प्रश्न - ब्रह्मसंध्या के आरंभिक पंचकोशों की क्रिया में 'अघमर्षण'....लिखा है...
यह 'अघमर्षण' क्या है?
उत्तर - अघमर्षण अर्थात चित्त का मैल उतारना व पापों से मुक्ति की प्रार्थना करना व पवित्र होने का भाव
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ऋग्वेद के दशम मण्डल में माधुच्छन्दस ऋषि के
इस अघमर्षण सूक्त का महत्व यह है कि सन्ध्या-
काल में प्राणायाम के बाद इसी सूक्त के विनियोग
का विधान है । इस सूक्त के मंत्रोच्चार के बाद ही
सूर्य को अर्घ्य देने की पात्रता बताई गई है। अघम-
र्षण का अर्थ ही है - पाप से निवृत्ति । मार्जन की
प्रक्रिया में इस सूक्त की ऋचाओं के विनियोग के
पीछे तथ्य यह है कि सृष्टि के आरम्भ को स्मरण
करना हमारी संस्कृति में अतिपावन माना गया है ।
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ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत।
ततो रात्र्यजायत तत: समुद्रो अर्णव:।।
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत।
अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी।।
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्।
दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्व:।।
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ऋग्वेद.10.190.1-3.
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