Thursday, 5 December 2019

सुख और दुःख दोनों से परे जाओ

*सुख और दुःख दोनों से परे जाओ*

सिक्के के दो पहलू,
एक चित और दूजा पट,
जीवन के दो पहलू,
एक सुख और दूजा दुःख,
समय के दो पहलू,
एक दिन और दूजा रात,
सृष्टि के भी दो पहलू,
एक जड़ और दूजा चेतन,

जो एक दूसरे के हैं विपरीत,
फ़िर भी हैं वो साथ साथ,
एक दूसरे से ही,
 रहता है उन सबका सह अस्तित्व।

"दुःख" से मुक्ति चाहिए तो,
"सुख" को भी त्यागना होगा,
"काँटो" से मुक्ति चाहिए तो,
"फूलों" को भी त्यागना होगा,
किसी एक का त्याग सर्वथा असम्भव है,
शरीर व आत्मा दोनों के बिना क्या जीवन सम्भव हैं?

एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही कहाँ है?
"दुःख" के बिना "सुख" की अनुभूति ही कहाँ है?
"हां" के बिना "ना" को कोई समझेगा कैसे?
"आत्मा" के बिना "शरीर" चलेगा कैसे?
"शरीर" के बिना "आत्मा" सृजन करेगा कैसे?
*जड़* के बिना *चेतन* अभिव्यक्त होगा कैसे?

फूल की ख़ुशबू चाहिए,
तो काँटो को भी सहर्ष स्वीकार करो,
जीवन में सुख चाहिए,
तो दुःख को भी सहर्ष अंगीकार करो,
न सुख में सुखी हो,
न दुःख में दुःखी हो,
दोनों में दृष्टा बनकर,
सर्वथा तटस्थ रहो,
जो भी घट रहा है,
बस उसके प्रति साक्षी भाव रखो,
यह रंगमंच है,
जीवन की एक फ़िल्म चल रही है,
कुछ कलाकारों के साथ
तुम भी अपना रोल कर रहे हो,
बस ऐसा रोल करो कि,
पर्दा गिर जाए,
तालियां बजती रहें,
तुम्हारे रोल से,
लोग जन प्रेरित होते रहें,
फ़िल्म में निर्लिप्त होकर,
अपना रोल करते रहो,
इस रंगमंच में अपना कार्य,
पूर्ण निष्ठा से करते रहो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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