प्रश्न - *"परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे।" इस युग निर्माण सत्संकल्प 14 वे सूत्र की व्याख्या दे दीजिए।*
उत्तर- आत्मीय भाई,
*'परम्परा'* का शाब्दिक अर्थ है - 'बिना व्यवधान के शृंखला रूप में किसी नियम या कार्यपद्धति का जारी रहना'। परम्परा-प्रणाली में किसी विषय या उपविषय का ज्ञान बिना किसी परिवर्तन के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ियों में संचारित होता रहता है।
नियम व कार्य पद्धति जिस वक्त उनका निर्माण होता है वो उस वक्त जे समय, देश, काल, परिस्थिति अनुसार होता है। वर्तमान में उस नियम व कार्य पद्धति की जरूरत है भी या नहीं यह विवेक की कसौटी पर कस कर देखना चाहिए। यदि बिना परम्परा का औचित्य जाने व उसको समझे करते रहना व दूसरों को मजबूर करना रूढ़िवादीता व संकीर्ण सोच की निशानी होती है।
ठंड में स्वेटर पहनना उचित है, लेकिन गर्मी में पहनना अनुचित। तो समस्या स्वेटर में नहीं है परिस्थिति में है। इसी तरह जब परम्परा बनी तब ठीक थी क्योंकि वो जरूरी थी तब, लेकिन वर्तमान में भी उसकी उपयोगिता बची है या नहीं। इसे विवेक की कसौटी पर उपयोगिता को परख के देखें।
*इसे कहानी के माध्यम से समझें:*-
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1- दो अंधे पति पत्नी थे, दिखता नहीं था तो पत्नी रोटी बनाती तो कुत्ता व बिल्ली के खाने का डर बना रहता। इसलिए पति ने डंडे को दरवाजे पर पीटने की कार्य पद्धति अपनाई, जिससे कुत्ते बिल्ली से बचाव हो सके। उनका बेटा जन्मा जो कि अंधा नहीं था, बचपन से रोटी बनाते वक्त पिता को लाठी पीटते देखा करता था। बड़ा हुआ व उसकी शादी हुई। पति व पत्नी दोनों की आंखें थी। रोटी बनाते वक्त लकड़ी दरवाज़े पर पीटने लगा, बोला यह हमारे घर की परम्परा है🤭🤣
अगर विवेक का उपयोग नहीं करेंगे तो ऐसे ही परम्परा का पालन होगा।
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2- एक साधू महाराज ने दया वश घायल बिल्ली का इलाज़ किया, बिल्ली साधु को बहुत प्यार करती। पर अब एक समस्या हो गयी कि ज्यों ही वो पूजन में बैठते बिल्ली गोद में बैठकर उन्हें डिस्टर्ब करती। तब उन्होंने एक उपाय अपनाया, जब तक ध्यान चलता तब तक उसे गुफा के बाहर पेड़ पर बॉन्ध देते। ध्यान के बाद खोल देते। उन गुरु के अनेक शिष्य थे। सभी शिष्यों ने इसका उल्टा अर्थ सोचा बिल्ली अर्थात मन। सभी शिष्य गुरु की मृत्यु के बाद बिल्ली खरीद खरीद कर लाये और ध्यान से पूर्व पेड़ पर बांधने लगे। यह उनके सम्प्रदाय का अभिन्न अंग बन गया।
🤣
अगर विवेक का उपयोग नहीं करेंगे तो ऐसे ही पूजन परम्परा का पालन होगा।
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3- एक घर में विवाह था, ग़लती से चूहा गर्म पानी के भगौने में मर गया। बहु आने का वक्त हो गया। सास ने सोचा बहु लक्ष्मी है, उससे आगमन से पहले जूठे बर्तन साफ करवा लूँ और घर स्वच्छ कर लूं। तभी मरा चूहा दिखा, तो उसे बाहर फेंकने गयी। बहु व बरातियों ने देखा कि बहु आगमन से पहले मरा चूहा फेंका गया। तब से उस खानदान की परंपरा बन गयी, जबरजस्ती चूहे पकड़कर मारने व बहु आगमन से पहले फेंकने की।
🙏🏻अतः इसीलिए युगऋषि कहते हैं कि *परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व दें*। विवेक की कसौटी पर परम्पराओ को जांचे परखें तब स्वीकार करें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय भाई,
