Friday, 22 November 2019

प्रश्न - *ध्यान(Meditation) व एकाग्रता(Concentration) में क्या अंतर हैध्यान व एकाग्रता में अंतर?*

प्रश्न - *ध्यान(Meditation) व एकाग्रता(Concentration) में क्या अंतर है?*

उत्तर - एकाग्रता ध्यान का एक प्रतिफल है। ध्यान में एकाग्रता का विकेंद्रीकर्ण हो जाता है।

आपकी शायद यह धारणा हो की ध्यान का अर्थ है मन को एक स्थान पर एकाग्र कर लेना। यह उचित नहीं है। वास्तव में ध्यान एकाग्रता के साथ भी व एकाग्रता के बिना भी होता है। ध्यान के घटित होने के अनेक मार्ग हैं, एकाग्रता उनमें से एक है।

 आप को काम करते समय एकाग्रता की आवश्यकता होती है, लेकिन ध्यान  करने के लिए आपको एकाग्रता की आवश्यकता नहीं है।

किसी भी कार्य को सतर्कता के साथ और मन का केंद्रित करके करना एकाग्रता कहलाता हैं। जैसे नोट गिनते वक़्त व्यक्ति एकाग्र होता है, सच्चा विद्यार्थी पढ़ते वक्त एकाग्र होता है, साइंटिस्ट अपनी रिसर्च पर एकाग्र होता है।

एकाग्रता एक मानसिक क्रिया है।

ध्यान की प्रथम सीढ़ी एकाग्रता भी हो सकती है, ध्यान की चुनी हुई धारणा पर एकाग्र होने पर ध्यान घटना में मदद मिल सकती है।

ध्यान एक अक्रिया है।

जैसे बीज बोना एक क्रिया है, लेकिन बीज से पौधा निकलना एक अक्रिया है। दूध में जामन डालना एक क्रिया है, लेकिन दूध से दही बनना एक अक्रिया है।

ध्यान एक योग है, इसमें जुड़ना अनिवार्य है, तन्मयता तल्लीनता व तदरूपता ध्यान के अनिवार्य घटक हैं। बीज से पौधा बनने पर बीज का अस्तित्व ख़त्म हो जाता है। दूध से दही बनने पर दूध का मूल अस्तित्व खत्म हो जाता है। फ़िर पौधा शेष बचता है, फ़िर दही शेष बचता है।

इसी तरह ध्यान हेतु जब साधक मन के दूध में ईश्वरीय जामन डालकर स्थिर बैठता है। तक ध्यान योग घटित होता है, तब साधक का अस्तित्व मिटता है, उसमें देवत्व शेष बचता है। नर - बीज है और ध्यान मार्ग से नारायण - वृक्ष बनने की विधिव्यस्था है।

जब तक बीज है तबतक पौधा नहीं,
जब पौधा बन गया तो बीज शेष नहीं बचेगा।

इसीतरह

जब तक *मैं* है तबतक *हरि* नहीं,
जब *हरि* आएगा तो *मैं* शेष नहीं बचेगा।

प्रेम गली अति संकरी, जा में दो न समाय

बीज पौधे को बाहर नहीं पा सकता, जो उसमें ही विद्यमान है उसे पाने के लिए उसे गलना व मिटना होगा। भक्त भगवान को बाहर नहीं पा सकता, जो उसमें विद्यमान है उसे बाहर लाने के लिए *मैं* को गलना व मिटना होगा।

ध्यान कुछ पाने के लिए नहीं है, ध्यान तो नर से नारायण बनने का राजमार्ग है।

पुस्तक - *प्रसुप्ति से जागृति की ओर* जरूर पढ़ें

🙏🏻श्वेता, DIYA

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