प्रश्न - *दी, कृष्णजन्माष्टमी के व्रत कब है? पूजन मुहूर्त का वक्त कब है? पूजन विधि बताइये। साथ ही व्रत के बाद पारण(अन्न) कब खाएंगे?*
उत्तर - आत्मीय बहन, कृष्ण जन्माष्टमी रविवार 2 सितम्बर, भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को है, इसी दिन कृष्ण जन्माष्टमी व्रत किया जाएगा और जन्म का उत्सव भी मनाया जाएगा। कृष्ण भगवान का जन्म अर्धरात्रि में रोहणी नक्षत्र में हुआ था। अतः मुख्य पूजन उसी शुभ मुहूर्त पर होता है। टोटल 45 मिनट तक रोहणी नक्षत्र रहेगा जो कि मुख्य पूजन काल भी है, रात 11:57 बजे से 12:43 बजे तक रहेगा।
*कृष्ण जन्माष्टमी व्रत, भोग और पूजा विधि*
अष्टमी के व्रत वाले दिन भगवान कृष्ण के भक्त केवल फलों, दूध, छाछ और रसाहार का सेवन करते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सभी लोग विधि-विधान के साथ व्रत रखकर कृष्ण जी की पूजा करते हैं और अगले दिन अष्टमी तिथि समाप्त होने के बाद ही सुबह नहा धोकर अपना उपवास तोड़ते हैं(अन्न खाते हैं), जिसे पारण कहते है। कुछ लोग पूजन के तुरंत बाद रात को भोजन कर लेते है जो कि धर्म शास्त्र के विरुद्ध है। हिन्दू धर्म में रात्रि पारण वर्जित है। दूसरा दिन और तिथि तभी माना जाता जब उस तिथि में सूर्य उदय हो। यदि सूर्योदय से पहले किसी ने भोजन किया तो जन्माष्टमी का व्रत पूर्ण नहीं माना जाता।
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। अभिषेक के बाद सबको उसका प्रसाद बांटा जाता है।
*पंचामृत का अर्थ है 'पांच अमृत' इसलिये मुख्यरूप से पंचामृत मेंं पॉच सामग्री हाेती है*, थोड़ा आइडिया निम्नलिखित से ले लें -
1- दूध 1 कप
2- दही 1 कप
3- शहद 1/4 चम्मच
4- शुद्ध घी 1/4 चम्मच
5- चीनी या बूरा (स्वादानुसार)
वैसे तो पंचामृत मुख्यतः ऊपर दी गई 5 सामग्री को मिलाकर ही बनाया जाता है, साथ मे नीचे दी गई सामिग्री भी डाल दीजिये:-
👉🏼तुलसी के पत्ते- 4 या 5
👉🏼बारीक कटे हुए मखाने- 1 कप
👉🏼चिरौंजी- 1 चम्मच कप
👉🏼गंगाजल 1 चम्मच
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात्रि को कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं और प्रसाद का सेवन करते हैं। भगवान कृष्ण को दूध से बनी रबड़ी, फल और खीरा का भोग लगाना बहुत ही शुभ माना जाता हैं। धनियां को भूनकर उसमे चीनी/बुरा मिक्स करके उसका पंजीरी बनाकर कृष्ण भगवान को भोग लगाएं। ये सभी प्रसाद व्रत में खाने योग्य होते हैं।
।। *पर्वपूजन क्रम*॥
प्रारम्भ में प्रेरणा संचार के लिए गीत/भजन एवं संक्षिप्त उद्बोधन करके पूजन क्रम आरम्भ करें। यदि सामूहिक कर रहे हैं तो सबको अपने अपने घर से पूजन थाल और 5 घी के दीपक लाने को बोलें। षट्कर्म से रक्षा विधान तक का क्रम अन्य पर्वों की तरह चले। विशेष पूजन में भगवान् कृष्ण का आवाहन, सखा आवाहन एवं गीता आवाहन करें। तीनों का संयुक्त पूजन षोडशोपचार से करें। भगवान् कृष्ण को नैवेद्य के रूप में विशेष रूप से गो द्रव्य चढ़ायें जाएँ। अन्त में यज्ञ- दीपयज्ञ ,समापन देव दक्षिणा सङ्कल्प, संगीत आदि का क्रम रहे।
॥ *श्री कृष्ण आवाहन*॥
ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥ - कृ० गा०.
