*विनाश काले विपरीत बुद्धि*
बनाम
*उज्ज्वल भविष्य हेतु सद्बुद्धि*
कालिदास जब कालिदास नहीं बने थे तो उसी वृक्ष की डाल को काट रहे थे जिस पर वो स्वयं बैठे थे। यह दृश्य सोचकर सभी बुद्धिमान लोग जो इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं हंसी आ रही होगी। कालिदास की मूर्खता पर....
लेकिन अपनी मूर्खता पर हम कब हँसे थे, अपनी मूर्खता का अवलोकन लास्ट बार हमने कब किया था। हम सब थोड़ा अपनी मूर्खता की लिस्ट और विपरीत बुद्धि पर नज़र दौड़ाएं:-
1- प्रकृति का अन्धाधुन्ध दोहन किया लेकिन उसका संरक्षण नहीं किया। अर्थात सामूहिक मौत का स्वयं इंतज़ाम किया। कब चेतेंगे? कब प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु प्रयासरत होंगे?
2- पता है जल बना नहीं सकते केवल संरक्षित कर सकते हैं। फ़िर भी सभी एकजुट हो वर्षा के जल को संरक्षित करने हेतु प्रयास नहीं कर रहे। जल के बिना जीवन नहीं है, कई राज्यों में गर्मी में सूखे के हालात बनते हैं फिर भी कोई तैयारी नहीं। सामूहिक मौत का इंतज़ार कर रहे हैं। कब एक जुट हो जलसंरक्षण हेतु प्रयासरत होंगे?
3- पता है ऑक्सीजन बना नहीं सकते। केवल वृक्षों से ही प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ की कटाई। कंकरीट के जंगल के निर्माण में लगे हैं। भोजन बिना तो दो दिन जी भी सकते हो, लेकिन ऑक्सीजन बिना दो पल भी जिया नहीं जाएगा। सामूहिक मौत का इंतज़ार कर रहे हैं। कब एकजुट हो वृक्षारोपण के लिए प्रयासरत होंगे?
4- पता है कि जहरीली खाद में उगी फ़सल ज़हरीली ही होगी। ज़हर थाली में परोसा जा रहा है। विभिन्न रोगों से शरीर ग्रसित हो रहा है। फिर भी सब एकजुट होकर इस पर कार्य नहीं कर रहे। दुःखद है, ऑर्गेनिक खाद और गौ सम्वर्धन के लिए प्रयास में तेजी नहीं आयी। कब ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने हेतु किसान मित्र बनने हेतु एकजुट हो प्रयासरत होंगे?
5- पता है कि बच्चे के जन्मने के बाद ज़मीन नहीं बढ़ेंगी, रोड नहीं बढ़ेगी, हवा और जल नहीं बढ़ेगा, नौकरियां नहीं बढ़ेगी और व्यवसाय के अवसर भी दुनियां में नहीं बढेंगे और खेत भी नहीं बढ़ेगा। लेकिन एक बच्चे को बड़ा होने पर उपरोक्त सभी चीज़े जीने के लिए चाहिए। जनसँख्या का बढ़ता दबाव और घटते संसाधन सामूहिक मौत को खुला निमन्त्रण। दुःखद है कि अभी भी सिर्फ़ दो बच्चों का कानून देश मे नहीं बना, वोट के लिए सामूहिक मौत को भी इग्नोर कर रहे हैं। कब जनसँख्या वृद्धि पर रोक लगाने हेतु अपने गली मोहल्ले में जागरूकता फैलाएंगे? गांवों की चौपालों और शहरों में जन जागृति लाएंगे?
