*प्रश्न- मैं एक लड़की से प्रेम करता हूँ, शादी करने का उससे वादा किया है। अब माता-पिता जबरजस्ती मेरी शादी मेरी इच्छा के विरुद्ध करवाना चाहते है। मेरे मना करने पर मम्मी मरने की धमकी दे रही है, इधर जिससे मैं प्रेम करता हूँ वो शादी न करने पर वो भी मरने की धमकी दे रही है। एक तरफ कुँआ दूसरी तरफ़ खाई है। मुझे लग रहा है कि मैं स्वयं अपनी ही जान ले लूँ। क्यूंकि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।*
सबसे पहले गहरी तीन बार श्वांस लें और तीन बार गायत्री मंत्र उगते हुए सूर्य का ध्यान कर जपें। ठीक है हम आपके प्रश्नों के समाधान हेतु दो कहानियाँ सुनाते हैं:-
पहली क्या आपकी मम्मी या आपकी प्रेमिका आपके लिए जान देगी या नहीं? या ये मात्र कोरी धमकी है?
आवेश में लोग बिना सोचे समझे कुछ भी बोल जाते हैं, जन्म-मृत्यु दोनों निश्चित है। यदि किसी के मृत्यु की घड़ी आ गयी तो तुम बचा नहीं सकते, यदि आयु शेष है तो कोई मर नहीं सकता। स्वयं की आत्महत्या एक गुनाह है जिसकी सज़ा प्रेत बनकर भुगतना पड़ेगा।
कलियुग के माता-पिता झूठी शान के लिए जीते हैं, एक नहीं अनेक सन्तानें बिना प्लानिंग के पैदा करते हैं। और फिर इंसान को जन्म देकर रोबोट जैसा आज्ञा पालन करवाना चाहते है जो सम्भव नहीं होता। आजकल के प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे को आकर्षण में पाना किसी भी कीमत पर चाहते है लेकिन जीवन के प्रति दूरदर्शिता का सर्वथा अभाव होता है। प्रेम में पड़ने और उसके दौरान रिश्ते की पूर्णता सम्भव है या नहीं इस पर विवेक का प्रयोग नहीं करते। प्रेमिका प्रेम तो इंसान से करती है लेकिन रोबोट की तरह आज्ञाकारी प्रेमी चाहती है, यही हाल प्रेमी का है प्रेम तो इंसान से करते है लेकिन आज्ञाकारी प्रेमिका रोबोट की तरह चाहिए। सर्वत्र दूरदर्शिता, विवेक और परमार्थ का अभाव है।
प्रेम का अर्थ होता है त्याग, हम जिससे प्रेम करते है उसकी ख़ुशी का ख़्याल रखना, उसकी ख़ुशी के लिए स्वयं के अस्तित्व और खुशी का त्याग कर देना।
जब किसी भी रिश्ते में संवाद और विश्वास नहीं होने पर ही कोई मरने की धमकी अंतिम अस्त्र रूप में देता है।
लेकिन क्या कोई वास्तव में आपके लिए मरेगा? या स्वयं की इच्छापूर्ति और झूठे सामाजिक दिखावे के लिए मरेगा। इसे एक सत्य कहानी के माध्यम से समझते हैं:-
एक शिष्य जो पूर्व जन्म में सिद्ध साधक था उसकी मृत्यु हुई और इस जन्म में वो गृहस्थ हो चुका था। सद्गुरु को इसका आभास था, अतः इस जन्म में जब मुलाकात हुई तो गुरुदेव ने कहा, पिछले जन्म की साधना पूरी कर सिद्ध बन जाओ। वानप्रस्थी सन्यासी बनना पड़ेगा। वो घर गया और पूंछ कर पुनः गुरुजी के पास आया। शिष्य बोला गुरुजी मेरे घर वाले और पत्नी मुझे बहुत चाहते है मेरे सन्यासी बनते ही वो जान दे देंगे। गुरुजी बोले चलो इसकी परीक्षा करते है कि कौन तुम्हें बहुत चाहता है जो तुम्हारे लिए जान भी दे देगा। शिष्य से बोले लो ये औषधि खाओ, और जब भी कोई नजदीक आये श्वांस चढ़ा लेना मृत लगोगे। सुनाई सब देगा। लाश की तरह शिष्य निढ़ाल हो गया उसे लेकर गुरुजी उसके घर गए। बोले आपका बेटा मर गया, सब छाती पीटकर रोने लगे, बोले यमराज इसके बदले हमे ले जाते ये तो हमारा प्राणप्रिय था। गुरुजी बोले इसमें यमराज को कष्ट देने की जरूरत नहीं, मैं मेरी सिद्धि से इसे