Friday 27 November 2020

क्या भगवान हमें इस काल में मिल सकते हैं?

 क्या भगवान हमें इस काल में मिल सकते हैं?

जिस प्रकार जल में विद्युत है और दूध में छिपा घी है। वैसे ही हमारे अस्तित्व में घुला हुआ वह ईश्वर है। जल से विद्युत पाने के लिए एक विधिव्यवस्था से उपकरणों के उपयोग से पाया जा सकता है। दूध में छिपे घी को भी विधिव्यवस्था अपनाकर दूध से दही व दही को मथकर मक्खन और फिर मक्खन गर्म करके घी, या दूध की मलाई को डायरेक्ट प्रोसेस करके घी निकाला जा सकता है।


बीज यह पूँछे कि क्या मुझे पौधा मिल सकता है? तो उत्तर यही है कि भाई धरती मे बोने की प्रक्रिया से गुजरना होगा। स्वयं गलकर बीज से पौधा बनना पड़ेगा।


वेदों में बताई व उपनिषदों में बताई साधना पद्धतियों से स्वयं के अंतर्जगत में उतरकर भगवान को प्रत्येक काल में मिल सकते हैं।


इंटेलेक्चुअल आतंकी PK जैसी फिल्मों में कहते हैं कि भगवान कहाँ है? जल में विद्युत कहाँ है? दूध में घी कहाँ है? बीज में पौधा कहाँ है? दिखाओ, जिसे देखा नहीं उसे माने कैसे? यह आतंकी कप जैसी बुद्धि में सागर भरने की कोशिश करते हैं। आजकल की पाश्चात्य प्रेरित जनता को मूर्ख बनाते हैं।


हमें यह समझना होगा कि सृष्टि के नियम पर चलती है। जिस प्रकार जो उपकरण विद्युत सुचालक होगा उसमें ही विद्युत उतरेगी, वैसे ही जो भगवान से जुड़ने हेतु भगवान को स्वयं में धारण करने योग्य सरल सहज सेवाभावी बनेगा, उसी के अंदर ईश्वर की अनुभूति उसी मात्रा में उतरेगी। देवत्व स्वयं में जगायेंगे तो ही देवताओं से मिलने योग्य बनेंगे।

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