प्रश्न - *किसी स्वजन की मृत्यु के पश्चात क्या क्या नियम व विधिव्यस्था अपनानी चाहिए।मनुष्य के शरीर से प्राण निकल जाने पर उसका क्या व कैसे किया जाय..*
उत्तर - जीवन शांत होने व श्वांस थमने के बाद भी दो घण्टे तक मृतक देह को यूँ ही पड़े रहने दें, क्योंकि कई बार दो घण्टे के भीतर पुनः प्राण लौट आते हैं।
मृतक देह के पास अत्यधिक रोना-धोना न करें, अन्यथा मृतक को अशांति व असहजता महसूस होती है। मृतक की जीवात्म अपने मृत देह के आसपास ही मंडराता रहता है।
हिंदू धर्म में अंत्येष्टि सँस्कार एक यज्ञ ही है, पंचतत्वों के शरीर को पुनः पंचतत्वों में विलीन करने की विधिव्यस्था है। अतः मृत्यु हो जाने के दो घण्टे 15 मिनट बाद मृतक देह स्त्री हो तो घर की स्त्रियां व पुरुष हो तो घर के पुरुष मिलकर नहला दें। मस्तक व शरीर पर चंदन पीस कर लेप कर दें, लगा दें। स्वच्छ व धुले वस्त्र पहना दें, व स्त्री हो तो उसके बाल भी ठीक कर दें। सुहागिन हो तो बिंदी व सिंदूर भी लगा दें। बांस की मञ्जूषा जिस पर मृत देह ले जाई जाएगी उसे फूलों से सजा दें। मृतक के दोनों पैर के अंगूठे व दोनों हाथ के अंगूठे कलावे या सफेद धागे से बांध दें। अंगूठे बंधने पर कोई दूसरी आत्मा शरीर में प्रवेश नहीं करती। कुछ पारम्परिक लोकाचार परम्पराएं हो तो वो भी कर लें। घर पर
जो मृतक को मुखाग्नि देगा, वह भी स्नान अवश्य कर ले।
*अत्येष्टि संस्कार विधि से पूर्व इन बातों का रखें ध्यान*
अंत्येष्टि संस्कार विधि से पूर्व मृतक परिजनों को कुछ व्यवस्थाएं करनी पड़ती है। जैसे कि –
1- सबसे पहले मृतक के लिए नए वस्त्र, मृतक शैय्या, उस पर बिछाने-उढ़ाने के लिए कुश एवं सफेद वस्त्र आदि।
2- मृतक शैय्या की सजावट हेतु पुष्प आदि।
3- पिण्डदान के लिए जौ का आटा, एक पाव एवं जौ, तिल चावल आदि मिलाकर तैयार कर लें। अगर जौ का आंटा न मिले तो गेहूँ के आटे में जौ मिलाकर गूंथ लें।
3- कई स्थानों पर संस्कार के लिए अग्नि घर से ले जाने का प्रचलन होता है। यदि ऐसा है तो इसकी व्यवस्था करें अन्यथा श्मशान घाट पर अग्नि देने अथवा मंत्रों के साथ माचिस से अग्नि तैयार करने का क्रम बनाया जा सकता है।
4- पूजन की आरती, थाल, रोली, अक्षत, अगरबत्ती, माचिस आदि।
5- हवन सामग्री, चंदन, अगरबत्ती, सूखी तुलसी, आदि।
6- अगर बरसात का मौसम हो तो आग जलाने के लिए सूखा फूस, पिसी हुई राल या बूरा आदि।
7- पूर्णाहुति के लिए नारियल के गोले में छेद करके घी डालें।
8- वसोर्धारा आदि घृत की आहुति के लिए एक लंबे बांस आदि में ऐसा पात्र बांधकर रखें जिससे घी की आहुति दी जा सके।
अंत्येष्टि सँस्कार का समस्त उपक्रम घर में किये जाने वाले पिंडदान से लेकर श्मशान की कपाल क्रिया तक पुस्तक - 📖 *कर्मकाण्ड भाष्कर* के *अंत्येष्टि सँस्कार* में वर्णित विधिविधान अनुसार अंत्येष्टि सँस्कार, मरणोत्तर सँस्कार व पंचबलि अवश्य करें। यह पुस्तक किसी भी नज़दीकी गायत्री शक्तिपीठ से खरीद सकते हैं या गायत्री शक्तिपीठ से सम्पर्क करके वहाँ के पुरोहित से मार्गदर्शन ले सकते हैं।
