*सूफ़ी सन्त फ़क़ीर दस्तगीर के प्रश्न व उत्तर सन्त शिरोमणि गुरु नानक देव के*
बगदाद में शिष्य मर्दाना व बाला के साथ संकीर्तन में मग्न गुरु नानक देव पर पत्थरो से हमले होने लगे। मुस्लिमों ने कहा तुम्हें मालूम नहीं कि संगीत और गाना-बजाना इस्लाम में हराम हैं। उन्हें बाँधकर वहाँ के प्रसिद्ध फ़क़ीर दस्तगीर के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
दस्तगीर हैरान तब हुआ जब पत्थरों से चोटिल-घायल और माथे व शरीर से बहता रक्त, फ़िर भी शांत चित्त व मुस्कुराते नानक देव जी। प्रश्नोत्तर शुरू हुआ।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - जानते नहीं इस्लाम में संगीत गाना बजाना हराम है? फिर भी तुमने गुस्ताख़ी की?
*गुरु नानकदेव*- तुम कहते हो अल्लाह एक है, इस दुनियाँ को बनाने वाला एक है, फ़िर उस पर मालिकाना हक कैसे जता सकते हो? यह कैसे तय कर सकते हो कि उसे संगीत, गाना-बजाना पसन्द नहीं? मुझे पता है वो संगीत के माध्यम से मुझसे बात करता है। यह उसकी बन्दगी है। तुम भी हृदय के भाव को गाओ अपनी भाषा मे उसे पसन्द आएगा।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - अच्छा, तो तुम दावा करते हो कि मेरे अल्लाह को जानते हो? मेरा अल्लाह और तुम्हारा रब ईश्वर एक ही है?
*गुरु नानकदेव* - जैसे जल को तुम पानी और हम जल कहते है, क्या बोलकर पीते हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो तो सब पीने वालों की प्यास बुझाता है। जिसे तुम अल्लाह कहते हो उसे कोई ईश्वर कोई रब कोई गॉड कहता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि हम उसे किस नाम से बुलाते हैं? वो सबकी सुनता है।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - अच्छा यह बताओ कि अल्लाह से पहले क्या था?
*गुरु नानकदेव* - तुम्हारे पास पड़े इन मोतियों में इसका उत्तर छुपा है। इन्हें गिनो उत्तर मिल जाएगा।
(फ़क़ीर दस्तगीर मोतियाँ गिनने लगा, एक -दो-तीन-चार)
*गुरु नानकदेव* - तूम गलत गिन रहे हो, हर बार एक से क्यों गिन रहे हो? एक से पहले के नम्बर से गिनो।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - अरे साहब, एक से पहले कुछ नहीं होता। शून्य को नहीं गिना जा सकता। गिनती हमेशा एक से ही शुरू होगी।
*गुरु नानकदेव* - उम्मीद है, उत्तर मिल गया होगा। एक से पहले कुछ नहीं। वह एक न जन्मा न मरेगा। तुमने या तुम्हारे पैगम्बर ने उसे कब जाना या क्या उसका नाम रखा। इससे फर्क नहीं पड़ता। वो तो तुम्हारे पैगम्बर के जानने से पहले भी अस्तित्व में था, पैगम्बर की मृत्यु के बाद भी अस्तित्व में रहेगा। सृष्टि से पहले भी वो था और सृष्टि के बाद भी वो रहेगा।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - यदि वो एक है तो रहता कहां है, कैसे उसे पाया जाय?
*गुरु नानकदेव* - तुम्हारे पास रखा वह दूध का कटोरा मुझे दोगे।
(दस्तगीर ने वह दूध का कटोरा गुरु नानकदेव को दिया। गुरुनानक देव उस दूध में उंगली डालकर जैसे कुछ ढूढ रहे हों हरकत करने लगे)
*फ़क़ीर दस्तगीर*- ऐ बन्दे, तुम दूध में क्या ढूंढ रहे हो?
*गुरु नानकदेव* - घी ढूढ़ रहा हूँ, सुना है दूध में घी होता है। लेकिन आज पता चला लोग झूठे हैं, दूध में घी नहीं होता।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - अरे, घी दूध में ही होता है, लेकिन दूध गर्म कर, उसमें जामन डाल, धैर्य से प्रतीक्षा कर, जमने के बाद उसे मथने पर मक्खन, फिर पुनः मक्खन गर्म कर घी मिलता है। अरे बिना विधिविधान के दूध से घी कैसे निकलेगा?
*गुरु नानकदेव* - अच्छा जी, जैसे दूध में घी व्याप्त है वैसे ही कण कण में परमात्मा जिसे तुम अल्लाह कहते हो वो व्याप्त है।वो मुझमे तुममें और हम सबमें है। वो वृक्ष वनस्पति प्रत्येक जीव में है। दूध गर्म करने की तरह साधक बन मन को तपाओ, उसमें सद्गुरु से लिये गुरुमंत्र का जामन डालो, फिर ध्यानस्थ हो धैर्य से प्रतीक्षा कर, जमने के बाद उसे गहन चिंतन मनन कर मथने पर मक्खन आत्मज्ञान पाओ, फिर पुनः मक्खन गर्म करने की तरह आत्मज्ञान लेकर पुनः तपो तब घी रूपी परमात्मा वह अल्लाह मिलता है। अरे बिना विधिविधान के जब दूध से घी नहीं निकलेगा? तब बिना विधिविधान के परमात्मा कैसे मिलेगा?
