Wednesday, 28 March 2018

प्रश्न - भगवान श्रीराम के चरित्र से भारतीय युवाओं को क्या शिक्षा लेनी चाहिए?

*प्रश्न- भगवान राम से आज के युवाओं को क्या शिक्षा लेना चाहिए? कृपया सरल और आज के जमाने के हिसाब से समझाइये?*

तो भाई, सबसे पहले यह समझते है कि भगवान गुणप्रधान है या रूपप्रधान है?

कोई सुंदर सी भगवान की फ़ोटो एक युवा राजा की पोशाक में या तपस्वी की पोशाक में देखने पर कैसे हम पहचानते हैं कि यह राम है या कृष्ण?

सही उत्तर- धनुष लिए होंगे तो राम और हाथ मे बांसुरी हुई और सर पर मोरपंख हुआ तो कृष्ण। अर्थात रूप नहीं उनके गुण अनुसार लिए उपकरण से उनकी पहचान करते हैं। तो भगवान सद्गुणों के समुच्चय(संग्रह) को कहते हैं, उनकी पूजा अर्थात उस देवता की तरह अपने भीतर गुण विकसित करना। धर्मनिष्ठ मर्यादापुरुषोत्तम राम की आराधना अर्थात राम के चरित्र को अपने मन में बसाना। यही तुलसीदास ने पुस्तक राम चरित(चरित्र) मानस में संदेश दिया है।

राम को भगवान सबने क्यूँ माना, क्योंकि उन्होंने दुष्ट व्यभिचारी और ऋषियों और आमजनता को प्रताड़ित करने वाले शक्तिशाली दैत्य को मारा। सबको राक्षसों से मुक्ति दिलाई, राम राज्य स्थापित किया। एक पत्नी व्रत आजन्म निभाया, स्व हित से ऊपर प्रजा का हित रखा।

आमजनता के जीवन में जब संकट आता है तो उनका चरित्र और मन बिखर जाता है। लेकिन श्रीराम जी के जीवन मे जब जब संकट आया उन्होंने वीरता से उसका सामना किया। यही राम जी के जीवन से युवाओं को सन्देश लेना चाहिए कि विपरीत परिस्थिति में भी धर्म का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

किशोरावस्था में विश्वामित्र के साथ ताड़का वध करके वहाँ रहने वाले लोगों को उसके अत्याचार से मुक्त करवाया। सीता जी से विवाह अपने पुरुषार्थ से किया। राजा बनने के वक़्त पिता के आदेश पर जंगल चल दिये क्योंकि स्वयं के पुरुषार्थ पर भरोसा था। जंगल कठिन और अतिदुष्कर होता है उस चैलेंज को स्वीकार किया। रावण ने सीता जी का अपहरण किया तो पैदल भारत के इस कोने से उस कोने तक यात्रा कर डाली। समुद्र तक मे सेतु बना दिया। असम्भव को सम्भव कर अपने पुरुषार्थ से सीता जी को मुक्त करवाया। जब पुनः राज्याभिषेक हुआ और पिता बनने वाले थे पुनः संकट गहराया। कुचक्र और षड़यंत्र कारियों ने तख्ता पलट की योजना बनाई और सीता जी पर चारित्रिक लांछन लगाया। एक तरफ़ पत्नी और होने वाली सन्तान और दूसरी तरफ़ हज़ारों प्रजा? दंगा भड़कता तो प्रजा दो हिस्सों में बंटती और राक्षस इस राजनीतिक अस्थितिरता का फ़ायदा उठा लेते, प्रजा के जीवन में गम्भीर संकट उतपन्न हो जाता, तो श्रीराम किसका जीवन बचाते- एक सीता जी का या अनेक प्रजा का ? एक तरफ खाई और दूसरी तरफ़ कुआं था। श्रीरामजी और श्री सीता जी ने एक देशभक्त सैनिक की तरह मातृभूमि की रक्षा और प्रजा हित अपने स्वहित से ऊपर माना। जैसे भगतसिंह ने अपनी प्रेमिका और मां से ऊपर मातृभूमि को माना। देश की आज़ादी के लिए शहीद हो गए। इसी तरह श्रीराम जी और सीता जी भी जीते जी मातृभूमि के लिए शहीद हो गए। विलग हो गए। अश्वमेध में अपने पुत्रों से ही युद्ध लड़ना पड़ा जो एक पिता के लिए दुःखद था। अपनी प्राणप्रिय सीता जी को अपनी आंखों के समक्ष धरती में समाते हुए देखा। इतनी सारी विपरीत परिस्थिति में भी स्वयं के चरित्र चिंतन व्यवहार को सम्हाला, मातृभूमि की रक्षा किया और दैत्यों का संघार किया, अपनी प्रजा के साथ साथ पूरे भारतवर्ष में अश्वमेघ यज्ञ द्वारा राम राज्य की स्थापना किया।

भारतीय सीमा पर लड़ने वाला सैनिक भी अपनी पर्सनल लाइफ की कई सारी जिम्मेदारी नहीं निभा पाता, इसी तरह देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी भी अपने पर्सनल जीवन सुकून चैन से न बिता सके। भगवान श्रीराम भी पर्सनल जीवन में पत्नी के प्रति जिम्मेदारी प्रजा और देश की  सुरक्षा हेतु न निभा सके। जब परिस्थितियां विपरीत होती है तब सही और ग़लत के बीच निर्णय आसान होता है। लेकिन दो सही ऑप्शन और दो गलत ऑप्शन के बीच चयन बहुत मुश्किल होता है। एक सम्हलेगा तो दूसरा उपेक्षित होगा ही। सीता जी भी यह बात जानती थीं क्यूंकि भारतीय क्षत्राणी को बचपन से ही राष्ट्रहित स्वहित से ऊपर सँस्कार में दिया होता है।

अतः भारतीय युवाओं को श्रीराम और सीता जी के चरित्र से धर्म, मर्यादा, देशभक्ति का शिक्षण लेना चाहिए। अपने पुरुषार्थ पर भरोसा करना चाहिए, विपरीत परिस्थिति और संकट के समय भी धर्म के मार्ग का ही चयन करना चाहिए। स्वहित से ऊपर देशहित रखना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

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