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http://literature.awgp.org/book/kram_kand_bhaskar/v2.30
अंत्येष्टि सँस्कार श्मशान में पूर्ण करने के बाद व राख-फूल(श्मशान से मृत देह की राख) को गंगा या किसी अन्य नदी में प्रवाहित कर दें। राखफूल बिनते समय *आत्माराम* नामक हड्डी के स्ट्रुक्चर को ज़रूर जल में प्रवाहित करने के लिए उठाएं। आत्मा राम मनुष्य की बैठी हुई आकृति का स्ट्रक्चर होता है, जिसमें मूलतः आत्मा का निवास माना जाता है। राख फूल को किसी मिट्टी के कलश में ही रखकर उसे कपड़े से बांधकर ही एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाएं।
जिसघर में मृत्यु हुई है उसके रक्तसम्बन्धियों व उस स्थान पर रहने वाले लोगों पर सूतक लगता है। जो व्यक्ति रक्तसम्बन्धी नहीं है उसपर सूतक नहीं लगता। जो रक्तसम्बधी दूसरे शहर या दूसरे देश मे हैं उस पर सूतक नहीं लगता। सूतक अक्सर उसी पर लगता है जिससे मृतक जीवात्मा का मोहबन्धन होता है। जीवात्मा का पुत्र व पुत्री पर सूतक अवश्य लगता है। जिसका अनिवार्यतः पालन करना चाहिए।
10 दिन तक घर के देवी-देवताओं की मूर्ति को नहलाना धुलाना नहीं चाहिए। न स्थूल पूजन में उन्हें दीपक व अगरबत्ती देनी चाहिए, न माला लेकर जप होगा न ही यज्ञ होगा। *इसका मुख्य काऱण है कि इन दस दिनों दीपक केवल मृतात्मा की फ़ोटो के समक्ष जलता है, समस्त श्रद्धा उसी को दी जाती है*। मनोवैज्ञानिक रिसर्च के अनुसार मृतात्मा के शोक से उबरने में परिवार को 10 दिन लगते हैं। अध्यात्मविद के अनुसार मृतक का सूक्ष्म देह, मृतक का औरा व प्रभाव सिमटने व मिटने में 10 दिन का वक्त लगता है। यही सूतक है।
जनेऊ धारी किशोर, युवा स्त्री व पुरुष, वृद्ध स्त्री व पुरुष की मृत्यु के दसवें दिन शुद्धि होगी। व तेरहवें दिन घर में यज्ञ का आयोजन होता है।
*बच्चे की मृत्यु पर 1 दिन का सूतक, किशोर की मृत्यु पर 3 दिन का सूतक और युवा या वृद्ध की मृत्यु पर 10 दिन का सूतक लगता है।*
इस सन्दर्भ में विभिन्न व्यवस्थाओं को लोकाचार या देशाचार के अनुसार उचित महत्व देना चाहिए। अथवा इनसे प्रभावित व्यक्तियों के गुणों- अवगुणों पर विचार करके सूझ- बूझ के साथ इनका कम या अधिक निर्वाह करना चाहिए। अथवा इन्हें आपदाओं आदि के अनुसार प्रयुक्त होने या न होने योग्य मान लेना चाहिए।
युगऋषि के मार्गदर्शन के अनुसार युगतीर्थ- शान्तिकु ञ्ज हरिद्वार में इसी प्रकार विवेकपूर्वक सूतक- शुद्धि का क्रम औसतन ३ दिन में सम्पन्न करा दिया जाता है।
