Monday, 22 January 2018

नुक्कड़ नाटक - महिला शशक्तिकरण-असुरक्षित लड़कियां-कन्याभ्रूण हत्या

*नुक्कड़ नाटक - महिला शशक्तिकरण-असुरक्षित लड़कियां-कन्याभ्रूण हत्या*

(कुछ महिलाएं आपस में बात करती हुईं)

*सविता* - यह देश महिलाओं के लिए असुरक्षित हो गया, बढ़ते अपराध और रेप की घटनाओं से बड़ा डर लगता है।

*सुनीता* - सच कह रही हो, सरकार कुछ करती क्यों नहीं।

*मीना* - देखो बहन गुरुदेव कहते है , कि मनुष्य का विकृत चिंतन ही समस्त समस्याओं का कारण है।

*सविता*- वो तो ठीक है, लेकिन इसे ठीक कैसे करें?

*मीना* - एक प्रश्न पूंछू, यदि कोई मटका सही आकार का नहीं बना है? तो उसमें किसकी गलती है? मटके की या कुम्हार की?

*सविता* - कुम्हार की गलती है, क्यूंकि उसने उसके निर्माण में प्रॉपर सावधानी नहीं बरती।

*मीना* - बहन यही तो युग ऋषि कहते हैं, लड़के और लड़की दोंनो ही माँ के गर्भ से आते है।माता-पिता   कुम्हार हैं जो उनकी पर्सनालिटी-व्यक्तित्व गढ़ते हैं। फ़िर नेक्स्ट स्कूल टीचर और बच्चे के दोस्त उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव डालते हैं। इन सबकी भूल-चूक का परिणाम यह विकृत समाज है।

*सविता* - तो क्या सरकार कुछ नहीं कर सकती?

*मीना* - बहन सरकार वातावरण सुधार सकती है दण्ड व्यवस्था कठोर कर सकती है। लेकिन अपराध भाव मन में उपजे ही नहीं इसके लिए माता-पिता और स्कूल दोनो जगह विचारों की/मानसिकता गढ़ने की प्रोग्रामिंग करनी पड़ेगी।

*सविता* - लेकिन स्कूल ये जिम्मेदारी तो उठाना चाहेंगे नहीं, वो तो मान्यता प्राप्त कोर्स पढ़ाकर, मार्कशीट थमा कर पल्ला झाड़ लेते है। इंसान अच्छा बने या बुरा इसके लिए कोई ठोस कदम स्कूल में तो नहीं दिखता।

*मीना* - गर्भ से ही माता को पुंसवन सँस्कार के माध्यम से बच्चे के व्यक्तित्व को गढ़ने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। प्रत्येक जन्मदिवस पर जन्मदिवस सँस्कार में अपने दिए संस्कारों का अवलोकन कर लें। बच्चे को बचपन से ही जप और ध्यान से जोड़ दें, साधना-स्वाध्याय उसके जीवन का अनिवार्य अंग बना दें। घर में बलिवैश्व से अन्न द्वारा सँस्कार गढ़े।महा पुरुषों और वीरों की कहानियाँ सुनाकर लड़का हो या लड़की उनमें वीर रस भर दें। इस तरह पाले बच्चे चन्दन की तरह होंगे, इन पर सांसारिक विष असर नहीं करेगा।

*सविता* - बहन ये तो आपने बड़ी अच्छी बात बताई।

*मीना* - समाजसेवा हेतु बालसंस्कार शाला अपने घर चलाकर बच्चो और उनकी माताओं को जप-ध्यान-योग-प्राणायाम-स्वाध्याय से जोड़कर आसपास के वातावरण को अच्छा बनाये। अच्छे पड़ोसी मतलब सुरक्षित बच्चे।

*सविता* - जी दीदी सही कहा।

*मीना* - बच्चियों को लड़कों की तरह पलने, आगे बढ़ने, पढ़ने का अवसर दें।अपने बेटियों को आत्मरक्षा जरूर सिखाएं। आजकल  समाज मे लड़के भी सुरक्षित नहीं अतः उन्हें भी आत्म रक्षण सिखाएं।

दहेज़-प्रथा, ख़र्चीली शादी न हो , और लड़कियां समाज मे सुरक्षित हों , लड़के-लड़की दोनों एक दूसरे को सम्मान दें, एक दूसरे के पूरक बनें ऐसे सँस्कार जगे। तो कन्या भ्रूण हत्या कोई करवाएगा ही नहीं।

*सविता* - सही कहा दी, ये बताओ स्कूलों के लिए हम क्या करें?

*मीना* - आसपास के स्कूल में जाकर जन जागृति जगाएं, जैसे राजस्थान, मध्यप्रदेश और हरियाणा सरकार ने *अखण्डज्योति   पत्रिका, सुनसान के सहचर और गीता* स्कूल में पढ़ाना अनिवार्य किया है। लेकिन वो पढ़ाया जा रहा है या नहीं इसको सुनिश्चित करें। स्वाध्याय स्कूलों में होगा तो बदलाव आएगा।

*सविता* - धन्यवाद दी

*मीना* - युगऋषि कहते हैं हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा।हम बदलेंगे युग बदलेगा।

यदि हम सब अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें, स्कूलों में उपरोक्त पुस्तकों का स्वाध्याय हो, गली मोहल्ले में बाल सँस्कार शाला चले।तो धरती पर ही स्वर्ग सा सुंदर और सुरक्षित वातावरण बन जायेगा।

*सविता और सुनीता* - सही कहा दी आपने। हम कम से कम अपने आसपास तो लड़कियों के लिये सुरक्षित समाज बनाएंगे।

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