*'परम्परा'* का शाब्दिक अर्थ है - 'बिना व्यवधान के शृंखला रूप में किसी नियम या कार्यपद्धति का जारी रहना'। परम्परा-प्रणाली में किसी विषय या उपविषय का ज्ञान बिना किसी परिवर्तन के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ियों में संचारित होता रहता है।
नियम व कार्य पद्धति जिस वक्त उनका निर्माण होता है वो उस वक्त जे समय, देश, काल, परिस्थिति अनुसार होता है। वर्तमान में उस नियम व कार्य पद्धति की जरूरत है भी या नहीं यह विवेक की कसौटी पर कस कर देखना चाहिए। यदि बिना परम्परा का औचित्य जाने व उसको समझे करते रहना व दूसरों को मजबूर करना रूढ़िवादीता व संकीर्ण सोच की निशानी होती है।
ठंड में स्वेटर पहनना उचित है, लेकिन गर्मी में पहनना अनुचित। तो समस्या स्वेटर में नहीं है परिस्थिति में है। इसी तरह जब परम्परा बनी तब ठीक थी क्योंकि वो जरूरी थी तब, लेकिन वर्तमान में भी उसकी उपयोगिता बची है या नहीं। इसे विवेक की कसौटी पर उपयोगिता को परख के देखें।
*इसे कहानी के माध्यम से समझें:*-
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1- दो अंधे पति पत्नी थे, दिखता नहीं था तो पत्नी रोटी बनाती तो कुत्ता व बिल्ली के खाने का डर बना रहता। इसलिए पति ने डंडे को दरवाजे पर पीटने की कार्य पद्धति अपनाई, जिससे कुत्ते बिल्ली से बचाव हो सके। उनका बेटा जन्मा जो कि अंधा नहीं था, बचपन से रोटी बनाते वक्त पिता को लाठी पीटते देखा करता था। बड़ा हुआ व उसकी शादी हुई। पति व पत्नी दोनों की आंखें थी। रोटी बनाते वक्त लकड़ी दरवाज़े पर पीटने लगा, बोला यह हमारे घर की परम्परा है🤭🤣
अगर विवेक का उपयोग नहीं करेंगे तो ऐसे ही परम्परा का पालन होगा।
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2- एक साधू महाराज ने दया वश घायल बिल्ली का इलाज़ किया, बिल्ली साधु को बहुत प्यार करती। पर अब एक समस्या हो गयी कि ज्यों ही वो पूजन में बैठते बिल्ली गोद में बैठकर उन्हें डिस्टर्ब करती। तब उन्होंने एक उपाय अपनाया, जब तक ध्यान चलता तब तक उसे गुफा के बाहर पेड़ पर बॉन्ध देते। ध्यान के बाद खोल देते। उन गुरु के अनेक शिष्य थे। सभी शिष्यों ने इसका उल्टा अर्थ सोचा बिल्ली अर्थात मन। सभी शिष्य गुरु की मृत्यु के बाद बिल्ली खरीद खरीद कर लाये और ध्यान से पूर्व पेड़ पर बांधने लगे। यह उनके सम्प्रदाय का अभिन्न अंग बन गया।
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अगर विवेक का उपयोग नहीं करेंगे तो ऐसे ही पूजन परम्परा का पालन होगा।
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3- एक घर में विवाह था, ग़लती से चूहा गर्म पानी के भगौने में मर गया। बहु आने का वक्त हो गया। सास ने सोचा बहु लक्ष्मी है, उससे आगमन से पहले जूठे बर्तन साफ करवा लूँ और घर स्वच्छ कर लूं। तभी मरा चूहा दिखा, तो उसे बाहर फेंकने गयी। बहु व बरातियों ने देखा कि बहु आगमन से पहले मरा चूहा फेंका गया। तब से उस खानदान की परंपरा बन गयी, जबरजस्ती चूहे पकड़कर मारने व बहु आगमन से पहले फेंकने की।
🙏🏻अतः इसीलिए युगऋषि कहते हैं कि *परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व दें*। विवेक की कसौटी पर परम्पराओ को जांचे परखें तब स्वीकार करें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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