प्रश्न - *प्रणाम दीदी है बहुत से लोग अध्यात्म और राजनीति को मिला देते हैं क्या यह सही है मैं मानती हूं कि माला जाप इत्यादि के बाद राष्ट्र निर्माण के लिए कामना करना उचित है एक पार्टी का अत्याधिक प्रमोशन गायत्री मंत्र के साथ क्या यह सही है क्या यह गायत्री मंत्र और गुरुदेव का डीवैल्युएशन नहीं है?*
उत्तर - *आत्मीय बहन,*
गायत्री मंत्र ब्रह्मशक्ति एक ब्रह्मांडीय ऊर्जा है, इस शक्ति के प्रयोग से आत्मउत्थान, परिवार निर्माण, समाज निर्माण और देशनिर्माण इत्यादि सबकुछ संभव है। अब बिजली/ऊर्जा के प्रयोग से किचन को रौशन करो या पूजन गृह को या महल को या झोपड़ी को, इससे बिजली/ऊर्जा की महत्ता कैसे कम होगी? इसी तरह यदि कोई गायत्री शक्ति के प्रयोग से राजीनीतिक शक्ति बढ़ाना और सांसारिक लाभ लेना चाहता है तो इससे गायत्री की ब्रह्मशक्ति की महत्ता कैसे कम हो सकती है? वह तो महाशक्ति है, जो श्रद्धा से जप करेगा लाभ पायेगा।
बहन, धर्मनीति और राजनीति दोनों अनिवार्य है। लेकिन दोनों में सन्तुलन अनिवार्य है।
ध्यान रखें, एक के प्लेटफार्म में दूसरे के उपयोग और प्रचार प्रसार से बचना चाहिए।
व्हाट्सएप ग्रुप जिस उद्देश्य से बना है उसमें केवल तत्सम्बन्धी पोस्ट डालना चाहिए।
मंच धार्मिक हो तो धर्म से सम्बंधित ही बाते होंनी चाहिए।
यदि धर्म की स्थापना प्रत्येक हृदय में हो गयी और देवत्व जग गया तो देश की राजनीति स्वतः सुधर जाएगी। नींव तो धर्म ही है।
देश के नागरिक होने के कारण धर्म उत्तदायित्व के साथ राजनीतिक उत्तरदायित्व भी निभाना अनिवार्य है।
जनजागृति धर्म क्षेत्र में जितनी अनिवार्य है उतनी ही महत्त्वपूर्ण राजनीति क्षेत्र में भी है।
युगऋषि ने कई सारे साहित्य मतदाता जागरूकता पर लिखा है। समय समय पर अखण्डज्योति में इस पर आर्टिकल भी लिखे हैं। इसे जरूर पढ़ें।
जब धार्मिक पांडु और भीष्म लोग राज्य का त्याग कर देते है, तो धृतराष्ट्र और कौरव जैसे गलत लोगों के हाथ देश चला जाता है जो विनाश को आमंत्रित करता है। हमारा देश धर्म में उन्नत होने के बावजूद ग़ुलाम इसलिए हुआ क्योंकि राजनीतिक एकता और सुरक्षा पर काम नहीं किया गया। जय किसान के साथ जय जवान नहीं हुआ, धर्म की जय के साथ मातृभूमि की सुरक्षा और व्यवस्था की जय न हुई। गीता को रटा गया लेकीन गीता को समझा नहीं गया।
मनुष्य हो और संसार मे हो और जंगल या हिमालय मे एकांत वास नहीं कर रहे हो तो अपने हिस्से की राजनीतिक जिम्मेदारी भी उठाना भी स्वधर्म है। राजनीतिक प्रचार प्रसार पर्सनल लेवल पर पर्सनल या राजनीतिक ग्रुप या one to one करो। लेकिन धार्मिक व्हाट्सएप ग्रुप में अपनी धर्म सम्बन्धी जिम्मेदारी का ही वहन करो। पूजन और भोजन दोनों जिस तरह अलग अलग किया जाता है वैसे ही धर्म और राजनीति को एक साथ मिक्स न करके अलग अलग करो।