*फ़क़ीर दस्तगीर* - समझ गया। अब मुझे बताएं सद्गुरु कैसे मिलेगा? मैं उसे पहचानूंगा कैसे?
*गुरु नानकदेव* - जैसे प्यासा पानी को देखता है, भूखा भोजन को देखता है, वैसे ही सच्चा साधक सद्गुरु को देख लेता है। जो पियक्कड़ शराबी है उसे किसी भी नए शहर में छोड़ दो वो शराब की दुकान ढूढ़ ही लेगा, वैसे ही जो सच्चा ज्ञान पिपासु साधक होगा वो सद्गुरु को ढूढ लेता है। या जब साधक शिष्य की पात्रता सिद्ध कर लेता है तो गुरु शिष्य को ढूढ़ लेता है।जैसे गन्ने से गुड़ बनते ही चींटी गुड़ तक पहुंच जाती है।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - क्या उसे पाने की मेरी तलाश पूरी होगी?
*गुरु नानकदेव* - सच्ची प्यास जगाओ तलाश जरूर पूरी होगी। स्वयं उसे जानने में जुट जाओ, किसने उसे कैसे किस रूप में किस नाम से अनुभव किया? इससे फर्क नहीं पड़ता। यह गूंगे का गुड़ है, उसे केवल कुछ ग्रन्थ पढ़कर उसकी परिभाषा से उसकी मिठास से तृप्त न हो पाओगे। यह सब तो भूख प्यास जगाने का उपक्रम है। आनन्द तो तब आएगा जब स्वयं उसे पाने में जुटोगे, उसे बाहर नहीं स्वयं के भीतर ढूढोगे।
(फ़क़ीर दस्तगीर ने गुरु नानकदेव को बन्धन मुक्त कर दिया, उनका स्वागत सत्कार किया। पहली बार उसने इस्लामिक होते हुए भी, इस्लाम मे संगीत, गाना-बजाना हराम है जानते हुए भी, अपनी भाषा मे सूफी कवव्वाली का आयोजन किया। भक्ति गीत गाये।)
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
बगदाद में शिष्य मर्दाना व बाला के साथ संकीर्तन में मग्न गुरु नानक देव पर पत्थरो से हमले होने लगे। मुस्लिमों ने कहा तुम्हें मालूम नहीं कि संगीत और गाना-बजाना इस्लाम में हराम हैं। उन्हें बाँधकर वहाँ के प्रसिद्ध फ़क़ीर दस्तगीर के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
दस्तगीर हैरान तब हुआ जब पत्थरों से चोटिल-घायल और माथे व शरीर से बहता रक्त, फ़िर भी शांत चित्त व मुस्कुराते नानक देव जी। प्रश्नोत्तर शुरू हुआ।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - जानते नहीं इस्लाम में संगीत गाना बजाना हराम है? फिर भी तुमने गुस्ताख़ी की?
*गुरु नानकदेव*- तुम कहते हो अल्लाह एक है, इस दुनियाँ को बनाने वाला एक है, फ़िर उस पर मालिकाना हक कैसे जता सकते हो? यह कैसे तय कर सकते हो कि उसे संगीत, गाना-बजाना पसन्द नहीं? मुझे पता है वो संगीत के माध्यम से मुझसे बात करता है। यह उसकी बन्दगी है। तुम भी हृदय के भाव को गाओ अपनी भाषा मे उसे पसन्द आएगा।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - अच्छा, तो तुम दावा करते हो कि मेरे अल्लाह को जानते हो? मेरा अल्लाह और तुम्हारा रब ईश्वर एक ही है?
*गुरु नानकदेव* - जैसे जल को तुम पानी और हम जल कहते है, क्या बोलकर पीते हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो तो सब पीने वालों की प्यास बुझाता है। जिसे तुम अल्लाह कहते हो उसे कोई ईश्वर कोई रब कोई गॉड कहता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि हम उसे किस नाम से बुलाते हैं? वो सबकी सुनता है।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - अच्छा यह बताओ कि अल्लाह से पहले क्या था?
