*भय का समूल नाश आत्मज्ञान से करूंगा।*
🔥🔥🔥🔥🔥🔥
भय का कारण समझ लो तो,
भय का अस्तित्व ही मिट जाता है,
भय का रहस्य जान लो तो,
भय को जीतने का रास्ता मिल जाता है।
इंसान ने पहले आग से,
बहुत ही ज्यादा भय खाया,
जब उसका रहस्य बूझा तो,
उसी आग पर रोटी सेककर खाया।
पहले देख सांप जहरीला,
सपेरे का बालक भय से घबराया,
पर जब सांप का रहस्य समझा तो,
उसी को बीन बजाकर खूब नचाया।
भय से भय जो करोगे,
भय बड़ा होता जाएगा
तब तो हर झाड़ियों में भूत का साया,
और हर रस्सी में सांप नजर आएगा।
परीक्षा का भय,
केवल उन्हें ही सताता है,
जो वर्षभर आवारागर्दी में,
अपना बहुमूल्य समय गंवाता है।
रिश्ते के टूटने का भय,
केवल उसे ही सताता है,
जो स्वार्थ साधने के लिए,
रिश्ते बनाना चाहता है।
नौकरी छूटने का भय,
केवल उसे ही सताता है,
जो स्वयं की काबिलियत पर,
भरोसा नहीं कर पाता है।
अपने भय को समझो,
उसकी जड़ तक जाओ,
उस को जीतने हेतु,
प्राणपण से जुट जाओ।
स्वयं से प्रश्न पूँछो,
मैं क्यूँ, किसलिए डर रहा हूँ?
क्या किसी घटना के होने की,
आशंका से डर रहा हूँ?
या जो हुआ ही नहीं,
जिसका अस्तित्व ही नहीं है,
उन बातों से डर रहा हूँ?
स्वयं की कल्पना से बने भूत,
या अनहोनी से ही तो,
कहीं मैं नहीं डर रहा हूँ?
जो भय दिन में है,
वो ही भय तो रात को होगा,
जिसका अस्तित्व दिन में ही नहीं,
वो रात को कहाँ से आएगा?
शरीर है तो बीमारी भी होगी,
रिश्ते है तो तक़रार भी होगी,
घर गृहस्थी है तो झंझट भी होगी,
जीवन है तो परेशानी भी होगी।
खेल का मैदान है,
तो विरोधी टीम भी होगी,
देश है,
तो दुश्मन सेना भी होगी।
संघर्ष ही जीवन है,
तो भाई अब भय कैसा?
बहादुरी से लड़ने में ही है,
केवल मज़ा ही मज़ा।
बीमारी का इलाज़ करेंगे,
रिश्तों के लिए बात करेंगे
परेशानियों का समाधान ढूंढेंगे,
विरोधियों को बहादुरी से हराएंगे।
भूतकाल भी,
कभी न कभी वर्तमान में बीता होगा,
भविष्य के अस्तित्व का बीज भी,
वर्तमान में ही बोया होगा।
तुम न भविष्य में जी सकते हो,
न ही भूतकाल में कुछ कर सकते हो,
जो कुछ कर सकते हो,
वो वर्तमान में ही कर सकते हो,
छोड़ो भूतकाल का पछतावा,
छोड़ो भविष्य की चिंता का छलावा,
वर्तमान में बेहतर करने को,
स्वयं को दो प्रोत्साहन और बढ़ावा।
स्वयं से बोलो,
अब डर-डर के नहीं जीना है,
अपने भय को,
आत्मविश्वास से मिटाना है,
अपने भय का,
बहादुरी से करना सामना है ।
जो होगा भाई,
आगे देखा जाएगा,
अब भय करने में यह मन,
इक पल भी न गंवाएगा।
आओ लें यह प्रण आज से!