जीवित कर सकता हूँ जो चाहे इसके बदले उसे यमलोक भेज सकता हूँ। अतः जो इससे प्रेम करता हो आगे आये अपनी आयु इसे दान कर दे। माता-पिता बोले प्यार तो इसे बहुत करते हैं लेकिन मेरी अन्य संतान भी तो है उन्हें भी तो देखना है। पत्नी बोली अभी मेरी उम्र ही क्या है, मेरे माता-पिता मेरा वियोग सह नही पाएंगे। बूढ़े दादा-दादी भी अपनी उम्र दान करने को तैयार न हुए। बहन बोली मेरा तो परिवार है मैं कैसे अपनी जान दे दूं, गुरुजी ने कहा चलो मैं ही अपनी उम्र इसे दान कर देता हूँ। शिष्य उठ खड़ा हुआ, फिर इमोशनल ड्रामा घर में प्रेमाभिव्यक्ति का शुरू हो गया। शिष्य ने सबको प्रणाम किया और बोला गुरुदेव ने अपनी आयु मुझें दान की अतः अब मैं गुरु का हो गया और वो तपस्या करने चला गया।
इसी तरह तुम्हारे लिए कोई जान नहीं देगा, यदि वो जान देंगे भी तो अपने स्वार्थपूर्ति के लिए देंगे।
सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगें लोग। इसको भूल जाओ। लोगों के मुंह मे ढक्कन नहीं हैं कुछ भी कर लो वो कुछ न कुछ कहेंगे ही।
नौ दिन का अपनी जिंदगी से ब्रेक लो, जाओ किसी आश्रम या हिल स्टेशन में। नित्य गायत्री मंत्र उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए करो विवेकदृष्टि जागृत होगी।
खिलाड़ी खेल के मैदान में अपनी गलती को नहीं समझ पाता, लेकिन उसी खेल का रिकॉर्डेड वीडियो जब घर पर आराम से टीवी में विवेकदृष्टि से देखता है तो अपनी गलती देख समझ के अगले मैच में सुधार लेता है।
इसी तरह घर से दूर सुबह गायत्री मंत्र जप के बाद अपने रिलेशनशिप और अपने पारिवारिक घटनाक्रम को दृष्टा की तरह देखो, सोचो ये घटनाएं किसी अन्य व्यक्ति के साथ घट रही है, उसे तुम्हे सही सलाह देनी है इससे उबरने के लिए। नौ दिन की विवेचना के बाद निर्णय लो।
किसी दूसरी लड़की से विवाह माता-पिता की स्वार्थपूर्ति हेतु कदापि मत करना, क्यूंकि यदि इस घटनाक्रम में तुमने इमोशनली विवाह करके किसी लड़की का जीवन बर्बाद किया तो कई जिंदगियां बर्बाद होंगी। आत्मा में इतना बोझ पड़ेगा कि जीवित रहते हुए भी जिंदा लाश बन जाओगे।
जो भी निर्णय लेना सोच-समझ के लेना, यदि किसी अन्य से विवाह करने की बाध्यता आन भी पड़े तो पहला रिश्ता तोड़ने के बाद एक वर्ष का वक्त लो, उसे और स्वयं को सम्हलने दो फिर किसी अन्य से विवाह करना।
जिससे प्रेम करते हो उससे भी शीघ्रता से विवाह मत करना, यहां भी कम से कम 3 महीने का वक्त लेकर सोच समझ के विवाह करना।
जीवन अनमोल है, ईश्वर का दिया हुआ है। ईश्वर की इस सृष्टि के प्रति भी तुम्हारी जिम्मेदारी है। इस देश के लिए लिए भी तुम्हारी जिम्मेदारी है। इसे किसी स्वार्थपूर्ति के लिए नष्ट मत करना।
आपके उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना करते हैं। नौ दिन के ब्रेक लेकर घर से दूर जीवन साधना के दौरान अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय जरूर करना। फ़िर मुझे अपडेट बताना कि क्या निर्णय लिया।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
सबसे पहले गहरी तीन बार श्वांस लें और तीन बार गायत्री मंत्र उगते हुए सूर्य का ध्यान कर जपें। ठीक है हम आपके प्रश्नों के समाधान हेतु दो कहानियाँ सुनाते हैं:-
पहली क्या आपकी मम्मी या आपकी प्रेमिका आपके लिए जान देगी या नहीं? या ये मात्र कोरी धमकी है?
