Thursday 18 October 2018

प्रश्न - *दी, मैं ऐसा का करूँ या ऐसा क्या बनूँ कि हमेशा ख़ुश-आनन्दित रहूँ? आप जो बोलोगे वो मैं करने को तैयार हूँ, बस मेरे हृदय में सच्चा सुकून और चेहरे पर आनन्द और शांति की आभा हो

प्रश्न - *दी, मैं ऐसा का करूँ या ऐसा क्या बनूँ कि हमेशा ख़ुश-आनन्दित रहूँ? आप जो बोलोगे वो मैं करने को तैयार हूँ, बस मेरे हृदय में सच्चा सुकून और चेहरे पर आनन्द और शांति की आभा हो...मेरा मार्गदर्शन करें...*

उत्तर - आत्मीय भाई, प्रश्न उत्तम और अत्यंत जटिल  है, लेकिन इसका समाधान बड़ा सहज और सरल भी है।

आजकल विज्ञापन एजेंसी, मीडिया लोग मनुष्य की सुख की चाह का भ्रामक समाधान दे रहे हैं:- कुछ कहते है शॉपिंग करो ये खरीदो वो खरीदो सुख मिलेगा, कोई कहता है अमुक बनो सुख मिलेगा, कोई कहता है नशा और पार्टी करो सुख मिलेगा इत्यादि इत्यादि।

ये कुछ ऐसी सलाह है जैसे कस्तूरी मृग का कस्तूरी की गन्ध बाहर ढूंढना या रेगिस्तान में जल के भ्रम के पीछे भागना।

 आपके प्रश्न का उत्तर है कि आपको सरल और सहज़ बनना है, निर्मल मन का बनना है। लेकिन सबसे बड़ी कठिनाई आज के ज़माने में सरल और सहज़ बनना ही है। इतने सरल सहज बन जाओ कि हिंसक पशु हो जा अन्य जीव आपके पालतू हो जाएं।

आनंदित होने को साधारण शब्दो मे मनुष्य के पसीने से तुलना करके देखो।

उदाहरण - पसीना दो प्रकार से आता है, यदि गर्मी ज़्यादा हो। दूसरा या आप कड़ी मेहनत कर रहे हो तो ठंडे मौसम में भी पसीना आता है... पसीना स्टोर करके नहीं रख सकते। उसी तरह आनन्द स्टोर नहीं कर सकते। पसीना शरीर की रसायनिक क्रिया है और आनन्द मन की रसायनिक क्रिया है।

 पसीना निकालना है तो निरन्तर मेहनत चाहिए, आनन्द का स्रोत भीतर से निकालना है तो भी तप रूपी मेहनत करनी पड़ेगी।

जीवन को एरियल व्यू/बर्ड व्यू से देखना सीखना होगा। अर्थात जो कर रहे हो उसे होशपूर्वक करते हुए देखो। अब आप कहोगे कि मैं स्वयं को ऊपर से/एरियल व्यू से कैसे देख सकता हूँ?

भाई हम आत्मा है और यह शरीर हमने पहन रखा है। पुराना होते ही यह शरीर छोड़ के नया धारण कर लेंगे।

 अच्छा एक दिन मेरा बताया नियम ट्राई करो, जैसा बोल रही हूँ वैसा मन मे बोलते हुए कल्पना करना:-

कल जब सुबह उठना तो स्वयं को देखते हुए अनुभव करना यह शरीर उठ रहा है। जो भी कार्य करना उसके साक्षी बनना और उसे देखना। तुम रोज जो भी दिनचर्या पालन करते हो, कार्य करते वो ही करो। बस उसे होशपूर्वक करो, और उसे देखो। जैसे चाय पी रहे हो तो अनुभव करो यह शरीर चाय पी रहा है, यह चाय मुंह से पेट मे गयी और अब पाचन चल रहा है। दिन में प्रत्येक घण्टे कम से कम 1 मिनट अपनी श्वांस के आने जाने को देखो अनुभव करो यह शरीर श्वांस ले रहा है। जब सोना तो अनुभव करना यह शरीर सो रहा है। अनुभव करो कि तुम इस शरीर से परे-पृथक सत्ता हो। न तुम शरीर हो और न ही यह मन बुद्धि तुम हो। तुम तो शरीर और मन-बुद्धि उपकरण को चलाने वाली ऊर्जा आत्मा हो।

देखो शुरू शुरू में हर कार्य बोरिंग और कठिन लगता है। लेकिन निरन्तर लंबे समय तक अभ्यास से वही सरल हो जाता है। जैसे किचन में रोटी बनाना हो या रोड पर गाड़ी चलाना हो, जो शुरू में कठिन था अभ्यस्त होने पर वह सरल हो गया।

इसी तरह बर्ड व्यू/एरियल व्यू से साक्षी भाव से स्वयं को नोटिस करते हुए होशपूर्वक जीना आ जायेगा। तब आनन्द ही आनंद मन मे होगा।

दो पुस्तक - *अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान* और *व्यक्तित्व विकास की उच्चस्तरीय साधनाएं* अवश्य पढो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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