बेटे, भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक रिसर्चर ऋषि जानते थे कि हम सब उस विराट अस्तित्व से जुड़े हैं, व एक दूसरे में होने वाले सुख दुःख से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते।
जैसे जो बॉल आकाश में फेंकोगे वही लौटकर तुम तक आएगी। जो ध्वनि बोलेंगे वही प्रतिध्वनि लौटकर तुम तक आएगी। अच्छा करोगे तो तुम्हारे साथ भी अच्छा होगा, बुरा करोगे तो तुम्हारे साथ भी बुरा होगा।
जब हम परोपकार में दूसरे का कल्याण करते हैं तो वस्तुतः हम स्वयं का ही कल्याण कर रहे होते हैं। क्योंकि वह उपकार लौटकर किसी अन्य रूप में हम तक ही आता है।
उदाहरण -
1- बॉस ने बेवजह एम्प्लॉयी को डाँटा, एम्प्लॉयी ने वह गुस्सा बीबी पर निकाला। बीबी ने वह गुस्सा बच्चे पर निकाला। बच्चे ने वही गुस्सा रोड पर खड़े कुत्ते पर पत्थर फेंक कर निकाला। दर्द में परेशान कुत्ते ने एक बच्चे को काट लिया जो कि उसी बॉस का बच्चा था। उस बच्चे का दर्द देखकर बॉस बहुत व्यथित हुआ। उससे भी ज्यादा जितना उसका एम्प्लॉयी उसके डांटने पर हुआ था। व्याज सहित वह व्यथा बॉस तक पुनः पहुंच गई।
2- एक मजदूर ने देखा एक बच्चा खेलते हुए गिर गया, गाड़ी आ रही थी तो उस मजदूर ने उसे जल्दी से उठाया व सम्हाला व रोड के किनारे छोड़ दिया। बच्चे ने उसे धन्यवाद कहा, तभी उसके मन मे इंसानियत जगी व उसने एक बूढ़ी औरत का सामान उठाकर रोड के दूसरी तरह पहुँचाया। उस बूढ़ी औरत ने एक परेशान लड़की को सिक्के दिए जो उसे पब्लिक बूथ में फोन के लिए चाहिए था। उस लड़की ने एक लड़के के गिरे पर्स को उठाकर दिया। उस लड़के ने फिर कुछ पैसों से एक गरीब की मदद की, उस गरीब ने एक बूढ़े व्यक्ति का सामान उठाया व उसे फूल दिया। उस बूढ़े व्यक्ति ने एक वेटर की मदद की। उस वेटर ने एक परेशान मजदूर को देखा जो प्यासा था। उसने उसे पानी व बिस्किट दिया। यह वही मजदूर था जिसने लड़के की मदद की थी। जो मदद व परोपकार उसने किया था वह व्याज सहित उसके पास लौटकर आ गया।
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