आवेश में लोग बिना सोचे समझे कुछ भी बोल जाते हैं, जन्म-मृत्यु दोनों निश्चित है। यदि किसी के मृत्यु की घड़ी आ गयी तो तुम बचा नहीं सकते, यदि आयु शेष है तो कोई मर नहीं सकता। स्वयं की आत्महत्या एक गुनाह है जिसकी सज़ा प्रेत बनकर भुगतना पड़ेगा।
कलियुग के माता-पिता झूठी शान के लिए जीते हैं, एक नहीं अनेक सन्तानें बिना प्लानिंग के पैदा करते हैं। और फिर इंसान को जन्म देकर रोबोट जैसा आज्ञा पालन करवाना चाहते है जो सम्भव नहीं होता। आजकल के प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे को आकर्षण में पाना किसी भी कीमत पर चाहते है लेकिन जीवन के प्रति दूरदर्शिता का सर्वथा अभाव होता है। प्रेम में पड़ने और उसके दौरान रिश्ते की पूर्णता सम्भव है या नहीं इस पर विवेक का प्रयोग नहीं करते। प्रेमिका प्रेम तो इंसान से करती है लेकिन रोबोट की तरह आज्ञाकारी प्रेमी चाहती है, यही हाल प्रेमी का है प्रेम तो इंसान से करते है लेकिन आज्ञाकारी प्रेमिका रोबोट की तरह चाहिए। सर्वत्र दूरदर्शिता, विवेक और परमार्थ का अभाव है।
प्रेम का अर्थ होता है त्याग, हम जिससे प्रेम करते है उसकी ख़ुशी का ख़्याल रखना, उसकी ख़ुशी के लिए स्वयं के अस्तित्व और खुशी का त्याग कर देना।
जब किसी भी रिश्ते में संवाद और विश्वास नहीं होने पर ही कोई मरने की धमकी अंतिम अस्त्र रूप में देता है।
लेकिन क्या कोई वास्तव में आपके लिए मरेगा? या स्वयं की इच्छापूर्ति और झूठे सामाजिक दिखावे के लिए मरेगा। इसे एक सत्य कहानी के माध्यम से समझते हैं:-
एक शिष्य जो पूर्व जन्म में सिद्ध साधक था उसकी मृत्यु हुई और इस जन्म में वो गृहस्थ हो चुका था। सद्गुरु को इसका आभास था, अतः इस जन्म में जब मुलाकात हुई तो गुरुदेव ने कहा, पिछले जन्म की साधना पूरी कर सिद्ध बन जाओ। वानप्रस्थी सन्यासी बनना पड़ेगा। वो घर गया और पूंछ कर पुनः गुरुजी के पास आया। शिष्य बोला गुरुजी मेरे घर वाले और पत्नी मुझे बहुत चाहते है मेरे सन्यासी बनते ही वो जान दे देंगे। गुरुजी बोले चलो इसकी परीक्षा करते है कि कौन तुम्हें बहुत चाहता है जो तुम्हारे लिए जान भी दे देगा। शिष्य से बोले लो ये औषधि खाओ, और जब भी कोई नजदीक आये श्वांस चढ़ा लेना मृत लगोगे। सुनाई सब देगा। लाश की तरह शिष्य निढ़ाल हो गया उसे लेकर गुरुजी उसके घर गए। बोले आपका बेटा मर गया, सब छाती पीटकर रोने लगे, बोले यमराज इसके बदले हमे ले जाते ये तो हमारा प्राणप्रिय था। गुरुजी बोले इसमें यमराज को कष्ट देने की जरूरत नहीं, मैं मेरी सिद्धि से इसे जीवित कर सकता हूँ जो चाहे इसके बदले उसे यमलोक भेज सकता हूँ। अतः जो इससे प्रेम करता हो आगे आये अपनी आयु इसे दान कर दे। माता-पिता बोले प्यार तो इसे बहुत करते हैं लेकिन मेरी अन्य संतान भी तो है उन्हें भी तो देखना है। पत्नी बोली अभी मेरी