*युवाओं का आदर्श कौन हो? कैसा हो?*
यह महत्वपूर्ण प्रश्न आज युया, माता-पिता और समाज तीनों द्वारा उपेक्षित है। इसलिए वर्तमान समाज में इतनी उलझन और अस्तव्यस्तता है। युवा अपने भावी जीवन और अस्तित्व के बारे में जागरूक ही नहीं है।
भारतीय संस्कृति गुरुकुल परम्परा में ईष्ट निर्धारण करने को कहती थी, फ़िर उस ईष्ट को अपना भावी जीवन का आदर्श मानकर उसके जैसा बनने का और उसके गुण बालक में धारण करने हेतु माता-पिता और सद्गुरु मदद करते थे। घड़ी में रिमाइंडर की तरह उस ईष्ट की फ़ोटो आदर्शों की याद दिलाती थी क़ि लक्ष्य भूलना नहीं चाहिए। उन दिव्य गुणों को स्वयं में धारण करने हेतु उसका गायत्री मन्त्र जपते हुए ध्यान किया जाता था, स्वयं को उसी के अनुरूप साधा जाता था, और आराधना में उसी के जैसे गतिविधियों को अपनाया जाता था।
राम को ईष्ट चुना तो मर्यादित जीवन और असुरता के नाश हेतु संकल्पित जीवन होता था, यदि कृष्ण को चुना तो नीति पुरुष और धर्म रक्षण, शिव को चुना तो उदार और लोकसेवा जीवन लक्ष्य होता था, दुर्गा को चुना तो शक्ति सम्पन्न और दुष्टता का नाश, सरस्वती तो ज्ञानी बनना और समाज का मार्गदर्शन करना। इन्हीं ईष्ट की फ़ोटो रूम में भी लगाते थे क़ि सुबह उठते ही जीवन लक्ष्य और आदर्श याद रहे।
लेकिन आज युवाओं ने अंजाने में विकृत आदर्श चुन रखे हैं, उनके कमरे में देशी-विदेशी खिलाड़ी, फ़िल्म एक्टर और ऐक्ट्रेस की अश्लील बॉडी दिखाती इत्यादि की फ़ोटो रखते हैं, दिन भर फ़िल्मी गाने सुनते हुए उनका चिंतन करते हैं। उसी के जैसे कपड़े उसी के जैसे हाव भाव् व्यसन नशे की नकल करते हैं। चिंतन चरित्र सब प्रभावित होता है।
माता पिता इसी से खुश होते हैं क़ि पेट-प्रजनन हेतु पढ़ाई कर रहा है यही काफ़ी है। चरित्र निर्माण में तो आज किसी माता पिता का ध्यान ही नहीं। सब धन-वसीयत बनाने में लगे हैं सद्गुणों की विरासत बनाने का तो किसी को ध्यान ही नहीं है।
ऐसे विकृत आदर्श को चुनने पर विकृत युवा का चरित्र बनना तो स्वभाविक है।
जब किसी भी युवा के कमरे में जाईये और देखिये क़ि आसपास आपको देवी देवता, सद्गुरु युगऋषि, विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वत्ती, भगत सिंह, सुभाष इत्यादि की फ़ोटो नहीं दिखेगी। तो समझ लीजिये आदर्श इस युवा ने ग़लत चुना है तो जीवन डिस्टर्ब होना स्वभाविक है। यह विकृत दृष्टिकोण/Attitude का निर्माण करेगा।
ऐसे विकृत युवा विकृत परिवार और समाज का निर्माण करेंगे।
आदर्श समाज के निर्माण हेतु युवाओं द्वारा श्रेष्ठ आदर्श का चुनाव अत्यंत आवश्यक है जीवन की सफ़लता हेतु। व्यक्ति के चरित्र चिंतन व्यवहार का प्रभाव समाज पर सीधा पड़ता है।
बच्चों और युवाओं के सफ़ल जीवन हेतु सही आदर्श के चुनाव को माता पिता को सुनिश्चित करना चाहिए। युग सृजेताओं को इस हेतु जनसम्पर्क व्यापक स्तर पर करना होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