6- व्यसन हमारे और हमारे बच्चों के DNA खराब कर रहा है। एक व्यसनी के व्यसन का खामियाजा उसकी आने वाली कई पीढियां भुगतेंगी और विभिन्न रोगों के साथ प्राण ऊर्जा से हीन जनमेंगी। स्वयं भी तिल तिल मर रहा है। फिर भी हाय रे समाज, टीवी में धड़ल्ले से मद्यपान का प्रचार बच्चो के सामने देख रहा है, फिल्मों में ड्रग्स और मद्यपान का दृश्य बच्चो को दिखा रहा है। स्वयं ऑफिस कॉरपोरेट और अन्य सामाजिक जगहों पर आधुनिकता के नाम पर नशा ही नशा को बढ़ावा दे रहा है। ऐसी पढ़ाई लिखाई का क्या फ़ायदा जो अपना और अपने बच्चों का भविष्य नशा करके नष्ट करे, मौत के सामान से युवा पीढ़ी को नष्ट करने की तैयारी चल रही है। सामूहिक रोग-शोक-मौतें फ़िर भी परवाह नहीं। आख़िर क्यों कॉरपोरेट व्यसनमुक्त ऑफिस पार्टी और ऑफिस नहीं करते? आख़िर क्यों पार्टियों को व्यसनमुक्त नहीं मनाते? आखिर क्यों व्यसनमुक्त फ़िल्मे और उसके गाने नहीं बनते। टीवी और न्यूज पेपर घर मे बच्चे भी देखते है आखिर क्यों यह व्यसन के विज्ञापन मुक्त नहीं है? हम कब एक जुट हो व्यसनमुक्ति के लिए प्रयास करेंगे?
7- लड़की होना भारत मे अभिशाप क्यों हो गया है? आखिर मीडिया इतने इंटरेस्टिंग तरीक़े से रेप की घटना को क्यों परोस रहा है? आखिर पोर्न वीडियो बैन क्यों नहीं है? देश की राजधानी भी क्यों सुरक्षित नहीं है? बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ, लेकिन बेटी को पढ़ने के लिए अकेले बाहर भेजने से भी डरो? क्योंकि कोई गारंटी वारंटी नहीं कि बेटी जॉब या पढ़ने को गयी है सकुशल वापस लौट के आएगी?
शादी के लिए सारी कमाई लुटा दो ख़र्चीली शादी और दहेज में, फिर गारंटी वारंटी नहीं कि ससुराल से जिंदा वापस आएगी?
शर्म नहीं आती हमें कि हमारा समाज लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है, क्योंकि घर मे सँस्कार दिए नहीं गए लड़को को और उनके अंदर माता-पिता गलती पर डांटेंगे इस बात का डर भी नहीं है। जब माता-पिता की जगह टीवी और फ़िल्म बच्चो को सँस्कार देंगे तो अपराधी, व्यसनी और रेपिस्ट संताने ही गढ़ी जाएंगी। कब आखिर कब हम चेतेंगे? कब एकजुट हो बच्चो को सँस्कार देंगे? कब हिंदुस्तान में लड़की जन्मदेने पर कोई माता-पिता भयभीत नहीं होगा?
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गायत्री परिवार और डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन आपका आह्वाहन करता है, कि आइए एकजुट होकर सद्बुद्धि के साथ यज्ञमय जीवन जियें। जो भी संस्था या ngo लोकहित काम कर रहे हैं उनका सहयोग करें। सन्तानो की संख्या सीमित रखें, अच्छे संस्कार दें, बच्चो को अच्छी पुस्तकें पढवाये और उन्हें आध्यात्मिक दृष्टिकोण दें, समाजसेवा के कार्यो में उन्हें लगाएं। व्यसनमुक्त स्वयं बने और समाज को बनाएं। पोर्न वीडियो स्वयं न देखें और बच्चो के हाथ मे मोबाइल न दें। इंटरनेट में सभी वेबसाइट ब्लॉक कर दें। जल संरक्षण और अन्न संरक्षण करें। वृक्षारोपण जुलाई में जगह जगह होगा वहां एक्टिव होकर वहां सहयोग करें।
हम चाहें तो एकजुट होकर और मिलकर सद्बुद्धि के साथ उज्ज्वल भविष्य को गढ़ सकते हैं। स्वयं सुधर के स्वयं बदल के दुनियां के सकारात्मक बदलाव का हिस्सा बन सकते हैं।
मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण के लिए एकजुट होना ही पड़ेगा। इसके बिना काम न चलेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
बनाम
*उज्ज्वल भविष्य हेतु सद्बुद्धि*
कालिदास जब कालिदास नहीं बने थे तो उसी वृक्ष की डाल को काट रहे थे जिस पर वो स्वयं बैठे थे। यह दृश्य सोचकर सभी बुद्धिमान लोग जो इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं हंसी आ रही होगी। कालिदास की मूर्खता पर....
