीमहि। तन्नो माताभगवती प्रचोदयात् ।

गायत्री साधना का प्रभाव तत्काल होता है जिससे साधक को आत्मबल प्राप्त होता है और मानसिक कष्ट में तुरन्त शान्ति मिलती है। इस महामन्त्र के प्रभाव से आत्मा में सतोगुण बढ़ता है।
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👉🏼 *रहस्य* - देवताओं के गायत्री मंत्र बनाने के लिए सम्बन्धित देवता के दो या तीन नाम लिए जाते हैं। *उदाहरण विष्णु जी के नाम* - नारायण, वासुदेवाय, विष्णु

अब इसे क्रमशः ॐ, विद्महे, धीमहि, तन्नो, प्रचोदयात के बीच मे जोड़ा जाएगा।

ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि, तन्नो *नारायण:* प्रचोदयात

या

ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि, तन्नो *विष्णु:* प्रचोदयात

👉🏼 *ॐ* - सर्वशक्तिमान कण कण में व्यापत परमात्मा
👉🏼 *विद्महे(विद + महे)* - विद्  अर्थात जानते हैं व उनकी उपस्थिति मानते हैं।
👉🏼 *धीमहि(धी + महि)* - धी - अर्थात बुद्धि, मन । महि अर्थात ध्यान। तो अर्थ हुआ हम उनका मन में ध्यान करते है, बुद्धि में आह्वाहन करते हैं।
👉🏼 *तन्नो* - वह हमारे लिए
👉🏼 *प्रचोदयात* - प्रकाशित करें, प्रेरणा दें, बुद्धि को प्रेरित करें।

*नारायण गायत्री मंत्र का अर्थ हुआ* - हम नारायण को सर्वशक्तिमान जानते और मानते हैं। ऐसे सर्वशक्तिमान नारायण वासुदेव का हम मन में ध्यान करते हैं। नारायण हमारी बुद्धि को प्रेरणा दें और सन्मार्ग को बढ़ाने हेतु उसका पथ प्रदर्शन करें।

ऐसे ही समस्त देवताओं के मन्त्रों का अर्थ होगा।

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👉🏼 *बीज मंन्त्र* - जैसा की इसके नाम से स्पष्ट है कि यह बड़े मंन्त्र का बीज (सूक्ष्म) स्वरूप है। यदि खाना हो तो हम सेव का फल खरीद कर खाते हैं, लेक़िन यदि खेती करनी हो तो हम बीज लेकर आएंगे और उसे बोएंगे।

इसी तरह नित्य साधना हेतु, मनोकामना और कृपा प्रप्ति के लिए मंन्त्र जपे जातें हैं। लेक़िन यदि सम्बन्धित देवता के देवत्व को स्वयं में एकाकार करना हो तो उनके बीज मंन्त्र की जरूरत पड़ती है। इनके मंन्त्र जप में सावधानी खेती की तरह बरतनी पड़ती है। निश्चित समय औऱ संख्या में अनुष्ठान करने पर ही इनका फल मिलता है। बीज बिना मिट्टी और अन्य सहायता के पनप नहीं सकता। इसी तरह बीज मंन्त्र किसी मंन्त्र की सहायता से ही जपे जा सकते हैं। बीज का वही अर्थ है जो उस देवता का है जिस देवता का बीज मंन्त्र है।

उदाहरण -
*माँ महाकाली का बीज मंत्र* :-
जीवन से सभी भय , ऊपरी बाधाओं , शत्रुओं के छूटकारा दिलाने में माँ काली के बीज मंत्र द्वारा उनकी आराधना विशेष रूप से लाभ प्रदान करने वाली है | माँ काली का बीज मंत्र है : ” क्लीं ” |

*उदाहरण* - ॐ भूर्भुवः स्वः  *क्लीं क्लीं क्लीं*  तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् *क्लीं क्लीं क्लीं* ॐ

👉🏼 *देवी लक्ष्मी का बीज मंत्र* :-
देवी लक्ष्मी को स्वाभाव से चंचल माना गया है इसलिए वे अधिक समय के लिए एक स्थान पर नहीं रूकती | घर में धन-सम्पति की वृद्धि हेतु माँ लक्ष्मी के इस बीज मंत्र द्वारा आराधना से लाभ अवश्य प्राप्त होता है | देवी लक्ष्मी का बीज मंत्र है : ” श्रीं ”  |

*उदाहरण* - ॐ भूर्भुवः स्वः *श्रीं श्रीं  श्रीं*  तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् *श्रीं श्रीं  श्रीं* ॐ

👉🏼 *देवी सरस्वती का बीज मंत्र* : –
माँ सरस्वती विद्या को देने वाली देवी है जिनका बीज मंत्र ” ऐं ” है | परीक्षा में सफलता के लिए व हर प्रकार के बौद्धिक कार्यों में सफलता हेतु माँ सरस्वती के इस बीज मंत्र/Beej Mantra का जप प्रभावी सिद्ध होता है |

उदाहरण - ॐ भूर्भुवः स्वः *ऐं ऐं ऐं*  तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् *ऐं ऐं ऐं* ॐ

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

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