प्रश्न - *दीदी ध्यान में किस चीज़ पे मन केंद्रित किया जाए ओर कितनी देर ध्यान किया जाए*
उत्तर - आत्मीय बहन,
लिओनार्दो दा विंची इटलीवासी, महान चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुशिल्पी, संगीतज्ञ, कुशल यांत्रिक, इंजीनियर तथा वैज्ञानिक था। उसके पास एक लड़की आयी और उसने उससे पूँछा कि आप जैसा महान चित्रकार बनने के लिए मुझे नित्य कितने घण्टे चित्र बनाने का अभ्यास करना चाहिए और कौन सा चित्र बनाना चाहिए।
उस महान चित्रकार ने कहा, बेटी भले 15 मिनट ही चित्र बनाने का अभ्यास करो, मगर जब चित्र बना रही हो और कल्पना का आवेग हो तो तुम और चित्र के अलावा कोई और चीज़ का तुम्हें अहसास नहीं होना चाहिए। मन में कोई अन्य कल्पना या विचार नहीं उभरना चाहिए। शरीर और मन एक लय में होने चाहिए, उस वक्त उस क्षण उस पल संसार को भूल जाना, स्वयं को भूल जाना बस चित्र बनाने में एकाग्र हो जाना। अगर यह साध लोगी महान चित्रकार बन जाओगी। अन्यथा जब मन में ही क्लियर और भव्य इमेज नहीं बना पाई तो कागज में क्लियर और भव्यता नहीं आएगी।
घण्टों अभ्यास बिना एकाग्रता के व्यर्थ है मेरे बच्चे लेकिन इस 15 मिनट की एकाग्रता पाने के लिए शुरू शुरू में घण्टों अभ्यास तो करना पड़ेगा। वस्तुतः कौन सा क्या चित्र बना रही हो यह मायने नहीं रखता, मायने यह रखता है कि मन और शरीर एक लय में सधे कि नहीं, सो जैसा कल्पना मन में किया उसकी हूबहू प्रतिकृति कागज में उतरी कि नहीं। किसी भी चित्र से शुरुआत करो, एक बार हाथ सध गया, तो कुछ भी चित्र बना लोगी।
बहन, धारणा अर्थात देवी-देवता-सूर्य-चन्द्रमा-गुरु इत्यादि में से किसी के भी रूप का मानसिक चित्र । अब यह चित्र तुम्हारे मनस पटल पर इतना क्लियर होना चाहिए, तुम चयनित धारणा पर इतनी एकाग्र तन्मय तदरूप होनी चाहिए कि संसार भूलकर, स्वयं को भूलकर उसमें ही खो जाओ और ठहर जाओ। अब यह 15 करो या घण्टे भर फर्क नहीं पड़ता। इतनी तन्मयता तदरूपता हो कि चयनित धारणा के गुण, शक्तियां, प्रभाव तुममें उभरने लगे। तुम और वह एक हो जाएं। द्वैत मिटकर अद्वैत हो जाये। एक रूप हो जाओ।
अब एक सध गया तो सब सध जाएंगे। जैसे एक चित्र बनाना आ गया अर्थात हाथ सध गया तो कोई भी चित्र बन जायेगा। मन सध गया तो कोई भी धारणा सध जाएगी।
कोई जल्दी सीखता है कोई देर से, सबकी अपनी अपनी क्षमता है। तुम अपनी क्षमता देखो कि बिना हिलेडुले कितने मिनट बैठ सकती हो, फ़िर बिना अन्य विचार के किसी एक विचार पर कितनी देर एकाग्र रह सकती हो। एक बार मन सध गया तो ध्यान घट जाएगा। धारणा का जामन मन रूपी दूध में डालकर भीतर ठहर जाओ।
शुरुआती प्रैक्टिस के लिए आतिजाती श्वांस पर ध्यान केंद्रित करना शुरू करो। जितनी उम्र है उतने मिनट आंख बंद करके और कमर सीधी करके दोनों हाथ गोदी में रखकर यह अभ्यास करो। जब यह अभ्यास सध जाएगा तो जिस भी देवता के ध्यान करोगी उनके गुण तुममें दिखने लग जाएंगे।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन,
