प्रश्न - आध्यात्मिक उत्कृष्टता(Spiritual Excellence) के साथ अच्छा व्यक्तित्व स्वयं में कैसे गढ़े? अच्छा इंसान कैसे बने?
उत्तर- जब हम स्वयं को परमात्मा का अभिन्न अंग मानकर उनके जैसे बनने (नर से नारायण में रूपांतरित होने) का सफ़र शुरु करते है। तब ही हम आध्यात्मिक कहलाते हैं।
परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी "मनुष्य में देवत्व का उदय व धरती पर स्वर्ग का अवतरण" को ही युगनिर्माण का आधार बताया है।
आध्यात्मिक उत्कृष्ट व श्रेष्ठ देवत्व युक्त व्यक्तित्व गढ़ने के 30 सूत्र:-
1- स्वयं से प्रश्न पूँछे - "मैं क्या हूँ?", "मैं कौन हूँ?" - शरीर या मन या आत्मा?
2- इस बात पर भरोसा रखें -"ईश्वर हमें देख रहा है"।
3- "मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है", अतः जो मैं हूँ , जिस परिस्थिति में हूँ, इसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूँ?
4- कुछ भी करने से पहले स्वयं से पूँछे - क्या इस कार्य से ईश्वर खुश होगा? अंतरात्मा की आवाज सुने।
5- नित्य ग़ायत्री मन्त्र जप, स्वाध्याय व ध्यान योग के माध्यम से आत्म ऊर्जा बढ़ाएं।
6-प्रत्येक क्षेत्र में जिम्मेदारी स्वीकार करें।
7- परमार्थ करें व औरों की परवाह करें।
8- स्वयं की जीत के साथ सबकी जीत हो इस बारे में सोचे व प्रयास करें।
9- बोलने से पहले विचार करे, सही व हितकर शब्दो का प्रयोग बोलते समय करें। ध्यान रखें मुंह से निकले शब्द वापस नहीं हो सकते।
10- प्रशंशा सबके सामने मग़र आलोचना एकांत में करें। आलोचना व शिकायत न ही करें तो अच्छा है।
11- मुस्कुराएं और दयालु बने। सड़ा सा मुंह न बनायें
12- दूसरे के साथ वैसा व्यवहार न करें, जैसा स्वयं के लिए पसन्द न हो। दुसरो के व्यवहार का सही अर्थ निकाले।
13-अच्छे श्रोता बने, ध्यान रखे कान दो और मुंह एक है। बोलने से अधिक सुनना है।
14- उत्साही बने, उत्साह दूसरे का भी बढ़ाते रहें।
15-दुसरो व स्वयं की प्रशंसा ईमानदारी व सच्चाई से करें।
16- प्रशंशा व चापलूसी में फर्क समझें, किसी के चापलूस न बने और स्वयं की चापलूसी करने वालो से दूरी बनाये।
17- यदि गलती हो तो स्वयं की गलती स्वीकारें व आगे बढ़ें।
18- तर्क करें मग़र तकरार न करें, मतभेद करें मग़र मनभेद न करें।
19- तर्क व बहस में अंतर समझे, बहस कभी न करें। तर्क तथ्य व प्रमाण सहित बात करें
20- किसी की पीठ पीछे बुराई न करें
21- जो वचन दें, वादा करें उसे निभाएं। वचनबद्ध बने।
22-दुसरो का एहसान माने, लेकिन दूसरे भी अहसानमंद आपके हों यह उम्मीद न करे
23- भरोसेमंद व वफादार बने
24- मन में किसी के लिए मैल न रखे, मन सदा पवित्र रखें
25- जो जैसा है उसे वैसा स्वीकारें, रिश्तों में किसी को नियंत्रित करने की मत सोचिए
26- वह बात न करें और न सुने, जिसमें किसी की भलाई न हो व केवल निंदा के उद्देश्य से की जा रही हो
27- आधे अधूरे व गलत ढंग से पेश किए सच से बचें व उस पर कमेंट न करें
28- योग: कर्मशु कौशलं, जो करें उसमें कुशल बने। हमारा परिचय हमारे कार्य से है मात्र कोरे शब्दों से नहीं।
29- विनम्र व विनयी बने, जो भी मिला है उसके लिए ईश्वर को आभार दें।
30- श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य बनाए और उसे निष्ठा से पाने में जुटे। दुसरो को समझने और ख्याल रखने वाला बने
💐श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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