ॐ वंशी विभूषितकरान्नवनीरदाभात्, पीताम्बरादरुणविम्बफलाधरोष्ठात्।
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात्, कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने॥
ॐ श्रीकृष्णाय नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
॥ *श्रीकृष्ण- सखा आवाहन*॥
ॐ सखायः सं वः सम्यञ्चमिष œ स्तोमं चाग्नये।
वर्षिष्ठाय क्षितीनामूर्जो नप्त्रे सहस्वते॥ - १५.२९
ॐ श्रीकृष्ण- सखिभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
॥ *गीता आवाहन*॥
ॐ गीता सुगीता कर्त्तव्या, किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य, मुखपद्माद्विनिःसृता॥
गीताश्रयेऽहं तिष्ठामि, गीता मे चोत्तमं गृहम्।
गीताज्ञानमुपाश्रित्य, त्रींल्लोकान्पालयाम्यहम्॥
सर्वोपनिषदो गावो, दोग्धा गोपालनन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता, दुग्धं गीतामृतं महत्॥
ॐ श्री गीतायै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
आवाहन के पश्चात्
कृष्णभगवान की मूर्ति हो तो उसे पंचामृत से नहलाये/अभिषेक करें, फ़िर साफ़ जल से नहलाकर वस्त्र आभूषण पहनाए। यदि फोटो है तो यह अभिषेक भावनात्मक मन मे ध्यान में करें।। पंचामृत थोड़ा सा अलग प्रसाद हेतु भी अर्पित करने हेतु रखें। पूजन के बाद अभिषेक का पंचामृत और प्रसाद का पंचामृत मिला दें। फिर प्रसाद रूप में सबको वही बांटे। नहलाते समय *ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः* दोहराते रहें।
पुरुषसूक्त से षोडशोपचारपूजन करें।
॥ *गोद्रव्य- /पंचामृत अर्पण- भोग लगाएं॥*
मन्त्र के साथ पंचामृत भगवान् कृष्ण को अर्पित करें।
ॐ माता रुद्राणां दुहिता वसूनां, स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय, मा गामनागामदितिं वधिष्ट॥ - ऋ० ८.१०१.१५
।। *दीप यज्ञ*।।
सभी से कहें दीप प्रज्वलित कर लें और निम्नलिखित मन्त्रों के साथ भावनात्मक आहुति दें।
👉🏼 *11 गायत्री मंत्र* - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।*
👉🏼5 कृष्ण गायत्री मंत्र - *ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥*
👉🏼3 महामृत्युंजय मंत्र - *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*
👉🏼3 चन्द्र गायत्री मंत्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।*
॥ *सङ्कल्प*॥
अंत मे निम्नलिखित सङ्कल्प बोलकर अक्षत पुष्प माथे में लगाकर कृष्ण भगवान के चरणों मे अर्पित करें।
.< *यहाँ अपना नाम बोलें*>....... नामाहं कृष्णजन्मोत्सवे/ गीताजयन्तीपर्वणि स्वशक्ति- अनुरूपं न्यायपक्षवरणं तत्समर्थनं च करिष्ये। तत्प्रतीकरूपेण....< *यहां धर्म स्थापना और युगपिड़ा शमन हेतु सङ्कल्प बोलें* >.....नियमपालनार्थं संकल्पयिष्ये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, कृष्ण जन्माष्टमी रविवार 2 सितम्बर, भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को है, इसी दिन कृष्ण जन्माष्टमी व्रत किया जाएगा और जन्म का उत्सव भी मनाया जाएगा। कृष्ण भगवान का जन्म अर्धरात्रि में रोहणी नक्षत्र में हुआ था। अतः मुख्य पूजन उसी शुभ मुहूर्त पर होता है। टोटल 45 मिनट तक रोहणी नक्षत्र रहेगा जो कि मुख्य पूजन काल भी है, रात 11:57 बजे से 12:43 बजे तक रहेगा।
*कृष्ण जन्माष्टमी व्रत, भोग और पूजा विधि*
अष्टमी के व्रत वाले दिन भगवान कृष्ण के भक्त केवल फलों, दूध, छाछ और रसाहार का सेवन करते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सभी लोग विधि-विधान के साथ व्रत रखकर कृष्ण जी की पूजा करते हैं और अगले दिन अष्टमी तिथि समाप्त होने के बाद ही सुबह नहा धोकर अपना उपवास तोड़ते हैं(अन्न खाते हैं), जिसे पारण कहते है। कुछ लोग पूजन के तुरंत बाद रात को भोजन कर लेते है जो कि धर्म शास्त्र के विरुद्ध है। हिन्दू धर्म में रात्रि पारण वर्जित है। दूसरा दिन और तिथि तभी माना जाता जब उस तिथि में सूर्य उदय हो। यदि सूर्योदय से पहले किसी ने भोजन किया तो जन्माष्टमी का व्रत पूर्ण नहीं माना जाता।
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। अभिषेक के बाद सबको उसका प्रसाद बांटा जाता है।
*पंचामृत का अर्थ है 'पांच अमृत' इसलिये मुख्यरूप से पंचामृत मेंं पॉच सामग्री हाेती है*, थोड़ा आइडिया निम्नलिखित से ले लें -
1- दूध 1 कप
2- दही 1 कप
3- शहद 1/4 चम्मच