*गुरु नानकदेव* - तुम्हारे पास पड़े इन मोतियों में इसका उत्तर छुपा है। इन्हें गिनो उत्तर मिल जाएगा।
(फ़क़ीर दस्तगीर मोतियाँ गिनने लगा, एक -दो-तीन-चार)
*गुरु नानकदेव* - तूम गलत गिन रहे हो, हर बार एक से क्यों गिन रहे हो? एक से पहले के नम्बर से गिनो।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - अरे साहब, एक से पहले कुछ नहीं होता। शून्य को नहीं गिना जा सकता। गिनती हमेशा एक से ही शुरू होगी।
*गुरु नानकदेव* - उम्मीद है, उत्तर मिल गया होगा। एक से पहले कुछ नहीं। वह एक न जन्मा न मरेगा। तुमने या तुम्हारे पैगम्बर ने उसे कब जाना या क्या उसका नाम रखा। इससे फर्क नहीं पड़ता। वो तो तुम्हारे पैगम्बर के जानने से पहले भी अस्तित्व में था, पैगम्बर की मृत्यु के बाद भी अस्तित्व में रहेगा। सृष्टि से पहले भी वो था और सृष्टि के बाद भी वो रहेगा।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - यदि वो एक है तो रहता कहां है, कैसे उसे पाया जाय?
*गुरु नानकदेव* - तुम्हारे पास रखा वह दूध का कटोरा मुझे दोगे।
(दस्तगीर ने वह दूध का कटोरा गुरु नानकदेव को दिया। गुरुनानक देव उस दूध में उंगली डालकर जैसे कुछ ढूढ रहे हों हरकत करने लगे)
*फ़क़ीर दस्तगीर*- ऐ बन्दे, तुम दूध में क्या ढूंढ रहे हो?
*गुरु नानकदेव* - घी ढूढ़ रहा हूँ, सुना है दूध में घी होता है। लेकिन आज पता चला लोग झूठे हैं, दूध में घी नहीं होता।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - अरे, घी दूध में ही होता है, लेकिन दूध गर्म कर, उसमें जामन डाल, धैर्य से प्रतीक्षा कर, जमने के बाद उसे मथने पर मक्खन, फिर पुनः मक्खन गर्म कर घी मिलता है। अरे बिना विधिविधान के दूध से घी कैसे निकलेगा?
*गुरु नानकदेव* - अच्छा जी, जैसे दूध में घी व्याप्त है वैसे ही कण कण में परमात्मा जिसे तुम अल्लाह कहते हो वो व्याप्त है।वो मुझमे तुममें और हम सबमें है। वो वृक्ष वनस्पति प्रत्येक जीव में है। दूध गर्म करने की तरह साधक बन मन को तपाओ, उसमें सद्गुरु से लिये गुरुमंत्र का जामन डालो, फिर ध्यानस्थ हो धैर्य से प्रतीक्षा कर, जमने के बाद उसे गहन चिंतन मनन कर मथने पर मक्खन आत्मज्ञान पाओ, फिर पुनः मक्खन गर्म करने की तरह आत्मज्ञान लेकर पुनः तपो तब घी रूपी परमात्मा वह अल्लाह मिलता है। अरे बिना विधिविधान के जब दूध से घी नहीं निकलेगा? तब बिना विधिविधान के परमात्मा कैसे मिलेगा?
*फ़क़ीर दस्तगीर* - समझ गया। अब मुझे बताएं सद्गुरु कैसे मिलेगा? मैं उसे पहचानूंगा कैसे?
*गुरु नानकदेव* - जैसे प्यासा पानी को देखता है, भूखा भोजन को देखता है, वैसे ही सच्चा साधक सद्गुरु को देख लेता है। जो पियक्कड़ शराबी है उसे किसी भी नए शहर में छोड़ दो वो शराब की दुकान ढूढ़ ही लेगा, वैसे ही जो सच्चा ज्ञान पिपासु साधक होगा वो सद्गुरु को ढूढ लेता है। या जब साधक शिष्य की पात्रता सिद्ध कर लेता है तो गुरु शिष्य को ढूढ़ लेता है।जैसे गन्ने से गुड़ बनते ही चींटी गुड़ तक पहुंच जाती है।
*फ़क़ीर दस्तगीर* - क्या उसे पाने की मेरी तलाश पूरी होगी?
*गुरु नानकदेव* - सच्ची प्यास जगाओ तलाश जरूर पूरी होगी। स्वयं उसे जानने में जुट जाओ, किसने उसे कैसे किस रूप में किस नाम से अनुभव किया? इससे फर्क नहीं पड़ता। यह गूंगे का गुड़ है, उसे केवल कुछ ग्रन्थ पढ़कर उसकी परिभाषा से उसकी मिठास से तृप्त न हो पाओगे। यह सब तो भूख प्यास जगाने का उपक्रम है। आनन्द तो तब आएगा जब स्वयं उसे पाने में जुटोगे, उसे बाहर नहीं स्वयं के भीतर ढूढोगे।
(फ़क़ीर दस्तगीर ने गुरु नानकदेव को बन्धन मुक्त कर दिया, उनका स्वागत सत्कार किया। पहली बार उसने इस्लामिक होते हुए भी, इस्लाम मे संगीत, गाना-बजाना हराम है जानते हुए भी, अपनी भाषा मे सूफी कवव्वाली का आयोजन किया। भक्ति गीत गाये।)
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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