यह महत्वपूर्ण प्रश्न आज युया, माता-पिता और समाज तीनों द्वारा उपेक्षित है। इसलिए वर्तमान समाज में इतनी उलझन और अस्तव्यस्तता है। युवा अपने भावी जीवन और अस्तित्व के बारे में जागरूक ही नहीं है।
भारतीय संस्कृति गुरुकुल परम्परा में ईष्ट निर्धारण करने को कहती थी, फ़िर उस ईष्ट को अपना भावी जीवन का आदर्श मानकर उसके जैसा बनने का और उसके गुण बालक में धारण करने हेतु माता-पिता और सद्गुरु मदद करते थे। घड़ी में रिमाइंडर की तरह उस ईष्ट की फ़ोटो आदर्शों की याद दिलाती थी क़ि लक्ष्य भूलना नहीं चाहिए। उन दिव्य गुणों को स्वयं में धारण करने हेतु उसका गायत्री मन्त्र जपते हुए ध्यान किया जाता था, स्वयं को उसी के अनुरूप साधा जाता था, और आराधना में उसी के जैसे गतिविधियों को अपनाया जाता था।
राम को ईष्ट चुना तो मर्यादित जीवन और असुरता के नाश हेतु संकल्पित जीवन होता था, यदि कृष्ण को चुना तो नीति पुरुष और धर्म रक्षण, शिव को चुना तो उदार और लोकसेवा जीवन लक्ष्य होता था, दुर्गा को चुना तो शक्ति सम्पन्न और दुष्टता का नाश, सरस्वती तो ज्ञानी बनना और समाज का मार्गदर्शन करना। इन्हीं ईष्ट की फ़ोटो रूम में भी लगाते थे क़ि सुबह उठते ही जीवन लक्ष्य और आदर्श याद रहे।
लेकिन आज युवाओं ने अंजाने में विकृत आदर्श चुन रखे हैं, उनके कमरे में देशी-विदेशी खिलाड़ी, फ़िल्म एक्टर और ऐक्ट्रेस की अश्लील बॉडी दिखाती इत्यादि की फ़ोटो रखते हैं, दिन भर फ़िल्मी गाने सुनते हुए उनका चिंतन करते हैं। उसी के जैसे कपड़े उसी के जैसे हाव भाव् व्यसन नशे की नकल करते हैं। चिंतन चरित्र सब प्रभावित होता है।
माता पिता इसी से खुश होते हैं क़ि पेट-प्रजनन हेतु पढ़ाई कर रहा है यही काफ़ी है। चरित्र निर्माण में तो आज किसी माता पिता का ध्यान ही नहीं। सब धन-वसीयत बनाने में लगे हैं सद्गुणों की विरासत बनाने का तो किसी को ध्यान ही नहीं है।
ऐसे विकृत आदर्श को चुनने पर विकृत युवा का चरित्र बनना तो स्वभाविक है।
जब किसी भी युवा के कमरे में जाईये और देखिये क़ि आसपास आपको देवी देवता, सद्गुरु युगऋषि, विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वत्ती, भगत सिंह, सुभाष इत्यादि की फ़ोटो नहीं दिखेगी। तो समझ लीजिये आदर्श इस युवा ने ग़लत चुना है तो जीवन डिस्टर्ब होना स्वभाविक है। यह विकृत दृष्टिकोण/Attitude का निर्माण करेगा।
ऐसे विकृत युवा विकृत परिवार और समाज का निर्माण करेंगे।
आदर्श समाज के निर्माण हेतु युवाओं द्वारा श्रेष्ठ आदर्श का चुनाव अत्यंत आवश्यक है जीवन की सफ़लता हेतु। व्यक्ति के चरित्र चिंतन व्यवहार का प्रभाव समाज पर सीधा पड़ता है।
बच्चों और युवाओं के सफ़ल जीवन हेतु सही आदर्श के चुनाव को माता पिता को सुनिश्चित करना चाहिए। युग सृजेताओं को इस हेतु जनसम्पर्क व्यापक स्तर पर करना होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
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