*अम्बर बरसे धरती भीजे, ये जाने सब कोय।*
*धरती बरसे अम्बर भीजे, बूझे बिरला कोय।।*
साधारण दृष्टिकोण से बादल बरसता है और पृथ्वी भीगती है, लेकिन वास्तव में यह भी सत्य है कि पृथ्वी बरसती है और अम्बर भी भीगता है। क्यूंकि धरती का जल ही सूर्य के ताप से वाष्प बनके बादल बनता है। धरती के ही वन-वृक्ष पुनः उन्हें आकर्षित करके वर्षा भी करवाते हैं।
कबीरदास जी कहते हैं, भगवान बादल है उनकी कृपा बरसते सब देखते हैं, उनकी कृपा से भक्तों को भीगते सब देखते हैं। लेकिन भक्त को तप से तपते और भक्ति और तप के वाष्प से भगवान को भीगते कोई कोई देख पाता है। भक्त के प्रेम-वन से भगवान को बरसने पर विवश होना होता है ये कोई कोई ही समझते हैं।
वास्तव में, भक्त की भक्ति से ही भगवान को शक्ति मिलती है, जब भक्त नहीं होगा तो भगवान कहाँ होगा। जितना बड़ा भक्त उसका उतना ही बड़ा भगवान। इसलिये तो युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा जी अपनी पुस्तक *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* में कहते हैं कि भक्त भगवान का पिता होता है। अपनी भक्ति से भगवान को जन्म देता है। मीरा की भक्ति ने पत्थर के कृष्ण में भगवान को सजीव किया, उस ईश्वरीय चेतना को स्वयं पर बरसने को विवश किया।
सीधा सा इसका दूसरा अर्थ यह है कि हमारे बुरे कर्म ही हमारे दुर्भाग्य/प्रारब्ध/रोग/शोक रूपी बादल का निर्माण करते हैं, अच्छे कर्म सौभाग्य/स्वास्थ्य/सुकून/आनन्द रूपी बादल बनाते है।
हम ही अपने अपने भाग्य के निर्माता हैं, जैसे पृथ्वी अपने बादल की निर्मात्री है। आज हम जो है जैसे भी है जिस प्रकार का स्वास्थ्य रखते है और जिस परिस्थिति में रह रहे हैं उसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार है। जड़ प्रकृति से सुख या दुःख हम अपने कर्मो से अपने पास बुलाते है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
*धरती बरसे अम्बर भीजे, बूझे बिरला कोय।।*
साधारण दृष्टिकोण से बादल बरसता है और पृथ्वी भीगती है, लेकिन वास्तव में यह भी सत्य है कि पृथ्वी बरसती है और अम्बर भी भीगता है। क्यूंकि धरती का जल ही सूर्य के ताप से वाष्प बनके बादल बनता है। धरती के ही वन-वृक्ष पुनः उन्हें आकर्षित करके वर्षा भी करवाते हैं।
कबीरदास जी कहते हैं, भगवान बादल है उनकी कृपा बरसते सब देखते हैं, उनकी कृपा से भक्तों को भीगते सब देखते हैं। लेकिन भक्त को तप से तपते और भक्ति और तप के वाष्प से भगवान को भीगते कोई कोई देख पाता है। भक्त के प्रेम-वन से भगवान को बरसने पर विवश होना होता है ये कोई कोई ही समझते हैं।
वास्तव में, भक्त की भक्ति से ही भगवान को शक्ति मिलती है, जब भक्त नहीं होगा तो भगवान कहाँ होगा। जितना बड़ा भक्त उसका उतना ही बड़ा भगवान। इसलिये तो युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा जी अपनी पुस्तक *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* में कहते हैं कि भक्त भगवान का पिता होता है। अपनी भक्ति से भगवान को जन्म देता है। मीरा की भक्ति ने पत्थर के कृष्ण में भगवान को सजीव किया, उस ईश्वरीय चेतना को स्वयं पर बरसने को विवश किया।
सीधा सा इसका दूसरा अर्थ यह है कि हमारे बुरे कर्म ही हमारे दुर्भाग्य/प्रारब्ध/रोग/शोक रूपी बादल का निर्माण करते हैं, अच्छे कर्म सौभाग्य/स्वास्थ्य/सुकून/आनन्द रूपी बादल बनाते है।
हम ही अपने अपने भाग्य के निर्माता हैं, जैसे पृथ्वी अपने बादल की निर्मात्री है। आज हम जो है जैसे भी है जिस प्रकार का स्वास्थ्य रखते है और जिस परिस्थिति में रह रहे हैं उसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार है। जड़ प्रकृति से सुख या दुःख हम अपने कर्मो से अपने पास बुलाते है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No, its about raising of kundalini from mooladhar(dharati) to sahsrar(ambar)..... After that icy coolness is felt on top of head and on hand i. E wetting in rain simily is given.....
ReplyDeleteOnly in sahaj yoga,,,, after realisation you will feel it....
ReplyDeleteIntelligence thoughts.
ReplyDeleteयह सहयोगी ही अनुभव कर सकते हैं
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