Monday, 20 August 2018

समस्या - *मेरी पुत्री ने विवाह से पूर्व किसी पूर्व विवाहित लड़के के प्रेम में पड़कर उससे सम्बन्ध बनाया। जिसकी हमें जानकारी नहीं थी। हमने उसका विवाह सम्भ्रांत परिवार में कर दिया। जहाँ हमारे वर्तमान दामाद को जैसे ही उसके पूर्व सम्बन्धो की जानकारी हुई, मेरी पुत्री द्वारा या अन्य माध्यम से मुझे नहीं पता। उसने मेरी बेटी को छोड़ दिया। पूर्व प्रेमी ने भी उससे पल्ला झाड़ लिया। मानती हूँ मेरी ही परवरिश में कोई कमी रही होगी और सँस्कार न दे पाई। लेकिन अब क्या करूँ? लड़की मरने पर उतारू है, मेरे पति गुस्से में आग बबूला है और घर मे तनावपूर्ण माहौल है। मेरी नींद उड़ गई है। मार्गदर्शन करें।*

समस्या - *मेरी पुत्री ने विवाह से पूर्व किसी पूर्व विवाहित लड़के के प्रेम में पड़कर उससे सम्बन्ध बनाया। जिसकी हमें जानकारी नहीं थी। हमने उसका विवाह सम्भ्रांत परिवार में कर दिया। जहाँ हमारे वर्तमान दामाद को जैसे ही उसके पूर्व सम्बन्धो की जानकारी हुई, मेरी पुत्री द्वारा या अन्य माध्यम से मुझे नहीं पता। उसने मेरी बेटी को छोड़ दिया। पूर्व प्रेमी ने भी उससे पल्ला झाड़ लिया। मानती हूँ मेरी ही परवरिश में कोई कमी रही होगी और सँस्कार न दे पाई। लेकिन अब क्या करूँ? लड़की मरने पर उतारू है, मेरे पति गुस्से में आग बबूला है और घर मे तनावपूर्ण माहौल है। मेरी नींद उड़ गई है। मार्गदर्शन करें।*

समाधान - आत्मीय बहन, समस्या बड़ी गहन और विकट है।

काम वासना का उद्वेग युवा लड़के लड़की सम्हाल नहीं पाते, इसका मुख्य कारण उनका आध्यात्मिक साधक न होना है। मन को साधने की एक मात्र प्रक्रिया है कि बच्चों को बचपन से गायत्री मंत्र जप-ध्यान-स्वाध्याय-प्राणायाम से जोड़ा जाय। इन माध्यमों से इंसान का मन पर नियंत्रण होता है, विवेक जागृत होता है तो वो स्वयं की कामनाओं-भावनाओं को नियंत्रित कर पाता है, किसी के बहकावे में नहीं आता। मन की गाड़ी की ड्राइविंग सिखा देंगे तो जीवन में ऐसी दुर्घटना बच्चो के साथ कभी न होगी।

📚 *आध्यात्मिक काम विज्ञान* , *मानसिक संतुलन* , *दृष्टिकोण ठीक रखें*, *निराशा को पास न फटकने दें* , *व्यवस्था बुद्धि की गरिमा* , *प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल* , *आवेश ग्रस्त होने से अपार हानि* , *जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति*, *आगे बढ़ने की तैयारी* - प्रत्येक युवाओं को अवश्य पढ़ा दें। अपने अन्य बच्चो को पढ़ा दीजिये उनसे यह भूल न हो।

अपने पति और अपनी पुत्री दोनों से बिना शर्माए बात कीजिये कि जो बुरा होना था, वो हो गया। बदनामी होनी थी हो गई। दामाद ने छोड़ दिया। जितना बुरा से बुरा हो सकता था वो हो चुका है। जितनी मानसिक यातना हमें मिलनी थी मिल गयी। अब इससे ज्यादा कुछ बुरा नहीं होगा। अब सब अच्छा होगा, यदि हम साथ मिलकर इस समस्या से उबरने की कोशिश करेंगे। हमारे पास दो रास्ते है या तो हम रोज रोएं लड़ाई झगड़े करें और दोषरोपन एक दूसरे पर करें। या मिल बैठकर समाधान निकाले। चुनाव जैसा होगा आगे की जिंदगी वैसी ही होगी। एक आशा का दीपक यह गहन अंधेरा मिटा देगा।