आज के व्यस्त जीवन में श्राद्ध- शुद्धि की लम्बी अवधि के कर्मों का निर्वाह अधिकांश व्यक्तियों के लिए नहीं है, इसलिए अतिव्यस्तता के कारण- उत्तर भारत के अनेक शहरों में तीन दिन में ही सभी कर्म सम्पन्न किए- कराये जाने लगे हैं। जहाँ परिपाटियों के अनुसार लम्बी अवधि के कठिन क्रम किए कराए जाते हैं, वहाँ लोग बहुत परेशानियाँ अनुभव करते हैं।
श्राद्धकर्म श्रद्धा आधारित होते हैं तभी उनका उचित लाभ मिलता है। जहाँ मजबूरी- लाचारी -परेशानी के भाव आ जाते हैं वहाँ श्रद्धाभाव पीछे खिसक जाते हैं और कर्मकाण्डों का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता ।। इसलिए उचित यहीं है कि मन में से भय या असमंजस निकालकर, विवेकपूर्वक उक्त प्रक्रियाओं का समुचित निर्वाह किया जाय। इस सन्दर्भ में नीचे लिखे अनुसार निर्धारण को अपनाया जा सकता है।जन्म और मरण के सूतकों के क्रम में स्थान और वातावरण की शुद्धि के प्रयास विवेकपूर्वक शीघ्र से शीघ्र पूरे किए जायें। इससे सम्बन्धित स्थानों और वस्त्रों की सफाई, भली प्रकार हो। इसके लिए नीम की पत्तियॉ उबालकर तैयार पानी, लाल दवा, फिनायल जैसी सहज सुलभ दवाओं और यज्ञोपचार का उपयोग किया जा सकता है।मानसिक सन्तुलन लाने के लिए सामूहिक जप, कथा- कीर्तन आदि का सहारा लिया जाय। मृत्यु प्रकरण में इस हेतु कुछ लोग परम्परागत ढंग से गरुड़ पुराण का पाठ करवाते हैं। वह बुरा तो नहीं, किन्तु आज के समय में उससे एक रूढ़िवाद का निर्वाह भर हो पाता है। परिवार के लोग उतने लम्बे प्रकरण को न तो सुन पाते हैं और न मरणोत्तर जीवन का सत्य समझ कर उसका लाभ उठा पाते हैं।
इस सन्दर्भ में एक विनम्र सुझाव है कि युगऋषि की लिखी एक छोटी पुस्तक है- 📖 ‘‘ *मरने के बाद हमारा क्या होता है*।’’ उसे लगभग एक डेढ़ घण्टे में पढ़ा, सुनाया या समझाया जा सकता है। यदि कोई अध्ययनशील- विचारशील व्यक्ति प्रभावित परिजनों को वह विषय सुना समझा दे, तो उससे बहुत अच्छे ढंग से अपना उद्देश्य पूरा हो सकता है। इन दिनों *श्रीमद्भागवत गीता का स्वाध्याय भी उत्तम है।*
अन्त्येष्टि के बाद तीन दिन में श्राद्ध सहित शुद्धि का क्रम पूरा किया जा सकता है।
*इसके साथ ही यदि परिजनों की भावना है और व्यवस्था बन सकती है तो १० या १३ दिन तक मृतक का चित्र रखकर उसके सामने तेल का अखण्ड दीपक जलाया जाय*।
परिवार के सदस्य और स्नेही परिजन वहाँ प्रतिदिन कम से कम एक घण्टा इष्टमन्त्र या नाम का सामूहिक जाप करें। मृतात्मा की शान्ति- सद्गति के लिए प्रार्थना करें। श्राद्धकर्म शास्त्रसम्मत तथा विज्ञानसम्मत हैं, इसे पूरी श्रद्धा के साथ पूरा किया जाय। इसके लिए संक्षिप्त सर्वसुलभ और प्रभावशाली पद्धति युग निर्माण मिशन द्वारा तैयाार कर दी गयी है।