उम्मीद है कि आपकी शंका का समाधान हो गया होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - *आत्मीय बहन,*
गायत्री मंत्र ब्रह्मशक्ति एक ब्रह्मांडीय ऊर्जा है, इस शक्ति के प्रयोग से आत्मउत्थान, परिवार निर्माण, समाज निर्माण और देशनिर्माण इत्यादि सबकुछ संभव है। अब बिजली/ऊर्जा के प्रयोग से किचन को रौशन करो या पूजन गृह को या महल को या झोपड़ी को, इससे बिजली/ऊर्जा की महत्ता कैसे कम होगी? इसी तरह यदि कोई गायत्री शक्ति के प्रयोग से राजीनीतिक शक्ति बढ़ाना और सांसारिक लाभ लेना चाहता है तो इससे गायत्री की ब्रह्मशक्ति की महत्ता कैसे कम हो सकती है? वह तो महाशक्ति है, जो श्रद्धा से जप करेगा लाभ पायेगा।
बहन, धर्मनीति और राजनीति दोनों अनिवार्य है। लेकिन दोनों में सन्तुलन अनिवार्य है।
ध्यान रखें, एक के प्लेटफार्म में दूसरे के उपयोग और प्रचार प्रसार से बचना चाहिए।
व्हाट्सएप ग्रुप जिस उद्देश्य से बना है उसमें केवल तत्सम्बन्धी पोस्ट डालना चाहिए।
मंच धार्मिक हो तो धर्म से सम्बंधित ही बाते होंनी चाहिए।
यदि धर्म की स्थापना प्रत्येक हृदय में हो गयी और देवत्व जग गया तो देश की राजनीति स्वतः सुधर जाएगी। नींव तो धर्म ही है।
देश के नागरिक होने के कारण धर्म उत्तदायित्व के साथ राजनीतिक उत्तरदायित्व भी निभाना अनिवार्य है।
जनजागृति धर्म क्षेत्र में जितनी अनिवार्य है उतनी ही महत्त्वपूर्ण राजनीति क्षेत्र में भी है।
युगऋषि ने कई सारे साहित्य मतदाता जागरूकता पर लिखा है। समय समय पर अखण्डज्योति में इस पर आर्टिकल भी लिखे हैं। इसे जरूर पढ़ें।
जब धार्मिक पांडु और भीष्म लोग राज्य का त्याग कर देते है, तो धृतराष्ट्र और कौरव जैसे गलत लोगों के हाथ देश चला जाता है जो विनाश को आमंत्रित करता है। हमारा देश धर्म में उन्नत होने के बावजूद ग़ुलाम इसलिए हुआ क्योंकि राजनीतिक एकता और सुरक्षा पर काम नहीं किया गया। जय किसान के साथ जय जवान नहीं हुआ, धर्म की जय के साथ मातृभूमि की सुरक्षा और व्यवस्था की जय न हुई। गीता को रटा गया लेकीन गीता को समझा नहीं गया।
मनुष्य हो और संसार मे हो और जंगल या हिमालय मे एकांत वास नहीं कर रहे हो तो अपने हिस्से की राजनीतिक जिम्मेदारी भी उठाना भी स्वधर्म है। राजनीतिक प्रचार प्रसार पर्सनल लेवल पर पर्सनल या राजनीतिक ग्रुप या one to one करो। लेकिन धार्मिक व्हाट्सएप ग्रुप में अपनी धर्म सम्बन्धी जिम्मेदारी का ही वहन करो। पूजन और भोजन दोनों जिस तरह अलग अलग किया जाता है वैसे ही धर्म और राजनीति को एक साथ मिक्स न करके अलग अलग करो।
उम्मीद है कि आपकी शंका का समाधान हो गया होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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