वह ग्रामीण युवा आर्ट से ग्रेजुएट था,
मगर बेरोजगार था,
पढ़े लिखे होने का उसे अहंकार था,
बड़ी नौकरी की तलाश में था.....
कुछ पैसे लेकर वह गाँव से शहर आया,
स्वप्नों के ऊंचे ऊंचे पहाड़ बनाया,
मगर ज़मीनी हक़ीक़त ने,
उसे खूब रुलाया,
हिंदी भाषा में उसकी बोली ठीक न थी,
इंग्लिश भाषा बोलने में उसे कठिनाई बहोत थी,
वह जो जॉब चाहता था,
शहर के हिसाब से वह उसमें योग्य न था..
कई महीनों की जॉब तलाश में,
गांव से लाये सब पैसे खर्च हो गए,
उसके अरमानों और स्वप्नों के महल,
कुछ महीनों की जॉब सर्च में ही ढह गए..
पेट में जलती भूख की आग थी,
पर ठंडी चूल्हे की आग थी,
भूख जान ले रही थी,
एक मुट्ठी अनाज को तरस रही थी...
किस्मत को शायद उस पर तरस आया,
एक पांच रुपये का सिक्का,
उसे रोड पर मिला,
उसे लेकर चाय की टपरी पर आया,
पारले जी बिस्कुट पानी में भिगो के खाया....
सोचा रोज़ सिक्के रोड पर पड़े नहीं मिलेंगे,
मगर भूख के अंगारे पेट में रोज़ जलेंगे,
कुछ न कुछ तो अब करना होगा,
कुछ भी करके पेट भरना होगा...
लेबर चौक में खड़ा हो गया,
ईंटे ढोने का उसे काम मिल गया,
कमाई में से कुछ खाया कुछ बचाया,
कुछ महीनों की बचत के पैसों से,
उसने चाय की टपरी बनाया..
चाय की टपरी के साथ नाश्ते का जुगाड़ बैठाया,
चाय नाश्ते का काम खूब मन से चलाया,
काम बढ़ा तो कुछ नौकर रखे,
बिजनेस को बढ़ाने के कुछ और तरकीबें सोचे..
काम मांगने वाला ग्रामीण ग्रेजुएट,
आज रोजगार देने वाला बन गया,
जो एक समय भूख से व्याकुल था,
आज लोगों को खिलाने वाला बन गया..
कुछ वर्षों की बचत से उसने बड़ी दुकान खोला,
फ़िर बाद के कुछ वर्षों में कई दुकान खोला,
घर द्वार मकान सब बन गया,
अनवरत मेहनत से वह बड़ा सेठ बन गया..
🙏🏻श्वेता, DIYA
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