*अंधापन दो प्रकार का होता है, एक स्थूल व दूसरा सूक्ष्म।*
स्थूल अंधापन या तो जन्मजात होता है या एक्सीडेंट से होता है।
सूक्ष्म अंधापन साधकों में दो कारणों से होता है- पहला दूसरे साधक से ईर्ष्यावश या अहंकार में ठेस पहुंचने पर।
सूक्ष्म अंधापन संसारी लोगों में काम वासना या इच्छाओं की आपूर्ति में बाधा पड़ने से होता है। पुरूष के अहंकार या स्त्री के भावनाओं को ठेस पहुंचने पर होता है। इसे बदले की भावना या प्रतिशोध का अंधापन भी कह सकते हैं।
स्थूल अंधेपन का इलाज़ ऑपरेशन से सम्भव है।
सूक्ष्म अंधेपन का इलाज़ तब तक असम्भव है जब तक कि बदले की भावना में दूसरे को बर्बाद करने का भाव मन से वह व्यक्ति स्वयं निकाल न दे। वह स्वयं के उत्थान में जुटकर जीवन से अप्रिय घटनाक्रम को भूलने का प्रयास करे। ईर्ष्या को मन से निकालने में और अहंकार को घटाने में जो जुटेगा वही सूक्ष्म अंधेपन से मुक्त होगा।
सूक्ष्म अंधे व्यक्ति की पहचान अत्यंत कठिन है, केवल उससे बात करके ही उसके अंधेपन को जाना जा सकता है। जिस व्यक्ति के लिए उसके भीतर अंधापन होगा उसकी चुगली निंदा करने में वो रस लेगा या स्वयं चुगली निंदा करेगा। उसे अपशब्द बोलेगा।
बदले की भावना में अंधा व्यक्ति कितना ही उच्चवकोटी का साधक क्यों न हो, वह अपनी साधना को भी बदले की बलि चढ़ा देता है। इतिहास गवाह है कि लोगों ने तप करके उसका दुरुपयोग बदले की भावना हेतु किया। वह उस पेड़ को काटने से भी नहीं हिचकता जिस पर वह स्वयं बैठा हो।
बदले की भावना में अंधा व्यक्ति बहरा भी हो जाता है। वह उस व्यक्ति की बर्बादी के लिए स्वयं व अपने परिवार को भी बर्बाद करने से पीछे नहीं हटता। बदले की भावना में अंधा व्यक्ति पागलपन व व्यामोह का इस कदर शिकार हो जाता है कि वह अपना अच्छा या बुरा सोचने की परिस्थिति में नहीं होता।
इस अंधेपन से मुक्ति केवल परमात्मा तभी दे सकता है, जब व्यक्ति इससे मुक्त होना स्वयं चाहेगा।
बदले की भावना के महाभारत में जो बर्बाद करने चलता है वह पहले स्वयं बर्बाद होता है और अपने से जुड़े अपनो को बर्बाद करता है। तबाह व बर्बाद जीवन ही जीता है, कभी भी सुकून नहीं मिलता।
*एक सत्य घटना* - तिब्बत में एक बच्चे के चाचा ने उसके पिता की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति हड़प ली, मां व बहन को झूठे आरोप में गांव से निकलवा दिया। बदले की भावना में उस बच्चे ने साधना की व घोर तांत्रिक बना। जब चाचा के घर उसकी छोटी पुत्री का विवाह आयोजन था,पूरा गांव एकत्रित था तब उसने ओलों की तांत्रिक बारिश से सबको मृत्यु के घाट उतार दिया। उसने सोचा था कि बदला पूरा होते ही वह आनन्द से भर जाएगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ, उल्टा उसके हृदय में दर्द व क्षोभ और बढ़ गया। व अशांति व उद्विग्नता से मुक्ति हेतु संतो के शरण मे जाने लगा। कोई सन्त उसे शिष्य बनाने को तैयार न हुआ। तब उसने कई वर्षों तक पश्चाताप किया, तब अंततः उसके गुरु आये और बोले तूने बदले की भावना में जो पाप किया है वो तू अगले कई जन्मों तक भोगेगा। कर्मफ़ल में तुझे पुनः वही पीड़ा रिश्तों से मिलेगी। जितने लोगो को तूने मारा है प्लस उतने लोगों को की मृत्यु पर रोने वाले उससे जुड़े लोग इतने जन्मों तक तू कष्ट भोगेगा। प्रायश्चित व सत्कर्म करते रहो, कुछ इस जन्म में और कुछ अगले जन्मों तक इसको भुगतने के मानसिक रूप से स्वयं को तैयार कर लो। तभी तुम्हें निर्वाण मिलेगा, जब जितनो को मारा है उससे हज़ार गुना लोगो का जीवन तुम बचा सकोगे। आग एक माचिस की तीली से झोपड़ी को लगाई जा सकती है, मगर बुझाने के लिए कई बाल्टी पानी चाहिए। एक बद्दुआ पूरा जीवन तबाह कर देती है, जीवन को सम्हालने के लिए कई सारी दुआएं चाहिए। अतः जन सेवा करो और दुआएं अर्जित करो।
🙏🏻श्वेता, DIYA