4- शुद्ध घी 1/4 चम्मच
5- चीनी या बूरा (स्वादानुसार)
वैसे तो पंचामृत मुख्यतः ऊपर दी गई 5 सामग्री को मिलाकर ही बनाया जाता है, साथ मे नीचे दी गई सामिग्री भी डाल दीजिये:-
👉🏼तुलसी के पत्ते- 4 या 5
👉🏼बारीक कटे हुए मखाने- 1 कप
👉🏼चिरौंजी- 1 चम्मच कप
👉🏼गंगाजल 1 चम्मच
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात्रि को कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं और प्रसाद का सेवन करते हैं। भगवान कृष्ण को दूध से बनी रबड़ी, फल और खीरा का भोग लगाना बहुत ही शुभ माना जाता हैं। धनियां को भूनकर उसमे चीनी/बुरा मिक्स करके उसका पंजीरी बनाकर कृष्ण भगवान को भोग लगाएं। ये सभी प्रसाद व्रत में खाने योग्य होते हैं।
।। *पर्वपूजन क्रम*॥
प्रारम्भ में प्रेरणा संचार के लिए गीत/भजन एवं संक्षिप्त उद्बोधन करके पूजन क्रम आरम्भ करें। यदि सामूहिक कर रहे हैं तो सबको अपने अपने घर से पूजन थाल और 5 घी के दीपक लाने को बोलें। षट्कर्म से रक्षा विधान तक का क्रम अन्य पर्वों की तरह चले। विशेष पूजन में भगवान् कृष्ण का आवाहन, सखा आवाहन एवं गीता आवाहन करें। तीनों का संयुक्त पूजन षोडशोपचार से करें। भगवान् कृष्ण को नैवेद्य के रूप में विशेष रूप से गो द्रव्य चढ़ायें जाएँ। अन्त में यज्ञ- दीपयज्ञ ,समापन देव दक्षिणा सङ्कल्प, संगीत आदि का क्रम रहे।
॥ *श्री कृष्ण आवाहन*॥
ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥ - कृ० गा०.
ॐ वंशी विभूषितकरान्नवनीरदाभात्, पीताम्बरादरुणविम्बफलाधरोष्ठात्।
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात्, कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने॥
ॐ श्रीकृष्णाय नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
॥ *श्रीकृष्ण- सखा आवाहन*॥
ॐ सखायः सं वः सम्यञ्चमिष œ स्तोमं चाग्नये।
वर्षिष्ठाय क्षितीनामूर्जो नप्त्रे सहस्वते॥ - १५.२९
ॐ श्रीकृष्ण- सखिभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
॥ *गीता आवाहन*॥
ॐ गीता सुगीता कर्त्तव्या, किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य, मुखपद्माद्विनिःसृता॥
गीताश्रयेऽहं तिष्ठामि, गीता मे चोत्तमं गृहम्।
गीताज्ञानमुपाश्रित्य, त्रींल्लोकान्पालयाम्यहम्॥
सर्वोपनिषदो गावो, दोग्धा गोपालनन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता, दुग्धं गीतामृतं महत्॥
ॐ श्री गीतायै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
आवाहन के पश्चात्
कृष्णभगवान की मूर्ति हो तो उसे पंचामृत से नहलाये/अभिषेक करें, फ़िर साफ़ जल से नहलाकर वस्त्र आभूषण पहनाए। यदि फोटो है तो यह अभिषेक भावनात्मक मन मे ध्यान में करें।। पंचामृत थोड़ा सा अलग प्रसाद हेतु भी अर्पित करने हेतु रखें। पूजन के बाद अभिषेक का पंचामृत और प्रसाद का पंचामृत मिला दें। फिर प्रसाद रूप में सबको वही बांटे। नहलाते समय *ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः* दोहराते रहें।
पुरुषसूक्त से षोडशोपचारपूजन करें।
॥ *गोद्रव्य- /पंचामृत अर्पण- भोग लगाएं॥*
मन्त्र के साथ पंचामृत भगवान् कृष्ण को अर्पित करें।
ॐ माता रुद्राणां दुहिता वसूनां, स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय, मा गामनागामदितिं वधिष्ट॥ - ऋ० ८.१०१.१५
।। *दीप यज्ञ*।।
सभी से कहें दीप प्रज्वलित कर लें और निम्नलिखित मन्त्रों के साथ भावनात्मक आहुति दें।
👉🏼 *11 गायत्री मंत्र* - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।*
👉🏼5 कृष्ण गायत्री मंत्र - *ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥*
👉🏼3 महामृत्युंजय मंत्र - *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*
👉🏼3 चन्द्र गायत्री मंत्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।*
॥ *सङ्कल्प*॥
अंत मे निम्नलिखित सङ्कल्प बोलकर अक्षत पुष्प माथे में लगाकर कृष्ण भगवान के चरणों मे अर्पित करें।
.< *यहाँ अपना नाम बोलें*>....... नामाहं कृष्णजन्मोत्सवे/ गीताजयन्तीपर्वणि स्वशक्ति- अनुरूपं न्यायपक्षवरणं तत्समर्थनं च करिष्ये। तत्प्रतीकरूपेण....< *यहां धर्म स्थापना और युगपिड़ा शमन हेतु सङ्कल्प बोलें* >.....नियमपालनार्थं संकल्पयिष्ये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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