सच्चे श्राद्ध के कई लाभ होते हैं, जैसे-अपने पितरों की सन्तुष्टि और सद्गति के लिए अपनी सामर्थ्य भर श्रद्धापूर्वक प्रयास करना हर व्यक्ति का धर्म- कर्तव्य बनता है। इसे पूरा करने वालों की श्रद्धा विकसित होती है, कर्तव्य पूर्ति का सन्तोष मिलता है और पितृदोष जैसी विसंगतियों से बच जाते हैं।श्राद्ध कर्म करने वालों को सन्तुष्ट पितरों के स्नेह अनुदान सहज ही मिलते रहते हैं।श्रद्धा- कृतज्ञता के भावों का विस्तार होता है, उससे सूक्ष्म वातावरण अनुकूल बनता है तथा नई पीढ़ी में भी वे भाव सहजता से जाग जाते हैं।
श्राद्ध के साथ जुड़ी कुरीतियों, अन्ध परम्पराओं (जैसे- खर्चीले- मृतकभोज, आशौच की मनगढ़न्त परिपाटियों आदि) को महत्व न देकर उनका निर्वाह विवेकपूर्वक किया जाय।
हर समाज एवं हर वर्ग के प्रगतिशील, भावनाशील, समझदार व्यक्ति इस दिशा में जन- जागरूकता लाने तथा परिपाटियों को विवेक सम्पन्न बनाने के लिए विशेष प्रयास करें। *मृतक की मुक्ति व सद्गति के लिए वृक्षारोपण उनके नाम पर करवाया जाए*। कुछ स्थूल दान स्वरूप अन्न व वस्त्र गरीबों को दें।
अंत्येष्टि, अस्थि विसर्जन व तीर्थस्थल में यज्ञादि करने के बाद जॉब करने वाले ऑफिस वग़ैरह जा सकते हैं। अपने दैनिक कर्म कर सकते हैं। सूतक के दौरान घर में कोई उत्सव नहीं मनाए जा सकते। विवाह इत्यादि किसी का है तो भी तिथि आगे बढ़वा दें। तेरहवीं के दिन यज्ञादि होने के बाद कोई भी उत्सव व घर के सदस्य के विवाह इत्यादि करवाये जा सकते हैं। एक वर्ष बाद मृतक की बरसी के दिन कोई अन्य उत्सव न मनाएं, केवल मृतात्मा की मुक्ति सद्गति के लिए यज्ञ करवाएं।
किसी त्यौहार के दिन मृत्यु होने पर वह त्यौहार एक वर्ष तक नहीं मनाया जा सकता। दूसरे बरसी के दिन से वह त्योहार मनाया जा सकता है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - जीवन शांत होने व श्वांस थमने के बाद भी दो घण्टे तक मृतक देह को यूँ ही पड़े रहने दें, क्योंकि कई बार दो घण्टे के भीतर पुनः प्राण लौट आते हैं।
मृतक देह के पास अत्यधिक रोना-धोना न करें, अन्यथा मृतक को अशांति व असहजता महसूस होती है। मृतक की जीवात्म अपने मृत देह के आसपास ही मंडराता रहता है।
हिंदू धर्म में अंत्येष्टि सँस्कार एक यज्ञ ही है, पंचतत्वों के शरीर को पुनः पंचतत्वों में विलीन करने की विधिव्यस्था है। अतः मृत्यु हो जाने के दो घण्टे 15 मिनट बाद मृतक देह स्त्री हो तो घर की स्त्रियां व पुरुष हो तो घर के पुरुष मिलकर नहला दें। मस्तक व शरीर पर चंदन पीस कर लेप कर दें, लगा दें। स्वच्छ व धुले वस्त्र पहना दें, व स्त्री हो तो उसके बाल भी ठीक कर दें। सुहागिन हो तो बिंदी व सिंदूर भी लगा दें। बांस की मञ्जूषा जिस पर मृत देह ले जाई जाएगी उसे फूलों से सजा दें। मृतक के दोनों पैर के अंगूठे व दोनों हाथ के अंगूठे कलावे या सफेद धागे से बांध दें। अंगूठे बंधने पर कोई दूसरी आत्मा शरीर में प्रवेश नहीं करती। कुछ पारम्परिक लोकाचार परम्पराएं हो तो वो भी कर लें। घर पर
जो मृतक को मुखाग्नि देगा, वह भी स्नान अवश्य कर ले।
*अत्येष्टि संस्कार विधि से पूर्व इन बातों का रखें ध्यान*
