Thursday, 28 November 2019

मन मित्र व मन ही शत्रु

😈 *मन जब दुश्मन हो तो यह होता है*

पेट तो भर जाता है,
पर यह मन नहीं भरता,
मोटापे व रोगों में भी,
यह सदा स्वादलोलुप ही रहता।

पूजन में शरीर जब बैठता है,
तब यह मन वहाँ नहीं ठहरता,
पढ़ने लिखते वक्त भी,
यह मन यूँ ही भटकता रहता।

जो भी है स्वास्थ्यकर,
यह उसे नहीं चुनता,
जो भी है उज्जवलभविष्य के लिए जरूरी,
यह वही नहीं करता।

दुश्मन मन को,
न मेरे स्वास्थ्य की चिंता है,
न मेरे उज्जवलभविष्य की चिंता है,
दुश्मन मन हो तो,
इहलोक और परलोक दोनों निश्चयत: बिगड़ता है।

😇 *मन जब मित्र हो तो यह होता है*

मन पेट को कंट्रोल करता है,
आधे पेट भोजन में भी तृप्त रहता है,
मोटापे व रोगों को होने नहीं देता,
स्वाद को छोड़कर स्वास्थ्य चुनता है।

पूजन में मन यूँ ठहरता है,
कि शरीर का भान ही नहीं रहता है,
पढ़ने लिखते वक्त यूँ एकाग्र रहता है,
पढ़ा हुआ सब लंबे समय तक याद रखता है।

जो भी है स्वास्थ्यकर,
यह केवल वही चुनता है,
जो भी उज्जवलभविष्य के लिए जरूरी,
यह बस वही करता है।

मित्र मन को,
मेरे स्वास्थ्य की चिंता है,
मेरे उज्जवलभविष्य की चिंता है,
मित्र मन हो तो,
इहलोक और परलोक दोनों हमेशा संवरता है।

🙏🏻 *प्रार्थना प्रभु से*

प्रभु मेरे मन को,
अपने चरणों में रमा दो,
मेरे मन को मेरा मित्र बना दो,
इसे मेरे आत्मउद्धार में लगा दो,
मेरे मन को मेरा सच्चा मित्र बना दो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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