Friday 27 September 2019

प्रश्न - *घर के बच्चों को या गर्भस्थ शिशु को नवरात्रि का आध्यात्मिक, वैज्ञानिक व चिकित्सीय महत्त्व कैसे और क्या बताएं और उन्हें सरल विधि से 9 दिनों में क्या साधना करवाएं?*

प्रश्न - *घर के बच्चों को या गर्भस्थ शिशु को नवरात्रि का आध्यात्मिक, वैज्ञानिक व चिकित्सीय महत्त्व कैसे और क्या बताएं और उन्हें सरल विधि से 9 दिनों में क्या साधना करवाएं?*

उत्तर - प्रिय बच्चों, क्या आप *प्रकृति के सन्तुलन व आपदा निवारण हेतु सामूहिक नवरात्रि साधना 29 सितम्बर से 7 अक्टूबर में अपना योगदान देना चाहते हो?*

*पहले आओ समझते हैं कि नवरात्रि में 9 दिन हम क्यों व्रत तप रखते हैं?*

*आध्यात्मिक कारण* - नवरात्रियों में कुछ ऐसा वातावरण रहता है जिसमें आत्मिक प्रगति के लिए प्रेरणा और अनुकूलता की सहज शुभेच्छा बनते देखी जाती है।  *सूर्य के उदय और अस्त होते समय आकाश में लालिमा छाई रहती है और उस अवधि के समाप्त होते ही वह दृश्य भी तिरोहित होते दीखता है। इसे काल प्रवाह का उत्पादन कह सकते हैं। ज्वार भाटे हर रोज नहीं अमावस्या पूर्णमासी को ही आते हैं।*

उमंगों के सम्बन्ध में भी ऐसी ही बात है कि वे मनुष्य की स्व उपार्जित ही नहीं होतीं वरन् कभी- कभी उनके पीछे किसी अविज्ञात उभार का ऐसा दौर काम करता पाया गया है कि चिन्तन ही नहीं कर्म भी किसी ऐसी दशा में बहने लगता है जिसकी इससे पूर्व वैसी आशा या तैयारी जैसी कोई बात नहीं थी। *ऐसे अप्रत्याशित अवसर तो यदा- कदा ही आते हैं पर नवरात्रि के दिनों अनायास ही अन्तराल में ऐसी हलचलें उठती हैं जिनका अनुसरण करने पर आत्मिक प्रगति की व्यवस्था बनने में ही नहीं सफलता मिलने में भी ऐसा कुछ बन पड़ता है मानो अदृश्य से अप्रत्याशित अनुदान बरसा हो।  ऐसे ही अनेक तथ्यों को ध्यान में रखते हुए तत्वदर्शी ऋषियों, मनीषियों ने नवरात्रि में साधना का अधिक माहात्म्य बताया
है इस बात पर जोर दिया है कि अन्य अवसरों पर न बन पड़े सही पर *नवरात्रि में आध्यात्मिक तप साधना का सुयोग बिठाने का प्रयत्न तो करना ही चाहिए।*

*आयुर्वेद क्या कहता है?* - ऋतु परिवर्तन रोगों को निमंत्रण देता है। इस वक्त शरीर को तन व मन की इम्युनिटी बढाने के लिए जप-तप-यज्ञ करके आध्यात्मिक उपचार करने की आवश्यकता है। फलों के उपवास से त्रिदोष वात-कफ-पित्त नियंत्रित होते हैं साथ ही संचित मल की सफाई होती है। बॉडी डिटॉक्स होती है। शरीर बीमारियों से लड़ने के तैयार होता है।

*यग्योपैथी* - नवरात्र में सामूहिक अधिक से अधिक औषधीय यज्ञ पूर्णाहुति हेतु होते हैं। जो लोगो का सामूहिक इलाज करते हैं। पर्यावरण संतुलन, प्रकृति संवर्धन, प्रदूषण नियंत्रण व रोगाणुओं के शमन में सहायक होते हैं।

*मन्त्र द्वारा मानसिक व आध्यात्मिक उपचार* - समस्त रोगों की जड़ पेट व मन होता है। पेट की सफाई व्रत से व मन की सफाई जप से की जाती है।

हम सब के शरीर लगभग 50 ट्रिलियन कोशो से बने हैं।प्रत्येक शरीर का नन्हा अति सूक्ष्म सेल 1.4 वोल्ट की ऊर्जा रखता है। टोटल 700 ट्रिलियन वोल्ट ऊर्जा हम सबके पास है। ब्रेन हमारा इस ऊर्जा को नियंत्रित करने वाली सरकार है। हमारे विचार कर्मचारी है जो इस ऊर्जा को जैसे विचार हैं उस दिशा में प्रवाहित करते हैं।

ऋषि आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर हममें विद्यमान इस ऊर्जा को जागृत करके सही दिशा में नियोजन का एक प्रोजेक्ट बनाया जिसे अनुष्ठान कहते हैं।