अंत्येष्टि संस्कार विधि से पूर्व मृतक परिजनों को कुछ व्यवस्थाएं करनी पड़ती है। जैसे कि –
1- सबसे पहले मृतक के लिए नए वस्त्र, मृतक शैय्या, उस पर बिछाने-उढ़ाने के लिए कुश एवं सफेद वस्त्र आदि।
2- मृतक शैय्या की सजावट हेतु पुष्प आदि।
3- पिण्डदान के लिए जौ का आटा, एक पाव एवं जौ, तिल चावल आदि मिलाकर तैयार कर लें। अगर जौ का आंटा न मिले तो गेहूँ के आटे में जौ मिलाकर गूंथ लें।
3- कई स्थानों पर संस्कार के लिए अग्नि घर से ले जाने का प्रचलन होता है। यदि ऐसा है तो इसकी व्यवस्था करें अन्यथा श्मशान घाट पर अग्नि देने अथवा मंत्रों के साथ माचिस से अग्नि तैयार करने का क्रम बनाया जा सकता है।
4- पूजन की आरती, थाल, रोली, अक्षत, अगरबत्ती, माचिस आदि।
5- हवन सामग्री, चंदन, अगरबत्ती, सूखी तुलसी, आदि।
6- अगर बरसात का मौसम हो तो आग जलाने के लिए सूखा फूस, पिसी हुई राल या बूरा आदि।
7- पूर्णाहुति के लिए नारियल के गोले में छेद करके घी डालें।
8- वसोर्धारा आदि घृत की आहुति के लिए एक लंबे बांस आदि में ऐसा पात्र बांधकर रखें जिससे घी की आहुति दी जा सके।
अंत्येष्टि सँस्कार का समस्त उपक्रम घर में किये जाने वाले पिंडदान से लेकर श्मशान की कपाल क्रिया तक पुस्तक - 📖 *कर्मकाण्ड भाष्कर* के *अंत्येष्टि सँस्कार* में वर्णित विधिविधान अनुसार अंत्येष्टि सँस्कार, मरणोत्तर सँस्कार व पंचबलि अवश्य करें। यह पुस्तक किसी भी नज़दीकी गायत्री शक्तिपीठ से खरीद सकते हैं या गायत्री शक्तिपीठ से सम्पर्क करके वहाँ के पुरोहित से मार्गदर्शन ले सकते हैं।
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*पुस्तक की ऑनलाईन लिंक* :-
http://literature.awgp.org/book/kram_kand_bhaskar/v2.30
अंत्येष्टि सँस्कार श्मशान में पूर्ण करने के बाद व राख-फूल(श्मशान से मृत देह की राख) को गंगा या किसी अन्य नदी में प्रवाहित कर दें। राखफूल बिनते समय *आत्माराम* नामक हड्डी के स्ट्रुक्चर को ज़रूर जल में प्रवाहित करने के लिए उठाएं। आत्मा राम मनुष्य की बैठी हुई आकृति का स्ट्रक्चर होता है, जिसमें मूलतः आत्मा का निवास माना जाता है। राख फूल को किसी मिट्टी के कलश में ही रखकर उसे कपड़े से बांधकर ही एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाएं।
जिसघर में मृत्यु हुई है उसके रक्तसम्बन्धियों व उस स्थान पर रहने वाले लोगों पर सूतक लगता है। जो व्यक्ति रक्तसम्बन्धी नहीं है उसपर सूतक नहीं लगता। जो रक्तसम्बधी दूसरे शहर या दूसरे देश मे हैं उस पर सूतक नहीं लगता। सूतक अक्सर उसी पर लगता है जिससे मृतक जीवात्मा का मोहबन्धन होता है। जीवात्मा का पुत्र व पुत्री पर सूतक अवश्य लगता है। जिसका अनिवार्यतः पालन करना चाहिए।
