Friday, 1 June 2018

गर्भसंस्कार करवाना और गर्भ का ज्ञान-विज्ञान समझना क्यों जरूरी है

*गर्भसंस्कार करवाना और गर्भ का ज्ञान-विज्ञान समझना क्यों जरूरी है?*

मानवी सत्ता ने तीन कलेवर ओढ़े हैं अर्थात मनुष्य का अस्तित्व तीन सूक्ष्म भागों में विभक्त है। 'स्थूल' अर्थात् दृश्यमान। 'सूक्ष्म' अर्थात् अदृश्य किन्तु अधिक व्यापक अधिक सक्षम। 'कारण' अर्थात् दिव्य लोक से सम्बन्ध ब्राह्मी चेतना के साथ तालमेल बिठाने आदान प्रदान करने में समर्थ ए तीनों ही स्तर क्रमश: अधिकाधिक उच्च स्तर की विशेषताओं विभूतियों से सम्पन्न पाए जाते हैं।

👉🏼 *स्थूल शरीर* क्रियाशील है, मनुष्य के शरीर का वो पार्ट जो दृश्यमान है। जिसे चलते फिरते देखते हैं। लेकिन इसकी क्षमता सीमित है, इसमें असीमित क्षमता प्राप्त करने हेतु यह सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर  पर निर्भर है। इसका निर्माण अन्न और जल से होता है। गर्भ में यह माता के शरीर के रक्तमांस और उसके खाये भोजन से निर्मित होता है। *गर्भस्थ शिशु के शारीरिक स्वास्थ्य हेतु मां का सन्तुलित आहार लेना और व्यायाम जरूरी है।*

👉🏼 *सूक्ष्म शरीर* अत्यंत प्रभावी होता है। यह अदृश्य है। इसका केंद्र मन-मष्तिष्क है। मनुष्य को पशु से श्रेष्ठ यही बनाता है। सांसारिक सफ़लता असफलता इसी पर निर्भर है। मन का भी दो पार्ट है एक स्थूल चेतन मन और दूसरा सूक्ष्म अचेतन-अवचेतन मन। यह 100% चेतन मन और 20% अचेतन मन का उपयोग करता है। गर्भ में यह माता के विचार, चिंतन और मनन से निर्मित होता है। *गर्भस्थ शिशु के मानसिक स्वास्थ्य हेतु मां का अच्छे सन्तुलित विचार चिंतन, योग-प्राणायाम और अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय जरूरी है।*

👉🏼 *कारण शरीर*-  सबसे सूक्ष्म लेयर, आत्मा के *स्व* का केन्द्र हृदय स्थल है जिसे अन्तःकरण भी कहते हैं, मनुष्य के अच्छे या बुरे व्यक्तित्व को निर्धारित करता है। मनुष्य अपने ज्ञान औऱ प्रभाव को कहां और किस दिशा में उपयोग करेगा यही निर्धारित करता है। इसे भाव शरीर भी कहते हैं।  गर्भ में शिशु के भाव शरीर के स्वास्थ्य और सन्तुलित विकास के लिए माता की भावनाएं अच्छी होनी जरूरी है। विभिन्न नकारात्मक आवेश से ग्रस्त माता गर्भ में ही नकारात्मक रुग्ण भावों वाला बच्चा गढ़ देती है। अतः माता जितनी सकारात्मक और अच्छे भावों से युक्त होगी वैसे ही उत्तम भावों से युक्त बच्चे का सकारात्मक व्यक्तित्व का निर्माण सुनिश्चित करेगी। *गर्भस्थ शिशु के उत्तम व्यक्तित्व, अन्तःकरण और मनोभाव के निर्माण हेतु मां का आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाना, नित्य अच्छे प्रेरक गीतों को सुनना, नित्य ध्यान करना अनिवार्य है।*

🙏🏻 माता का इन तीनो शरीर आवरण को समझना अत्यंत आवश्यक है। 🙏🏻

*चिकित्सक केवल गर्भावस्था में स्थूल शरीर का ही परीक्षण कर सकता है।* सूक्ष्म स्तर का परीक्षण करने के उसके पास उपकरण नहीं है। लेकिन सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर पर ही मानवी सत्ता का भविष्य है। स्थूल शरीर के लिए टीके लगते हैं। *सूक्ष्म और कारण शरीर के भी टीके आध्यात्मिक वैज्ञानिक मनोचिकित्सक और आध्यात्मिक रिसर्चर युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य गर्भ सँस्कार(पुंसवन) सँस्कार के माध्यम से दे गए हैं।* यह आध्यात्मिक टीका माता सीता ने लव-कुश के लिए लगवाया था। प्रह्लाद के जन्म के समय प्रह्लाद की मां को देवर्षि नारद ने लगाया था। शिवाजी महाराज की गर्भावस्था में समर्थगुरु रामदास ने जीजाबाई को लगाया था। श्रीराम के जन्म के समय गुरुवशिष्ठ ने कौशल्या जी को लगाया था।

उत्तम समय इस आध्यात्मिक टीके - गर्भ सँस्कार को  *3 माह* और दूसरा *7 माह* है। साथ ही बताई दिनचर्या को मां अनुसरण करती है। या कम से कम एक बार ही जरूर करवाये।

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🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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