Saturday 23 November 2019

प्रश्न - *सकाम पूजन व निष्काम पूजन में कौन श्रेष्ठ है? स्वयं की इच्छाओं की पूर्ति हेतु साधना और लोककल्याण के लिए साधना में कौन श्रेष्ठ है? इनके फ़ायदे व नुकसान क्या है?*

उत्तर - उपरोक्त प्रश्न का उत्तर सुनने से पहले एक घटना सुनिए:-
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एक बच्चा अपने ताऊ जी की दुकान गया, उनके चरण स्पर्श किये व बड़े अच्छे से व्यवहार किया। टॉफी का डब्बा ताऊ जी ने खुश होकर आगे बढाते हुए कहा तुम टॉफ़ी निकाल लो।  बच्चे ने कहा ताऊजी आप ही दे दो।

ताऊ जी ने एक मुट्ठी भरकर उसे टॉफ़ी दे दी, व उससे पूँछा यह बताओ तुमने स्वयं क्यों नहीं लिया? क्या शरमा रहे थे?

बच्चे ने कहा- ताऊ जी मेरे हाथ छोटे हैं व मेरी छोटी मुट्ठी से थोड़ी ही टॉफ़ी निकाल पाता। मग़र जब वही टॉफ़ी आपने दी तो ज़्यादा टॉफ़ी मिली क्योंकि आपकी मुट्ठी मुझसे ज्यादा बड़ी है।

इसी तरह सकाम भक्ति में आप अपनी छोटी मुट्ठी/बुद्धि से थोड़ा ले पाएंगे, यदि निष्काम भक्ति करेंगे तो परमात्मा अपनी मुट्ठी/बुद्धि से देगा तो अनन्त देगा। कृतार्थ हो जाएंगे।

भगवान हमें वह नहीं देता जो हम चाहते हैं, भगवान हमें वह देता है जिसकी हम योग्यता व पात्रता रखते हैं।

सकाम भक्ति अत्यंत आवश्यक हो तो ही करना चाहिए, अन्यथा निष्काम भाव से ही भक्ति व साधना करते रहना चाहिये। उसकी जो इच्छा हो उसे देने देना चाहिए।

सकाम भक्ति व साधना परमात्मा से हमें दूर करता है। निष्काम भक्ति व साधना परमात्मा से हमें जोड़ता है, भक्ति योग -साधना योग सधता है।

सकाम भक्ति में हम होटल में जैसे वेटर को ऑर्डर देते हैं वैसे ही परमात्मा को वेटर की तरह ऑर्डर देते हैं व उन्हें विवश करके अपनी बात मनवाते हैं।

निष्काम भक्ति में हम दास भाव से अपनी स्वामी परमात्मा की सेवा करते हैं। जैसे सती पत्नी अपने को भूलकर पूर्णतया पति को समर्पित हो जाती है, उसी तरह निष्काम भक्ति में आत्मा रूपी पत्नी परमात्मा रूपी पति पर समर्पित हो जाती है। पति फ़िर स्वतः पत्नी का समस्त ख़्याल रखता है व जिम्मेदारी उठाता है।
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इसे एक कहानी से समझो:-

एक राजा अपने लिए पर्सनल सेवक रखना चाहता था। उसने इंटरव्यू ऑर्गनाइज किया। सबसे कुछ प्रश्न पूंछता:-

तुम्हारा नाम क्या है? कहाँ रहते हो? खाने में क्या पसन्द है? तुम्हें क्या पहनना पसंद है? तुम्हारे शौक क्या है?

सब अपना नाम पता व पसन्द-नापसंद बताते वह राजा सबको रिजेक्ट कर देता। अंत मे एक व्यक्ति ने उपरोक्त प्रश्न का उत्तर कुछ ऐसे दिया जिसे राजा ने अपना सेवक चुन लिया।

मेरा वर्तमान नाम मोहन है, लेक़िन अब आप जो चाहें रख लें। आप जहां रखेंगे वही मेरा पता अब से होगा। आप जो भी खिलाएंगे वही मेरी पसन्द होगा। जो पहनाएंगे वही मेरी पसन्द होगा। आपकी सेवा ही मेरा सौभाग्य व शौक होगा। मेरे स्वामी मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपका सेवक बनने पर और आपको प्रशन्न करने पर, मैं वर्तमान जीवन से उत्तम जीवन, भोजन, पहनावा व आश्रय पाऊंगा।

अतः निष्काम भाव से जगत कल्याण के लिए  ही भक्ति साधना करें। यही श्रेष्ठ है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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