10 दिन तक घर के देवी-देवताओं की मूर्ति को नहलाना धुलाना नहीं चाहिए। न स्थूल पूजन में उन्हें दीपक व अगरबत्ती देनी चाहिए, न माला लेकर जप होगा न ही यज्ञ होगा। *इसका मुख्य काऱण है कि इन दस दिनों दीपक केवल मृतात्मा की फ़ोटो के समक्ष जलता है, समस्त श्रद्धा उसी को दी जाती है*। मनोवैज्ञानिक रिसर्च के अनुसार मृतात्मा के शोक से उबरने में परिवार को 10 दिन लगते हैं। अध्यात्मविद के अनुसार मृतक का सूक्ष्म देह, मृतक का औरा व प्रभाव सिमटने व मिटने में 10 दिन का वक्त लगता है। यही सूतक है।
जनेऊ धारी किशोर, युवा स्त्री व पुरुष, वृद्ध स्त्री व पुरुष की मृत्यु के दसवें दिन शुद्धि होगी। व तेरहवें दिन घर में यज्ञ का आयोजन होता है।
*बच्चे की मृत्यु पर 1 दिन का सूतक, किशोर की मृत्यु पर 3 दिन का सूतक और युवा या वृद्ध की मृत्यु पर 10 दिन का सूतक लगता है।*
इस सन्दर्भ में विभिन्न व्यवस्थाओं को लोकाचार या देशाचार के अनुसार उचित महत्व देना चाहिए। अथवा इनसे प्रभावित व्यक्तियों के गुणों- अवगुणों पर विचार करके सूझ- बूझ के साथ इनका कम या अधिक निर्वाह करना चाहिए। अथवा इन्हें आपदाओं आदि के अनुसार प्रयुक्त होने या न होने योग्य मान लेना चाहिए।
युगऋषि के मार्गदर्शन के अनुसार युगतीर्थ- शान्तिकु ञ्ज हरिद्वार में इसी प्रकार विवेकपूर्वक सूतक- शुद्धि का क्रम औसतन ३ दिन में सम्पन्न करा दिया जाता है।
आज के व्यस्त जीवन में श्राद्ध- शुद्धि की लम्बी अवधि के कर्मों का निर्वाह अधिकांश व्यक्तियों के लिए नहीं है, इसलिए अतिव्यस्तता के कारण- उत्तर भारत के अनेक शहरों में तीन दिन में ही सभी कर्म सम्पन्न किए- कराये जाने लगे हैं। जहाँ परिपाटियों के अनुसार लम्बी अवधि के कठिन क्रम किए कराए जाते हैं, वहाँ लोग बहुत परेशानियाँ अनुभव करते हैं।
श्राद्धकर्म श्रद्धा आधारित होते हैं तभी उनका उचित लाभ मिलता है। जहाँ मजबूरी- लाचारी -परेशानी के भाव आ जाते हैं वहाँ श्रद्धाभाव पीछे खिसक जाते हैं और कर्मकाण्डों का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता ।। इसलिए उचित यहीं है कि मन में से भय या असमंजस निकालकर, विवेकपूर्वक उक्त प्रक्रियाओं का समुचित निर्वाह किया जाय। इस सन्दर्भ में नीचे लिखे अनुसार निर्धारण को अपनाया जा सकता है।जन्म और मरण के सूतकों के क्रम में स्थान और वातावरण की शुद्धि के प्रयास विवेकपूर्वक शीघ्र से शीघ्र पूरे किए जायें। इससे सम्बन्धित स्थानों और वस्त्रों की सफाई, भली प्रकार हो। इसके लिए नीम की पत्तियॉ उबालकर तैयार पानी, लाल दवा, फिनायल जैसी सहज सुलभ दवाओं और यज्ञोपचार का उपयोग किया जा सकता है।मानसिक सन्तुलन लाने के लिए सामूहिक जप, कथा- कीर्तन आदि का सहारा लिया जाय। मृत्यु प्रकरण में इस हेतु कुछ लोग परम्परागत ढंग से गरुड़ पुराण का पाठ करवाते हैं। वह बुरा तो नहीं, किन्तु आज के समय में उससे एक रूढ़िवाद का निर्वाह भर हो पाता है। परिवार के लोग उतने लम्बे प्रकरण को न तो सुन पाते हैं और न मरणोत्तर जीवन का सत्य समझ कर उसका लाभ उठा पाते हैं।