लिओनार्दो दा विंची इटलीवासी, महान चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुशिल्पी, संगीतज्ञ, कुशल यांत्रिक, इंजीनियर तथा वैज्ञानिक था। उसके पास एक लड़की आयी और उसने उससे पूँछा कि आप जैसा महान चित्रकार बनने के लिए मुझे नित्य कितने घण्टे चित्र बनाने का अभ्यास करना चाहिए और कौन सा चित्र बनाना चाहिए।
उस महान चित्रकार ने कहा, बेटी भले 15 मिनट ही चित्र बनाने का अभ्यास करो, मगर जब चित्र बना रही हो और कल्पना का आवेग हो तो तुम और चित्र के अलावा कोई और चीज़ का तुम्हें अहसास नहीं होना चाहिए। मन में कोई अन्य कल्पना या विचार नहीं उभरना चाहिए। शरीर और मन एक लय में होने चाहिए, उस वक्त उस क्षण उस पल संसार को भूल जाना, स्वयं को भूल जाना बस चित्र बनाने में एकाग्र हो जाना। अगर यह साध लोगी महान चित्रकार बन जाओगी। अन्यथा जब मन में ही क्लियर और भव्य इमेज नहीं बना पाई तो कागज में क्लियर और भव्यता नहीं आएगी।
घण्टों अभ्यास बिना एकाग्रता के व्यर्थ है मेरे बच्चे लेकिन इस 15 मिनट की एकाग्रता पाने के लिए शुरू शुरू में घण्टों अभ्यास तो करना पड़ेगा। वस्तुतः कौन सा क्या चित्र बना रही हो यह मायने नहीं रखता, मायने यह रखता है कि मन और शरीर एक लय में सधे कि नहीं, सो जैसा कल्पना मन में किया उसकी हूबहू प्रतिकृति कागज में उतरी कि नहीं। किसी भी चित्र से शुरुआत करो, एक बार हाथ सध गया, तो कुछ भी चित्र बना लोगी।
बहन, धारणा अर्थात देवी-देवता-सूर्य-चन्द्रमा-गुरु इत्यादि में से किसी के भी रूप का मानसिक चित्र । अब यह चित्र तुम्हारे मनस पटल पर इतना क्लियर होना चाहिए, तुम चयनित धारणा पर इतनी एकाग्र तन्मय तदरूप होनी चाहिए कि संसार भूलकर, स्वयं को भूलकर उसमें ही खो जाओ और ठहर जाओ। अब यह 15 करो या घण्टे भर फर्क नहीं पड़ता। इतनी तन्मयता तदरूपता हो कि चयनित धारणा के गुण, शक्तियां, प्रभाव तुममें उभरने लगे। तुम और वह एक हो जाएं। द्वैत मिटकर अद्वैत हो जाये। एक रूप हो जाओ।
अब एक सध गया तो सब सध जाएंगे। जैसे एक चित्र बनाना आ गया अर्थात हाथ सध गया तो कोई भी चित्र बन जायेगा। मन सध गया तो कोई भी धारणा सध जाएगी।
कोई जल्दी सीखता है कोई देर से, सबकी अपनी अपनी क्षमता है। तुम अपनी क्षमता देखो कि बिना हिलेडुले कितने मिनट बैठ सकती हो, फ़िर बिना अन्य विचार के किसी एक विचार पर कितनी देर एकाग्र रह सकती हो। एक बार मन सध गया तो ध्यान घट जाएगा। धारणा का जामन मन रूपी दूध में डालकर भीतर ठहर जाओ।
शुरुआती प्रैक्टिस के लिए आतिजाती श्वांस पर ध्यान केंद्रित करना शुरू करो। जितनी उम्र है उतने मिनट आंख बंद करके और कमर सीधी करके दोनों हाथ गोदी में रखकर यह अभ्यास करो। जब यह अभ्यास सध जाएगा तो जिस भी देवता के ध्यान करोगी उनके गुण तुममें दिखने लग जाएंगे।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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