मैं विजेता हूँ! विजेता था! विजेता ही रहूँगा,
किसी भी कीमत पर भय से न डरूँगा,
अपने भय की जड़ को समझूंगा,
भय का समूल नाश आत्मज्ञान से करूंगा।
अँधेरा कितना भी गहरा हो,
उसे नन्हा सा दीपक भगा देता है,
भय कितना ही क्यों न हो बड़ा हो,
उसे एक छोटा सा आत्मविश्वास हरा देता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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भय का कारण समझ लो तो,
भय का अस्तित्व ही मिट जाता है,
भय का रहस्य जान लो तो,
भय को जीतने का रास्ता मिल जाता है।
इंसान ने पहले आग से,
बहुत ही ज्यादा भय खाया,
जब उसका रहस्य बूझा तो,
उसी आग पर रोटी सेककर खाया।
पहले देख सांप जहरीला,
सपेरे का बालक भय से घबराया,
पर जब सांप का रहस्य समझा तो,
उसी को बीन बजाकर खूब नचाया।
भय से भय जो करोगे,
भय बड़ा होता जाएगा
तब तो हर झाड़ियों में भूत का साया,
और हर रस्सी में सांप नजर आएगा।
परीक्षा का भय,
केवल उन्हें ही सताता है,
जो वर्षभर आवारागर्दी में,
अपना बहुमूल्य समय गंवाता है।
रिश्ते के टूटने का भय,
केवल उसे ही सताता है,
जो स्वार्थ साधने के लिए,
रिश्ते बनाना चाहता है।
नौकरी छूटने का भय,
केवल उसे ही सताता है,
जो स्वयं की काबिलियत पर,
भरोसा नहीं कर पाता है।
अपने भय को समझो,
उसकी जड़ तक जाओ,
उस को जीतने हेतु,
प्राणपण से जुट जाओ।
स्वयं से प्रश्न पूँछो,
मैं क्यूँ, किसलिए डर रहा हूँ?
क्या किसी घटना के होने की,
आशंका से डर रहा हूँ?
या जो हुआ ही नहीं,
जिसका अस्तित्व ही नहीं है,
उन बातों से डर रहा हूँ?
स्वयं की कल्पना से बने भूत,
या अनहोनी से ही तो,
कहीं मैं नहीं डर रहा हूँ?
जो भय दिन में है,
वो ही भय तो रात को होगा,
जिसका अस्तित्व दिन में ही नहीं,
वो रात को कहाँ से आएगा?
शरीर है तो बीमारी भी होगी,
रिश्ते है तो तक़रार भी होगी,
घर गृहस्थी है तो झंझट भी होगी,
जीवन है तो परेशानी भी होगी।
खेल का मैदान है,
तो विरोधी टीम भी होगी,
देश है,
तो दुश्मन सेना भी होगी।
संघर्ष ही जीवन है,
तो भाई अब भय कैसा?
बहादुरी से लड़ने में ही है,
केवल मज़ा ही मज़ा।
बीमारी का इलाज़ करेंगे,
रिश्तों के लिए बात करेंगे
परेशानियों का समाधान ढूंढेंगे,
विरोधियों को बहादुरी से हराएंगे।
भूतकाल भी,
कभी न कभी वर्तमान में बीता होगा,
भविष्य के अस्तित्व का बीज भी,
वर्तमान में ही बोया होगा।
तुम न भविष्य में जी सकते हो,
न ही भूतकाल में कुछ कर सकते हो,
जो कुछ कर सकते हो,
वो वर्तमान में ही कर सकते हो,
छोड़ो भूतकाल का पछतावा,
छोड़ो भविष्य की चिंता का छलावा,
वर्तमान में बेहतर करने को,
स्वयं को दो प्रोत्साहन और बढ़ावा।
स्वयं से बोलो,
अब डर-डर के नहीं जीना है,
अपने भय को,
आत्मविश्वास से मिटाना है,
अपने भय का,
बहादुरी से करना सामना है ।
जो होगा भाई,
आगे देखा जाएगा,
अब भय करने में यह मन,
इक पल भी न गंवाएगा।
आओ लें यह प्रण आज से!
मैं विजेता हूँ! विजेता था! विजेता ही रहूँगा,
किसी भी कीमत पर भय से न डरूँगा,
अपने भय की जड़ को समझूंगा,
भय का समूल नाश आत्मज्ञान से करूंगा।
अँधेरा कितना भी गहरा हो,
उसे नन्हा सा दीपक भगा देता है,
भय कितना ही क्यों न हो बड़ा हो,
उसे एक छोटा सा आत्मविश्वास हरा देता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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