Thursday, 5 April 2018

जिज्ञासा - प्रायश्चित विधान और कायाकल्प कैसे करें?

*प्रायश्चित विधान और कायाकल्प*

🙏🏻 जिज्ञासा - *कृपया उचित मार्गदर्शन करें कि प्रायश्चित विधान कब और कैसे शुरू करूँ, और अन्तःकरण की पवित्रता के साथ आध्यात्मिक पथ पर कैसे बढूँ? कैसे अपने दुःख-दर्द से मुक्त हो आनन्द की ओर बढूँ?*

🙏🏻 समाधान - इस प्रायश्चित विधान में क्रमशः बढ़ें, सबसे पहले प्रायश्चित विधान की जड़ पर कार्य करेंगे, श्रद्धा और पूर्ण विश्वास के साथ युगऋषि के दिखाए इस मार्ग पर बढ़ेंगे:-

1- सर्वप्रथम अपनी आत्मकथा लिखें, और उसे एनालिसिस करें।

2- निष्कासन तप हेतु सिर्फ़ शांतिकुंज के वरिष्ठ कार्यकर्ता के समक्ष अपनी गलतियों-बुराइयों को सच्चाई और हिम्मत के साथ बताएं। और संकल्प लें कि ये गलतियां और बुराइयां पुनः मेरे जीवन में प्रवेश नहीं करेंगी।

3- युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी पेज 3.20 से इसे विस्तृत रूप से पढें, इसके साथ ही 📖 स्वर्ग नर्क की स्वचालित प्रक्रिया, 📖 आंतरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान, वांग्मय 7 का चन्द्रायण कल्प साधना, गायत्री की ब्रह्मवर्चस विद्या, अखण्डज्योति, प्रायश्चित कैसे करें, और छोटी छोटी पॉकेट पुस्तक तत्सम्बन्धी पढ़ें। इस वेबसाइट पर यह ऑनलाइन पढ़ सकते हो (www.vicharkrantibooks .Org)

Confession (ग़लतियों-बुराइयों का विवरण और निष्कासन तप) कभी भी किसी दोस्त, रिश्तेदार, निकट सम्बन्धी और ऑफिस में काम करने वालों के समक्ष न करें। ये कन्फेशन/निष्काषन तप केवल शांतिकुंज के वरिष्ठ राष्ट्रपुरोहित के समक्ष करें। यदि कोई न मिले तो घर के पूजन स्थल पर भगवान के समक्ष कन्फेशन बोलकर और लिखकर करें और बाद में लिखा हुआ कन्फेशन वहीं जला दें जिससे कोई उसे कभी भी पढ़ न सके।

बिना निष्काषन तप के भूतकाल में किये कर्म(past action) का निष्काषन नहीं हो पायेगा। बिना past release के अध्यात्म यात्रा आगे नहीं बढ़ पाएगी। निष्काषन तप से मन का बोझ हल्का हो जाता है, ईमानदारी और साहस बढ़ता है। दस गुना हम स्वयं को पॉवरफुल/शक्तिशाली महसूस करते हैं। ईसाई धर्म में निष्कासन तप चर्च में किया जाता है जिसे वे Confession कहते हैं।

4- आइये समझते हैं कि विचार कैसे चिंतन में फिर आदत और फिर संस्कार बनके कैसे अंतर्मन में स्थिर हो जाते है और कैसे हम उनके वशीभूत होकर उनके अनुसार चलने लगते हैं, ये संस्कार जन्म जन्मांतर तक साथ चलते हैं। बुरे संस्कार वहां जड़ जमाकर पनपते हैं जहां विवेक और ज्ञान का प्रकाश नहीं पहुंचता। इन्हें हटाने के लिए इन्हें अंतर्मन की गहरी परतो से निकाल कर बहिर्मन में चेतन स्तर पर लाना होता है। दूसरों के समक्ष Confession/स्वीकार करके गलती इसका निष्काषन करना होता है। निरन्तर अभ्यास और वैराग्य से यह बुरे संस्कार जड़ से निर्मूल हो जाता है।

