🔥 *यज्ञ आयोजन के इस दिव्य वातावरण में आप सबका स्वागत है*🙏🏻
😇 *मनुष्य से देवता तक का सफ़र थोड़ा कठिन है* क्योंकि मन के घोड़े पर लगाम लगा कर देवात्मा हिमालय की ओर ले चलना होता है। लेकिन *नियमित अभ्यास और वैराग्य से चेतना के शिखर पर पहुंचकर देवत्व की मंजिल पाई जा सकती है*। थोड़ी नित्य मेहनत के बाद आनन्द उल्लास से भरा जीवन जिया जा सकता है।
😊 *मनुष्य बने रहने के लिए भी सन्तुलन जरूरी है।* क्योंकि हम सब देवस्त्व और असुरत्व के बीच मे खड़े है। तो मन को ठहराना होगा। भागदौड़ या तो देवत्व की ओर हो या भागदौड़ हो ही न यह सुनिश्चित करना होगा। सीधे इंसानियत की राह पर चलना होगा। स्वयं को काम-क्रोध-मद-लोभ-दम्भ-अहंकार की ठोकर से बचाना होगा। इंसान बने रहेंगे।
👹 *मनुष्य से नर पिशाच का सफ़र बड़ा आसान है*, कभी गिरने के लिए भी मेहनत की जरूरत होती है भला? बस मन के घोड़े के गुलाम बन जाइये। जो मन करे वो खाइये, जैसा मन करे वो मनोरंजन के उपाय कीजिये। कामना-वासना-तृष्णा और अहंकार का पोषण कीजिये, मन की गुलामी आपको जीते जी नरक में पहुंचा देगी और दुनियाँ की नज़र में नर पिशाच बना देगी।
🙏🏻🙏🏻 *युगऋषि ने गायत्री(सद्बुद्धि) और यज्ञ(सत्कर्म) रूपी दो शशक्त माध्यम दिए हैं, जिनके अवलम्बन से मनुष्य से देवत्व की ओर का सफ़र किया जा सकता है।* आज के यज्ञ आयोजन में हम लोग इसी पर चर्चा परिचर्चा करेंगें।
*मन के घोड़े की लगाम हेतु इन तीन विधियों द्वारा रस्सी का निर्माण कीजिये:-*
*नित्य उपासना में* - सद्बुद्धि हेतु नियमित गायत्री मंत्र जप, उगते हुए सूर्य का ध्यान कीजिये। *यह मन को साधने की शक्ति और सामर्थ्य देगा।*
*नित्य साधना में* - मन के घोड़े को सम्हालना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी सवार का ठीक सन्तुलित बैठना है, योग-प्राणायाम-स्वाध्याय द्वारा आत्मशोधन कर मन के सन्तुलन योग्य अपने को योग्य और सुपात्र बनाइये। *यह मन को सन्तुलित करने का गुण देगा।*
*नित्य आराधना में* - सेवा कार्यों को प्रमुखता दीजिये। आत्मीयता का विस्तार कर विश्वामित्र बनिये। कण कण में परमात्मा को देखिए, स्वयं को सृष्टिं संचालन और युगनिर्माण का अभिन्न अंग मानते हुए लोककल्याणार्थ कार्य कीजिये। उदाहरण - नई पीढ़ी के निर्माण - गर्भ सँस्कार और बाल सँस्कार शाला हेतु कार्य कीजिये, अपने बच्चों को भी समाज सेवा में सहयोगी बनाइये। वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण, व्यसनमुक्ति, साधनात्मक आंदोलन इत्यादि में सहभागिता सुनिश्चित कीजिये। *इससे मन दैवीय गुणों से सम्पन्न बनेगा और कदम देवत्व की ओर बढ़ेंगे। विश्वामित्र बनेंगे।*
इस यज्ञ आयोजन में महाकाल से प्रार्थना करते है कि आप सभी दिव्यात्माओं के मनुष्य से देवमानव-महामानव बनने के सफ़र में सहयोग करें। हम सबको सद्बुद्धि मिले, हम सब यज्ञमय जीवन जिये और सन्मार्ग की ओर मन के घोड़े पर लगाम लगा के बढ़ते चले जाएं। *मनुष्य से देवत्व की ओर की यात्रा मंगलमय हो।*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
