Friday, 20 November 2020

एक सच्ची कहानी से इसे समझें कि क्यों अमीर की तुलना में गरीब ज्यादा खुशी से जी लेते हैं:-

 एक सच्ची कहानी से इसे समझें कि क्यों अमीर की तुलना में गरीब ज्यादा खुशी से जी लेते हैं:-

एक सेठ जी को नींद नहीं आती थी बड़े बैचेन रहते थे तो हाथ में दूरबीन लेकर दूर देखते रहते थे। उनके विशाल भवन से कुछ दूरी पर एक परिवार रहता था, जो अत्यंत गरीब था। वो रूखी सुखी खाते व परिवार के साथ हंसी ठिठोली करते। सब चैन से सो जाते।

उस परिवार की ख़ुशी गरीबी में और खुद का कलह युक्त दुःखी परिवार अमीरी में भी समझ नहीं आया। उन्होंने मुनीम जी को बुलाया और पूँछा कि ऐसा क्यों? मेरे पास धन होने पर भी चैन की नींद नहीं, यह गरीब परिवार चैन से सोता है व हंसता मुस्कुराता रहता है।

मुनीम जी ने कहा, कि सेठ जी बुरा न माने। आप निन्यानबे के फेर में जीते हैं और यह फेर (बीमारी) उन गरीबो को नहीं हुई है। सेठ ने कहा तो उन तक यह बीमारी पहुंचाने को क्या करें?

मुनीम जी ने कहा 99 स्वर्ण मुद्रा दे दीजिए, कुछ दिनों में वह परिवार भी आपकी बीमारी से ग्रसित व दुःखी हो जाएगा। सेठ से 99 स्वर्ण मुद्रा लेकर उसे चुपचाप उस गरीब के घर डाल आया। पूरा परिवार खुशी से उछल पड़ा। सबने बार बार गिना लेकिन 100 में एक कम क्यों है समझ नहीं आया, पति ने पत्नी से कहा यदि हम मेहनत करें तो 99 मुहर को 100 में बदल सकते हैं। बस पूरा परिवार महीने भर मेहनत किया तो दो स्वर्ण मुहर कमा लिए। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा अब 100 से 1 ज्यादा अर्थात 101 स्वर्ण मुहर हो गए। अब पुनः पति, पत्नी व बच्चे सोचने लगे यदि हम 99 से 101 स्वर्ण मुहर तक पहुंच सकते हैं तो यदि हम और अधिक मेहनत करे तो 99 मोहर कमाकर इसे 200 तक कर सकते हैं। अब साथ ही उन्हें स्वर्ण मुद्रा के चोरी होने का डर सताने लगा। इस तरह वह परिवार 99 के फेर में पड़ गया, जब भी सेठ दूरबीन से उस परिवार को देखता तो उन्हें भी बेचैन व परेशान पाता। और अधिक अमीर बनने का लोभ अब उस परिवार के भीतर प्रवेश कर गया।

अतः जो परिवार अमीर हो या गरीब यदि वह निन्यानबे के फेर में पड़ेगा तो दुःखी रहेगा। दुःख का कारण अनियंत्रित इच्छाओं और वासनाओं का पूर्ण न होना ही है। 

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