देखो, कोई भी ससुराल वाले जानबूझकर कर मख्खी नहीं निगलेंगे। यदि किसी भी तरह हमने इसे दोबारा वहां भेजा तो स्थिति बद से बदतर होगी और कुछ नहीं। अतः अब तलाक़ फाइल करो। नई जिंदगी शुरू करो।

बेटी को कहें, आप अपनी मनमानी का खामियाजा तो देख ही रहे हो। सब जगह बदनामी और अपमान हो रहा है। एक शादीशुदा से आपने प्रेम करते वक्त तुमने अपने विवेक से कम नहीं लिया, उसकी पत्नी के बारे में नहीं सोचा था, कभी सोचा था कि जो व्यक्ति अग्नि के समक्ष फेरे जिस लड़की से लिये उस पत्नी को धोखा दे रहा है तो भला उसे तुम्हें धोखा देने में कितना वक्त लगायेगा?

बेटी, मनुष्य से ग़लती होती है, लेकिन जो बार बार गलती करे उसे आदत कहते हैं गलती नहीं। अब तुम्हारे पास दो रास्ते हैं अपनी भूल का प्रायश्चित करो या पुनः नई गलती करने की करो तैयारी करो।

40 दिन में या दो महीने के अंदर सवा लाख गायत्री जप  का अनुष्ठान शुरू करो, जिससे हमें इस समस्या से उबरने का मार्ग मिले। साथ ही इस दौरान उपरोक्त साहित्य पढ़ो। तुम्हारी मानसिक स्थिति सुधरेगी। पुनः पढ़ाई करो और इस शहर से दूर दूसरे शहर में जॉब करो।

मेनका ने विश्वामित्र की तपस्या भंग कर दी थी, उस समय विश्वामित्र जी को तपस्वियों के समाज में बड़ा अपमान सहना पड़ा। सबने उनका मज़ाक उड़ाया। बड़े आये थे तपस्या करने, काम वासना तो सम्हलती नहीं और चले हैं तपस्वी बनने।

विश्वामित्र को जिस क्षण बोध हुआ कि उन्होंने भारी ग़लती कर दी है, उनके पास दो रास्ते थे कि ग्लानि में डूबकर आत्महत्या कर लेते या उस भूल को सुधार कर पुनः तपस्या करते।

उन्होंने भूल सुधारने का मार्ग चुना, अपनी कन्या को एक ऋषि को गोद में दे दिया। मेनका को विदा कर दिया । और पुनः तपस्या में लग गए। थोड़ा ज्यादा वक्त लग गया लक्ष्य प्राप्ति और गायत्री सिद्धि में, लेकिन हासिल कर ही लिया। आज उन्हें सब पूजते है, देवताओं के समान उन्हें सम्मान प्राप्त है।

अतः यदि तुम कुछ बन गयी, लोकसेवा में लग गयी। तो एक न एक दिन तुम्हारे श्रेष्ठ कार्यो में मिला सम्मान आज का अपमान भूला देगा। तुम्हारे नए सफ़ल व्यक्तित्व से नया अच्छा रिश्ता तुम्हे मिलेगा। तुम्हारे अच्छे कार्यो से तुम्हारे माता-पिता को भी पुनः सम्मान मिलेगा।

यदि तुम इस परिस्थिति में आत्महत्या करके मर गयी। तो आत्मा पर बोझ लेकर मरोगी और प्रेतावस्था में तड़पोगी। जब तक उम्र पूरी न होगी तब तक नया शरीर तुम्हे नहीं मिलेगा। साथ तुम्हारी मृत्यु से यह कलंक सदा हमारे माथे में लग जायेगा, सब बोलेंगे देखो ये वही है जिनकी लड़की को उसके पति ने छोड़ दिया था और आत्महत्या कर ली। अब तुम्हारे हाथ मे यह निर्णय है कि जीवनभर के लिए अपने माता-पिता को कलंक देना है, या माता-पिता के साथ मिलकर पुनः उज्ज्वल भविष्य बनाना है।

मैं और तुम्हारे पापा भी तुम्हारे लिए साधना करेंगे, तुम अब अपने भविष्य के पुनर्निर्माण में जुट जाओ। विश्वामित्र जी की तरह इसी जन्म में नए सफ़ल व्यक्तित्व के साथ सम्मान पाओ। पुनः हिम्मत जुटाओ और कुछ ऐसा करो कि हमे तुम पर गर्व हो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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