😇 *मनुष्य से देवता तक का सफ़र थोड़ा कठिन है* क्योंकि मन के घोड़े पर लगाम लगा कर देवात्मा हिमालय की ओर ले चलना होता है। लेकिन *नियमित अभ्यास और वैराग्य से चेतना के शिखर पर पहुंचकर देवत्व की मंजिल पाई जा सकती है*। थोड़ी नित्य मेहनत के बाद आनन्द उल्लास से भरा जीवन जिया जा सकता है।
😊 *मनुष्य बने रहने के लिए भी सन्तुलन जरूरी है।* क्योंकि हम सब देवस्त्व और असुरत्व के बीच मे खड़े है। तो मन को ठहराना होगा। भागदौड़ या तो देवत्व की ओर हो या भागदौड़ हो ही न यह सुनिश्चित करना होगा। सीधे इंसानियत की राह पर चलना होगा। स्वयं को काम-क्रोध-मद-लोभ-दम्भ-अहंकार की ठोकर से बचाना होगा। इंसान बने रहेंगे।
👹 *मनुष्य से नर पिशाच का सफ़र बड़ा आसान है*, कभी गिरने के लिए भी मेहनत की जरूरत होती है भला? बस मन के घोड़े के गुलाम बन जाइये। जो मन करे वो खाइये, जैसा मन करे वो मनोरंजन के उपाय कीजिये। कामना-वासना-तृष्णा और अहंकार का पोषण कीजिये, मन की गुलामी आपको जीते जी नरक में पहुंचा देगी और दुनियाँ की नज़र में नर पिशाच बना देगी।
🙏🏻🙏🏻 *युगऋषि ने गायत्री(सद्बुद्धि) और यज्ञ(सत्कर्म) रूपी दो शशक्त माध्यम दिए हैं, जिनके अवलम्बन से मनुष्य से देवत्व की ओर का सफ़र किया जा सकता है।* आज के यज्ञ आयोजन में हम लोग इसी पर चर्चा परिचर्चा करेंगें।
*मन के घोड़े की लगाम हेतु इन तीन विधियों द्वारा रस्सी का निर्माण कीजिये:-*
*नित्य उपासना में* - सद्बुद्धि हेतु नियमित गायत्री मंत्र जप, उगते हुए सूर्य का ध्यान कीजिये। *यह मन को साधने की शक्ति और सामर्थ्य देगा।*
*नित्य साधना में* - मन के घोड़े को सम्हालना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी सवार का ठीक सन्तुलित बैठना है, योग-प्राणायाम-स्वाध्याय द्वारा आत्मशोधन कर मन के सन्तुलन योग्य अपने को योग्य और सुपात्र बनाइये। *यह मन को सन्तुलित करने का गुण देगा।*
*नित्य आराधना में* - सेवा कार्यों को प्रमुखता दीजिये। आत्मीयता का विस्तार कर विश्वामित्र बनिये। कण कण में परमात्मा को देखिए, स्वयं को सृष्टिं संचालन और युगनिर्माण का अभिन्न अंग मानते हुए लोककल्याणार्थ कार्य कीजिये। उदाहरण - नई पीढ़ी के निर्माण - गर्भ सँस्कार और बाल सँस्कार शाला हेतु कार्य कीजिये, अपने बच्चों को भी समाज सेवा में सहयोगी बनाइये। वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण, व्यसनमुक्ति, साधनात्मक आंदोलन इत्यादि में सहभागिता सुनिश्चित कीजिये। *इससे मन दैवीय गुणों से सम्पन्न बनेगा और कदम देवत्व की ओर बढ़ेंगे। विश्वामित्र बनेंगे।*
इस यज्ञ आयोजन में महाकाल से प्रार्थना करते है कि आप सभी दिव्यात्माओं के मनुष्य से देवमानव-महामानव बनने के सफ़र में सहयोग करें। हम सबको सद्बुद्धि मिले, हम सब यज्ञमय जीवन जिये और सन्मार्ग की ओर मन के घोड़े पर लगाम लगा के बढ़ते चले जाएं। *मनुष्य से देवत्व की ओर की यात्रा मंगलमय हो।*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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