लेकिन अपनी मूर्खता पर हम कब हँसे थे, अपनी मूर्खता का अवलोकन लास्ट बार हमने कब किया था। हम सब थोड़ा अपनी मूर्खता की लिस्ट और विपरीत बुद्धि पर नज़र दौड़ाएं:-
1- प्रकृति का अन्धाधुन्ध दोहन किया लेकिन उसका संरक्षण नहीं किया। अर्थात सामूहिक मौत का स्वयं इंतज़ाम किया। कब चेतेंगे? कब प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु प्रयासरत होंगे?
2- पता है जल बना नहीं सकते केवल संरक्षित कर सकते हैं। फ़िर भी सभी एकजुट हो वर्षा के जल को संरक्षित करने हेतु प्रयास नहीं कर रहे। जल के बिना जीवन नहीं है, कई राज्यों में गर्मी में सूखे के हालात बनते हैं फिर भी कोई तैयारी नहीं। सामूहिक मौत का इंतज़ार कर रहे हैं। कब एक जुट हो जलसंरक्षण हेतु प्रयासरत होंगे?
3- पता है ऑक्सीजन बना नहीं सकते। केवल वृक्षों से ही प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ की कटाई। कंकरीट के जंगल के निर्माण में लगे हैं। भोजन बिना तो दो दिन जी भी सकते हो, लेकिन ऑक्सीजन बिना दो पल भी जिया नहीं जाएगा। सामूहिक मौत का इंतज़ार कर रहे हैं। कब एकजुट हो वृक्षारोपण के लिए प्रयासरत होंगे?
4- पता है कि जहरीली खाद में उगी फ़सल ज़हरीली ही होगी। ज़हर थाली में परोसा जा रहा है। विभिन्न रोगों से शरीर ग्रसित हो रहा है। फिर भी सब एकजुट होकर इस पर कार्य नहीं कर रहे। दुःखद है, ऑर्गेनिक खाद और गौ सम्वर्धन के लिए प्रयास में तेजी नहीं आयी। कब ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने हेतु किसान मित्र बनने हेतु एकजुट हो प्रयासरत होंगे?
5- पता है कि बच्चे के जन्मने के बाद ज़मीन नहीं बढ़ेंगी, रोड नहीं बढ़ेगी, हवा और जल नहीं बढ़ेगा, नौकरियां नहीं बढ़ेगी और व्यवसाय के अवसर भी दुनियां में नहीं बढेंगे और खेत भी नहीं बढ़ेगा। लेकिन एक बच्चे को बड़ा होने पर उपरोक्त सभी चीज़े जीने के लिए चाहिए। जनसँख्या का बढ़ता दबाव और घटते संसाधन सामूहिक मौत को खुला निमन्त्रण। दुःखद है कि अभी भी सिर्फ़ दो बच्चों का कानून देश मे नहीं बना, वोट के लिए सामूहिक मौत को भी इग्नोर कर रहे हैं। कब जनसँख्या वृद्धि पर रोक लगाने हेतु अपने गली मोहल्ले में जागरूकता फैलाएंगे? गांवों की चौपालों और शहरों में जन जागृति लाएंगे?