उम्र ही क्या है, मेरे माता-पिता मेरा वियोग सह नही पाएंगे। बूढ़े दादा-दादी भी अपनी उम्र दान करने को तैयार न हुए। बहन बोली मेरा तो परिवार है मैं कैसे अपनी जान दे दूं, गुरुजी ने कहा चलो मैं ही अपनी उम्र इसे दान कर देता हूँ। शिष्य उठ खड़ा हुआ, फिर इमोशनल ड्रामा घर में प्रेमाभिव्यक्ति का शुरू हो गया। शिष्य ने सबको प्रणाम किया और बोला गुरुदेव ने अपनी आयु मुझें दान की अतः अब मैं गुरु का हो गया और वो तपस्या करने चला गया।
इसी तरह तुम्हारे लिए कोई जान नहीं देगा, यदि वो जान देंगे भी तो अपने स्वार्थपूर्ति के लिए देंगे।
सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगें लोग। इसको भूल जाओ। लोगों के मुंह मे ढक्कन नहीं हैं कुछ भी कर लो वो कुछ न कुछ कहेंगे ही।
नौ दिन का अपनी जिंदगी से ब्रेक लो, जाओ किसी आश्रम या हिल स्टेशन में। नित्य गायत्री मंत्र उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए करो विवेकदृष्टि जागृत होगी।
खिलाड़ी खेल के मैदान में अपनी गलती को नहीं समझ पाता, लेकिन उसी खेल का रिकॉर्डेड वीडियो जब घर पर आराम से टीवी में विवेकदृष्टि से देखता है तो अपनी गलती देख समझ के अगले मैच में सुधार लेता है।
इसी तरह घर से दूर सुबह गायत्री मंत्र जप के बाद अपने रिलेशनशिप और अपने पारिवारिक घटनाक्रम को दृष्टा की तरह देखो, सोचो ये घटनाएं किसी अन्य व्यक्ति के साथ घट रही है, उसे तुम्हे सही सलाह देनी है इससे उबरने के लिए। नौ दिन की विवेचना के बाद निर्णय लो।
किसी दूसरी लड़की से विवाह माता-पिता की स्वार्थपूर्ति हेतु कदापि मत करना, क्यूंकि यदि इस घटनाक्रम में तुमने इमोशनली विवाह करके किसी लड़की का जीवन बर्बाद किया तो कई जिंदगियां बर्बाद होंगी। आत्मा में इतना बोझ पड़ेगा कि जीवित रहते हुए भी जिंदा लाश बन जाओगे।
जो भी निर्णय लेना सोच-समझ के लेना, यदि किसी अन्य से विवाह करने की बाध्यता आन भी पड़े तो पहला रिश्ता तोड़ने के बाद एक वर्ष का वक्त लो, उसे और स्वयं को सम्हलने दो फिर किसी अन्य से विवाह करना।
जिससे प्रेम करते हो उससे भी शीघ्रता से विवाह मत करना, यहां भी कम से कम 3 महीने का वक्त लेकर सोच समझ के विवाह करना।
जीवन अनमोल है, ईश्वर का दिया हुआ है। ईश्वर की इस सृष्टि के प्रति भी तुम्हारी जिम्मेदारी है। इस देश के लिए लिए भी तुम्हारी जिम्मेदारी है। इसे किसी स्वार्थपूर्ति के लिए नष्ट मत करना।
आपके उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना करते हैं। नौ दिन के ब्रेक लेकर घर से दूर जीवन साधना के दौरान अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय जरूर करना। फ़िर मुझे अपडेट बताना कि क्या निर्णय लिया।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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