इसे उदाहरण से समझते हैं:-
एक किसान अपने खेत तक पहुंचने के रास्ते में कई चीज़े अनुभव करता है- कंकड़, पत्थर, कांटे, चूहे, सांप इत्यादि।
👉🏽
अब एक तरीका यह है कि किसान रोज जब जब कांटे पैर में चुभे उन एक एक कांटो को अपने जीवन से उखाड़ फेंकता चले, इस तरह पूरा जीवन इसमें उलझकर जीवन व्यर्थ बना दें।

या दूसरा तरीका मार्ग को कंकड़ और कांटो से को हटा के साफ कर दे, पूरी कोशिश करके 9 दिन या 40 दिन में पूरा रास्ता ही लगकर साफ़ कर दे। तो जब मार्ग कांटो विहीन हो जाएगा तो रोज रोज न काटे चुभने का दर्द सहना पड़ेगा न उन्हें निकालने में एक्स्ट्रा समय व्यर्थ करना पड़ेगा।

गायत्री अनुष्ठान 9 दिन, 40 दिन, चन्द्रायण, अस्वाद व्रत इत्यादि जीवन के आनंदमय मार्ग के बाधक - प्रारब्ध (कंकड़-पत्थर-कांटो) की सफ़ाई का विधि विधान है।

गायत्री तप की अग्नि में प्रारब्ध को जलाकर राख कर देते हैं। लेकिन प्रारब्ध की गीले कांटो को सुखाने हेतु निष्काषन तप अनिवार्य है जिससे सूखे कांटे जल्दी जल जाएं।
👉🏽  किसान की तरह मार्ग की सफाई नित्य कर यह व्यवस्था करनी होगी कि बुराइयों के कांटे पुनः जीवन मार्ग में न पनप पाये। इसके लिए जप-ध्यान के साथ साथ अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय नित्य करना होगा।

👉🏽 कांटे हटाने के बाद मार्ग को आनन्द मय बनाने के लिए अच्छे अच्छे फल और फूल के पौधे लगाना होगा, जिनकी खुशबू मन को आनन्द दे, अर्थात अच्छी आदतों का जीवन मे समावेश और अनुपालन करना होगा जिससे हमारे कर्म की खुशबू सर्वत्र आनन्द दे।

👉🏽 मात्र अच्छी आदतों के शुरू करने भर से कुछ नहीं होगा उसमे अनवरतता जरूरी है। खरपतवार की तरह बुरी आदतों की निराई गुणाई(निष्कासन) जरूरी है। जैसी समस्या हो उससे सम्बन्धित साहित्य पढ़कर समाधान खोजें। 3200 साहित्य रूप में गुरुदेव ने ख़ज़ाना दे दिया है। उदाहरण पति-पत्नी के ख़राब सम्बन्धो की समस्या हो तो गृहस्थ एक तपोवन, दृष्टिकोण ठीक रखें इत्यादि पुस्तक पढें, यदि बालक से सम्बन्धी समस्या हो तो हमारी भावी पीढ़ी और उसका नवनिर्माण पढें।
👉🏽 यदि पूर्वजन्म के प्रारब्ध के कारण जीवन मार्ग में प्रारब्ध का गड्ढा बन गया हो, जिसमे गिरकर अनेको कष्टो का सामना करना पड़े। तो ऐसे गढ्ढे को नित्य पुण्य कर्म/श्रेष्ठ कर्मो द्वारा एकत्र मिट्टी से भरते चलें। आपके अच्छे कर्मों और तपस्या से जीवन मार्ग गड्ढो से मुक्त हो जाएगा। कांटे,कंकड़, पत्थर साफ हो जाएंगे। नए पुण्य कर्मों के फलदार पौधों के पकते फल  तृप्ति देंगे और पुष्प की भीनी भीनी खुशबू मन मोह लेगी। आनन्द परमानन्द में रमते रहेंगे।

प्रदीप ढींगरा भैया, इस प्रायश्चित विधान और कायाकल्प साधना को अपने क्लाइंट्स को समझाते हैं। ऐसे कई उदाहरण की मैं साक्षी हूँ कि लोग उम्रकैद की सज़ा से भी बच गए और अच्छे कर्मों और गायत्री अनुष्ठान चन्द्रायण कल्प साधना और प्रयायश्चित विधान से दुःखमय जीवन को आनन्दमय जीवन बनाने में सफल हुए।

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