6- व्यसन हमारे और हमारे बच्चों के DNA खराब कर रहा है। एक व्यसनी के व्यसन का खामियाजा उसकी आने वाली कई पीढियां भुगतेंगी और विभिन्न रोगों के साथ प्राण ऊर्जा से हीन जनमेंगी। स्वयं भी तिल तिल मर रहा है। फिर भी हाय रे समाज, टीवी में धड़ल्ले से मद्यपान का प्रचार बच्चो के सामने देख रहा है, फिल्मों में ड्रग्स और मद्यपान का दृश्य बच्चो को दिखा रहा है। स्वयं ऑफिस कॉरपोरेट और अन्य सामाजिक जगहों पर आधुनिकता के नाम पर नशा ही नशा को बढ़ावा दे रहा है। ऐसी पढ़ाई लिखाई का क्या फ़ायदा जो अपना और अपने बच्चों का भविष्य नशा करके नष्ट करे, मौत के सामान से युवा पीढ़ी को नष्ट करने की तैयारी चल रही है। सामूहिक रोग-शोक-मौतें फ़िर भी परवाह नहीं। आख़िर क्यों कॉरपोरेट व्यसनमुक्त ऑफिस पार्टी और ऑफिस नहीं करते? आख़िर क्यों पार्टियों को व्यसनमुक्त नहीं मनाते? आखिर क्यों व्यसनमुक्त फ़िल्मे और उसके गाने नहीं बनते। टीवी और न्यूज पेपर घर मे बच्चे भी देखते है आखिर क्यों यह व्यसन के विज्ञापन मुक्त नहीं है? हम कब एक जुट हो व्यसनमुक्ति के लिए प्रयास करेंगे?
7- लड़की होना भारत मे अभिशाप क्यों हो गया है? आखिर मीडिया इतने इंटरेस्टिंग तरीक़े से रेप की घटना को क्यों परोस रहा है? आखिर पोर्न वीडियो बैन क्यों नहीं है? देश की राजधानी भी क्यों सुरक्षित नहीं है? बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ, लेकिन बेटी को पढ़ने के लिए अकेले बाहर भेजने से भी डरो? क्योंकि कोई गारंटी वारंटी नहीं कि बेटी जॉब या पढ़ने को गयी है सकुशल वापस लौट के आएगी?
शादी के लिए सारी कमाई लुटा दो ख़र्चीली शादी और दहेज में, फिर गारंटी वारंटी नहीं कि ससुराल से जिंदा वापस आएगी?
शर्म नहीं आती हमें कि हमारा समाज लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है, क्योंकि घर मे सँस्कार दिए नहीं गए लड़को को और उनके अंदर माता-पिता गलती पर डांटेंगे इस बात का डर भी नहीं है। जब माता-पिता की जगह टीवी और फ़िल्म बच्चो को सँस्कार देंगे तो अपराधी, व्यसनी और रेपिस्ट संताने ही गढ़ी जाएंगी। कब आखिर कब हम चेतेंगे? कब एकजुट हो बच्चो को सँस्कार देंगे? कब हिंदुस्तान में लड़की जन्मदेने पर कोई माता-पिता भयभीत नहीं होगा?
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गायत्री परिवार और डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन आपका आह्वाहन करता है, कि आइए एकजुट होकर सद्बुद्धि के साथ यज्ञमय जीवन जियें। जो भी संस्था या ngo लोकहित काम कर रहे हैं उनका सहयोग करें। सन्तानो की संख्या सीमित रखें, अच्छे संस्कार दें, बच्चो को अच्छी पुस्तकें पढवाये और उन्हें आध्यात्मिक दृष्टिकोण दें, समाजसेवा के कार्यो में उन्हें लगाएं। व्यसनमुक्त स्वयं बने और समाज को बनाएं। पोर्न वीडियो स्वयं न देखें और बच्चो के हाथ मे मोबाइल न दें। इंटरनेट में सभी वेबसाइट ब्लॉक कर दें। जल संरक्षण और अन्न संरक्षण करें। वृक्षारोपण जुलाई में जगह जगह होगा वहां एक्टिव होकर वहां सहयोग करें।
हम चाहें तो एकजुट होकर और मिलकर सद्बुद्धि के साथ उज्ज्वल भविष्य को गढ़ सकते हैं। स्वयं सुधर के स्वयं बदल के दुनियां के सकारात्मक बदलाव का हिस्सा बन सकते हैं।
मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण के लिए एकजुट होना ही पड़ेगा। इसके बिना काम न चलेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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