आज पूजा करते हुए एक विचार दिमाग़ में कौंध गया...
*हिंदी कैलेंडर* से आज के दिन को
*कार्तिक शुक्ल दशमी रविवार* विक्रम संवत् 2075।
*इंग्लिश कैलेण्डर में*
*18 नबम्बर 2018, रविवार*
*मुस्लिम हिजरी कैलेंडर में*
10 Rabiʻ I 1440
Umm-Al-Qura calendar
किसी भी धर्म जाति, संस्कृति, सम्प्रदाय के कैलेंडर से आज के दिन का नामकरण करो, या आज का दिन बेनाम रखो तो भी क्या फ़र्क पड़ेगा?
आज का दिन तो कर्मानुसार ही फल देगा, जो मेहनत करेगा वो कमायेगा, जो आलस्य में पड़ा रहेगा उसके कुछ हाथ न आएगा। जो गलत खायेगा वो पेट दर्द से पीड़ित होगा, जो सही खायेगा वो स्वास्थ्य पायेगा...इत्यादि...
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई पारसी इत्यादि को समय 24 घण्टे ही मिले है, समय के मजहबी नामकरण से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।
इस आज के दिन की तरह ही वो परमात्मा सर्वशक्तिमान निराकार है वो भी एक ही है, इसका मज़हबी नामकरण इंसानों के द्वारा करने से परमात्मा को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। जो जिस जाति धर्म का व्यक्ति ध्यान करेगा वो उससे जुड़ेगा। वो तो कर्मानुसार ही फल देगा।
मरने के बाद हमें नाम से नहीं हमारे काम से ही याद किया जाता है। अगेन कर्म ही प्रमुख हुआ न...
समझ नहीं आता, एक शक्ति के अनेक मजहबी नाम रखकर उसके लिए लड़ना कहाँ की अक्लमंदी है? जो बाहर नहीं स्वयं के भीतर ही है उसे बाहर ढूंढना कहाँ की अक्लमंदी है? धार्मिक सम्प्रदाय के नाम पर युद्ध क्यों?
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
*हिंदी कैलेंडर* से आज के दिन को
*कार्तिक शुक्ल दशमी रविवार* विक्रम संवत् 2075।
*इंग्लिश कैलेण्डर में*
*18 नबम्बर 2018, रविवार*
*मुस्लिम हिजरी कैलेंडर में*
10 Rabiʻ I 1440
Umm-Al-Qura calendar
किसी भी धर्म जाति, संस्कृति, सम्प्रदाय के कैलेंडर से आज के दिन का नामकरण करो, या आज का दिन बेनाम रखो तो भी क्या फ़र्क पड़ेगा?
आज का दिन तो कर्मानुसार ही फल देगा, जो मेहनत करेगा वो कमायेगा, जो आलस्य में पड़ा रहेगा उसके कुछ हाथ न आएगा। जो गलत खायेगा वो पेट दर्द से पीड़ित होगा, जो सही खायेगा वो स्वास्थ्य पायेगा...इत्यादि...
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई पारसी इत्यादि को समय 24 घण्टे ही मिले है, समय के मजहबी नामकरण से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।
इस आज के दिन की तरह ही वो परमात्मा सर्वशक्तिमान निराकार है वो भी एक ही है, इसका मज़हबी नामकरण इंसानों के द्वारा करने से परमात्मा को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। जो जिस जाति धर्म का व्यक्ति ध्यान करेगा वो उससे जुड़ेगा। वो तो कर्मानुसार ही फल देगा।
मरने के बाद हमें नाम से नहीं हमारे काम से ही याद किया जाता है। अगेन कर्म ही प्रमुख हुआ न...
समझ नहीं आता, एक शक्ति के अनेक मजहबी नाम रखकर उसके लिए लड़ना कहाँ की अक्लमंदी है? जो बाहर नहीं स्वयं के भीतर ही है उसे बाहर ढूंढना कहाँ की अक्लमंदी है? धार्मिक सम्प्रदाय के नाम पर युद्ध क्यों?
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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