जैसे माता की फोटो देख के हमें उनसे जुड़ी याद आती है, जैसे रेस्टोरेंट में भोजन की तस्वीर देखकर भूख लगने लगती है, उसे पचाने के रस वन लार अंतःस्रावी ग्रन्थियां निकालने लगती है। इसी तरह जब दुर्गा ने नवरुपों का दर्शन हम करते हैं तो हमें आत्मस्वरूप का भान होता है, हमारी आत्म चेतना शक्ति जागृत करने की भूख को उद्वेलित करता है। दिमाग़ में शक्ति के विचार तदनुसार प्रत्येक सेल की ऊर्जा लगभग 700 ट्रिलियन ऊर्जा को शक्ति संचार के लिए उपयोग करने लगते हैं। प्रत्येक शरीर प्राणवान महसूस होता है।

24000 गायत्री मन्त्र का दोहराव(रिपीटीशन) एक एक दिव्य ग्रन्थियों को जागृत करता है। 72 हज़ार सूक्ष्म नाड़ियां झंकृत होती हैं। 114 नाड़ियों के जोड़ में से 2 बाहर हैं और 112  के ज्वाइंट जो शरीर के भीतर हैं जिसे ऊर्जा चक्र कहते हैं को उद्वेलित करती हैं।

मन्त्र द्वारा दिमाग़ समस्त शरीर को आदेश देता है:-

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें,

और जिसप्रकार यज्ञ अग्नि में मिलकर समिधा अग्निवत हो जाती है, वैसे ही हम भी उस सर्वशक्तिमान परमात्मा को धारण कर उसके जैसे ही उससे जुड़कर हम भी प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप इंसान बन जाएं।

👉🏻 नवदुर्गा के नवरुपों में छिपे शक्ति श्रोत व योगसाधना के विभिन्न सौपान है इन्हें समझो व जुड़ जाओ:-

*नौ देवियां और उनके दिन*
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*प्रथम - माँ शैलपुत्री* - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ शैलपुत्री* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'मूलाधार' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से मूलाधार के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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*द्वितीय -मां ब्रह्मचारिणी* - इसका अर्थ- ब्रह्म का आचरण व तप में लीन।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ ब्रह्मचारिणी* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'स्वाधिष्ठान' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से स्वाधिष्ठान चक्र के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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*तृतीय - माँ चंद्रघंटा* - इसका अर्थ- चाँद की तरह शीतलता व अमृत देने वाली।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ चन्द्रघण्टा* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'मणिपुर' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से मणिपुर चक्र के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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*चतुर्थ - कूष्माण्डा* - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ कुष्मांडा* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से अनाहत चक्र के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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*पंचमी - माँ स्कंदमाता* - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ स्कन्दमाता* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से विशुद्ध चक्र के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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*षष्ठी - मां कात्यायनी* - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ कात्यायनी* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'आज्ञाचक्र' चक्र में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से आज्ञाचक्र के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।

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*सप्तमी - माँ कालरात्रि* - इसका अर्थ- काल का नाश करने वाली।

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ कालरात्रि* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' दल में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से सहस्रार दल के सेल्स को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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*अष्टमी - माँ महागौरी* - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।(रविवार 6 अक्टूबर )

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ महागौरी* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन स्थूल शरीर से बाहर आकर सूक्ष्म शरीर में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से सूक्ष्म शरीर को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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*नवमी - माँ सिद्धिदात्री* - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली(सोमवार 7 अक्टूबर)

*मन्त्र* -
या देवी सर्वभूतेषु *माँ सिद्धिदात्री* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

*ध्यान* -  इस दिन साधक का मन निज 'कारण शरीर' में प्रविष्ट होता है। ध्यान के माध्यम से कारण शरीर को ऊर्जावान कर एक्टिवेट करता है।
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बेटे, पदार्थ उसे कहते हैं जिसका भार होता है जो स्थान घेरता है। 99% विज्ञान इसी पदार्थ में उलझा है। लेकिन चेतन जो भारहीन है और स्थान नहीं घेरता लेकिन पदार्थ को जो गति देता है। उसे विज्ञान जगत अभी तक नहीं समझ सका। क्यों जीवित आदमी पानी मे डूब जाता है? क्यों मृत होते ही उसी वजन की लाश तैरने लगती है। वह प्राण ही क्या वजनी था, जिसे विज्ञान अभी तक तौल न सका?  इस चेतन जगत की समझ व पढ़ाई करनी है तो अध्यात्म में ही प्रवेश करना होगा।😇😇

प्रत्येक बच्चा 9 दिन तक एक माला गायत्री मंत्र की और जो पढ़ सकता है वो नित्य एक पेज मन्त्रलेखन करेगा। एक गायत्री चालीसा पढ़ेगा।

इस पोस्ट के दिए चित्र अनुसार सम्बंधित चक्र के स्थान को सोचेगा। मन स्थिर करेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन


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