इस सन्दर्भ में एक विनम्र सुझाव है कि युगऋषि की लिखी एक छोटी पुस्तक है- 📖 ‘‘ *मरने के बाद हमारा क्या होता है*।’’ उसे लगभग एक डेढ़ घण्टे में पढ़ा, सुनाया या समझाया जा सकता है। यदि कोई अध्ययनशील- विचारशील व्यक्ति प्रभावित परिजनों को वह विषय सुना समझा दे, तो उससे बहुत अच्छे ढंग से अपना उद्देश्य पूरा हो सकता है। इन दिनों *श्रीमद्भागवत गीता का स्वाध्याय भी उत्तम है।*
अन्त्येष्टि के बाद तीन दिन में श्राद्ध सहित शुद्धि का क्रम पूरा किया जा सकता है।
*इसके साथ ही यदि परिजनों की भावना है और व्यवस्था बन सकती है तो १० या १३ दिन तक मृतक का चित्र रखकर उसके सामने तेल का अखण्ड दीपक जलाया जाय*।
परिवार के सदस्य और स्नेही परिजन वहाँ प्रतिदिन कम से कम एक घण्टा इष्टमन्त्र या नाम का सामूहिक जाप करें। मृतात्मा की शान्ति- सद्गति के लिए प्रार्थना करें। श्राद्धकर्म शास्त्रसम्मत तथा विज्ञानसम्मत हैं, इसे पूरी श्रद्धा के साथ पूरा किया जाय। इसके लिए संक्षिप्त सर्वसुलभ और प्रभावशाली पद्धति युग निर्माण मिशन द्वारा तैयाार कर दी गयी है।
सच्चे श्राद्ध के कई लाभ होते हैं, जैसे-अपने पितरों की सन्तुष्टि और सद्गति के लिए अपनी सामर्थ्य भर श्रद्धापूर्वक प्रयास करना हर व्यक्ति का धर्म- कर्तव्य बनता है। इसे पूरा करने वालों की श्रद्धा विकसित होती है, कर्तव्य पूर्ति का सन्तोष मिलता है और पितृदोष जैसी विसंगतियों से बच जाते हैं।श्राद्ध कर्म करने वालों को सन्तुष्ट पितरों के स्नेह अनुदान सहज ही मिलते रहते हैं।श्रद्धा- कृतज्ञता के भावों का विस्तार होता है, उससे सूक्ष्म वातावरण अनुकूल बनता है तथा नई पीढ़ी में भी वे भाव सहजता से जाग जाते हैं।
श्राद्ध के साथ जुड़ी कुरीतियों, अन्ध परम्पराओं (जैसे- खर्चीले- मृतकभोज, आशौच की मनगढ़न्त परिपाटियों आदि) को महत्व न देकर उनका निर्वाह विवेकपूर्वक किया जाय।
हर समाज एवं हर वर्ग के प्रगतिशील, भावनाशील, समझदार व्यक्ति इस दिशा में जन- जागरूकता लाने तथा परिपाटियों को विवेक सम्पन्न बनाने के लिए विशेष प्रयास करें। *मृतक की मुक्ति व सद्गति के लिए वृक्षारोपण उनके नाम पर करवाया जाए*। कुछ स्थूल दान स्वरूप अन्न व वस्त्र गरीबों को दें।
अंत्येष्टि, अस्थि विसर्जन व तीर्थस्थल में यज्ञादि करने के बाद जॉब करने वाले ऑफिस वग़ैरह जा सकते हैं। अपने दैनिक कर्म कर सकते हैं। सूतक के दौरान घर में कोई उत्सव नहीं मनाए जा सकते। विवाह इत्यादि किसी का है तो भी तिथि आगे बढ़वा दें। तेरहवीं के दिन यज्ञादि होने के बाद कोई भी उत्सव व घर के सदस्य के विवाह इत्यादि करवाये जा सकते हैं। एक वर्ष बाद मृतक की बरसी के दिन कोई अन्य उत्सव न मनाएं, केवल मृतात्मा की मुक्ति सद्गति के लिए यज्ञ करवाएं।
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