पतिव्रता/पत्नीव्रता के भेदों का वर्णन / लक्षण -
पतिव्रता नारियाँ/पत्नीव्रत धारक पति के उत्तमा आदि भेद से चार प्रकार की बताये गयी है, जो जिनका स्मरण करनेवाले पुरुषो/स्त्रियों का सारा पाप हर लेते है | उत्तमा, मध्यमा, निकृष्टा और अतिनिकृष्टा – ये पतिव्रता/पत्नीव्रत के चार भेद है |
जिस स्त्री का मन सदा स्वप्न में भी अपने पति को ही देखता है, दूसरे किसी परपुरुष को नहीं, वह स्त्री उत्तमा या उत्तम श्रेणी की पतिव्रता कही गयी है | जिस पुरुष का मन सदा स्वप्न में भी अपने पत्नी को ही देखता है, दूसरे किसी परस्त्री को नहीं, वह पुरुष उत्तमा या उत्तम श्रेणी की पत्नीव्रत धारक कहा गया है |
जो स्त्री दूसरे पुरुष को उत्तम बुद्धि से पिता, भाई एवं पुत्र के समान देखती है, उसे मध्यम श्रेणी की पतिव्रता कहा गया है | जो पुरुष दूसरी स्त्री को उत्तम बुद्धि से माता से, बहन एवं पुत्री के समान देखती है, उसे मध्यम श्रेणी की पत्नी व्रत धारक कहा गया है |
जो मन से अपने धर्म का विचार करके व्यभिचार नहीं करती, सदाचार में ही स्थित रहती है, उसे निकृष्टा अथवा निम्नश्रेणी की पतिव्रता कहा गया है | जो मन से अपने धर्म का विचार करके व्यभिचार नहीं करता, सदाचार में ही स्थित रहता है, उसे निकृष्टा अथवा निम्नश्रेणी की पत्नीव्रत धारक कहा गया है |
जो पति व समाज के भय से तथा कुल में कलंक लगने के डर से व्यभिचार से बचने का प्रयत्न करती है, उसे पूर्वकाल के विद्वानों ने अतिनिकृष्टा अथवा निम्नतम कोटि की पतिव्रता बताया है | जो पत्नी व समाज के भय से तथा कुल में कलंक लगने के डर से व्यभिचार से बचने का प्रयत्न करता है, उसे पूर्वकाल के विद्वानों ने अतिनिकृष्टा अथवा निम्नतम कोटि की पत्नीव्रत धारक बताया है |
पतिव्रता स्त्री व पत्नीव्रत धारक पति देवता तुल्य होते हैं।
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