स्थूल अंधापन या तो जन्मजात होता है या एक्सीडेंट से होता है।
सूक्ष्म अंधापन साधकों में दो कारणों से होता है- पहला दूसरे साधक से ईर्ष्यावश या अहंकार में ठेस पहुंचने पर।
सूक्ष्म अंधापन संसारी लोगों में काम वासना या इच्छाओं की आपूर्ति में बाधा पड़ने से होता है। पुरूष के अहंकार या स्त्री के भावनाओं को ठेस पहुंचने पर होता है। इसे बदले की भावना या प्रतिशोध का अंधापन भी कह सकते हैं।
स्थूल अंधेपन का इलाज़ ऑपरेशन से सम्भव है।
सूक्ष्म अंधेपन का इलाज़ तब तक असम्भव है जब तक कि बदले की भावना में दूसरे को बर्बाद करने का भाव मन से वह व्यक्ति स्वयं निकाल न दे। वह स्वयं के उत्थान में जुटकर जीवन से अप्रिय घटनाक्रम को भूलने का प्रयास करे। ईर्ष्या को मन से निकालने में और अहंकार को घटाने में जो जुटेगा वही सूक्ष्म अंधेपन से मुक्त होगा।
सूक्ष्म अंधे व्यक्ति की पहचान अत्यंत कठिन है, केवल उससे बात करके ही उसके अंधेपन को जाना जा सकता है। जिस व्यक्ति के लिए उसके भीतर अंधापन होगा उसकी चुगली निंदा करने में वो रस लेगा या स्वयं चुगली निंदा करेगा। उसे अपशब्द बोलेगा।
बदले की भावना में अंधा व्यक्ति कितना ही उच्चवकोटी का साधक क्यों न हो, वह अपनी साधना को भी बदले की बलि चढ़ा देता है। इतिहास गवाह है कि लोगों ने तप करके उसका दुरुपयोग बदले की भावना हेतु किया। वह उस पेड़ को काटने से भी नहीं हिचकता जिस पर वह स्वयं बैठा हो।
बदले की भावना में अंधा व्यक्ति बहरा भी हो जाता है। वह उस व्यक्ति की बर्बादी के लिए स्वयं व अपने परिवार को भी बर्बाद करने से पीछे नहीं हटता। बदले की भावना में अंधा व्यक्ति पागलपन व व्यामोह का इस कदर शिकार हो जाता है कि वह अपना अच्छा या बुरा सोचने की परिस्थिति में नहीं होता।
इस अंधेपन से मुक्ति केवल परमात्मा तभी दे सकता है, जब व्यक्ति इससे मुक्त होना स्वयं चाहेगा।
बदले की भावना के महाभारत में जो बर्बाद करने चलता है वह पहले स्वयं बर्बाद होता है और अपने से जुड़े अपनो को बर्बाद करता है। तबाह व बर्बाद जीवन ही जीता है, कभी भी सुकून नहीं मिलता।
*एक सत्य घटना* - तिब्बत में एक बच्चे के चाचा ने उसके पिता की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति हड़प ली, मां व बहन को झूठे आरोप में गांव से निकलवा दिया। बदले की भावना में उस बच्चे ने साधना की व घोर तांत्रिक बना। जब चाचा के घर उसकी छोटी पुत्री का विवाह आयोजन था,पूरा गांव एकत्रित था तब उसने ओलों की तांत्रिक बारिश से सबको मृत्यु के घाट उतार दिया। उसने सोचा था कि बदला पूरा होते ही वह आनन्द से भर जाएगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ, उल्टा उसके हृदय में दर्द व क्षोभ और बढ़ गया। व अशांति व उद्विग्नता से मुक्ति हेतु संतो के शरण मे जाने लगा। कोई सन्त उसे शिष्य बनाने को तैयार न हुआ। तब उसने कई वर्षों तक पश्चाताप किया, तब अंततः उसके गुरु आये और बोले तूने बदले की भावना में जो पाप किया है वो तू अगले कई जन्मों तक भोगेगा। कर्मफ़ल में तुझे पुनः वही पीड़ा रिश्तों से मिलेगी। जितने लोगो को तूने मारा है प्लस उतने लोगों को की मृत्यु पर रोने वाले उससे जुड़े लोग इतने जन्मों तक तू कष्ट भोगेगा। प्रायश्चित व सत्कर्म करते रहो, कुछ इस जन्म में और कुछ अगले जन्मों तक इसको भुगतने के मानसिक रूप से स्वयं को तैयार कर लो। तभी तुम्हें निर्वाण मिलेगा, जब जितनो को मारा है उससे हज़ार गुना लोगो का जीवन तुम बचा सकोगे। आग एक माचिस की तीली से झोपड़ी को लगाई जा सकती है, मगर बुझाने के लिए कई बाल्टी पानी चाहिए। एक बद्दुआ पूरा जीवन तबाह कर देती है, जीवन को सम्हालने के लिए कई सारी दुआएं चाहिए। अतः जन सेवा करो और दुआएं अर्जित करो।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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