प्रश्न - *दी, मैं शिक्षक हूँ, बच्चे आजकल स्कूल नहीं आना चाहते व क्लास अटेंड करने में अरुचि दिखाते हैं? क्या करें?*
उत्तर - आत्मीय बहन,
जंग लगा लोहा हो तो चुम्बक से नहीं आकर्षित होता या चुम्बक अयोग्य हो तो भी लोहा आकर्षित नहीं होता।
*शिक्षक का व्यक्तित्व चुम्बक है और विद्यार्थी का व्यक्तित्व लोहे के टुकड़े के समान हैं। चुम्बक की क्षमता पर बहुत कुछ निर्भर करता है।*
स्कूल का डेकोरेशन और वातावरण से भी ऊपर शिक्षक का व्यवहार और शिक्षण में दक्षता बच्चों को क्लास में उपस्थित रहने को प्रेरित करती है।
*वेदों में कहा गया है, जिस जगह ध्यान केंद्रित होगा ऊर्जा उसी ओर प्रवाहित होगी। आध्यात्मिक अंतर्जगत के चक्रों के जागरण में भी ध्यान ही एक मात्र माध्यम होता है।*
अब यही नियम संसार मे भी लागू है और क्लास में भी लागू है।
👇🏻
*शिक्षक का ध्यान कहाँ केंद्रित है?*
👉🏻कमाने/आय में
👉🏻या सम्बन्धित विषय के कोर्स को कम्प्लीट करने में
👉🏻या बालक के सर्वांगीण विकास में?
कहाँ है शिक्षक का ध्यान?
👇🏻
*शिक्षक स्वयं को क्या समझता है?* 👉🏻बच्चों का गुरु (गुरु अर्थात जीवन का अँधेरा मिटा सकें ऐसा व्यक्ति गढ़ने वाला)
👉🏻या सब्जेक्ट का टीचर या
👉🏻पढ़ाने की मजदूरी करके कमाने वाला मज़दूर या
👉🏻बच्चे पढंकर कुछ कमा सकें ऐसी सुविधा देने वाला फैसिलिटेटर?
वह जो स्वयं को समझेगा वही तदनुसार व्यवहार करेगा, वैसे ही विचार प्रवाह व तरंग उतपन्न होगी? उसी के अनुसार बच्चे उस शिक्षक से आकर्षित होंगे या उससे दूर भागेंगे।
क्लास में पहुंचने से पहले स्वयं को शिक्षक कितना तैयार करता है? स्वयं के विषय में बच्चों की रुचि बढाने के लिए क्या क्या इनोवेशन लाता है? आत्मियता व बच्चों के कल्याण का कितना भाव उसके अंदर है? यह सब भी बहुत मायने रखता है। हित अनहित पशु पक्षी भी पहचानते हैं? फिर क्या बच्चे अपने शिक्षक के मनोभाव न पढ़ेंगे। वो तो बचपन में भी जब बोलना नहीं जानते थे तब भी उसी की गोदी में जाते थे जो उनके प्रति प्रेम रखता व उस बालक का भला चाहता था।
प्रशासन वह समस्त परिवर्तन करने को तैयार है जो एक कुशल देशभक्त योग्य नागरिक गढ़ने की गारण्टी दे। बस यह परिवर्तन का सुझाव एक लाख से अधिक शिक्षक गण एक मत से सुझाएँ। लेकिन क्या शिक्षकों को यह क्लियर है कि वस्तुतः परिवर्तन होना क्या चाहिए और क्यों?
45 मिनट की क्लास में आप ही भगवान हैं आप ही मालिक है, कोई सरकार, पुलिस, कानून व्यवस्था या अन्य कोई हस्तक्षेप नहीं करता कि आप को कैसे पढ़ाना है? यदि 2 से 5 मिनट उन्हें माइंड की कोई एक्टिविटी जैसे जप या ध्यान या पहेली करवाकर पढ़ाना शुरू करें तो अगले 30 मिनट में वह क़माल हो जाएगा तो अभी 45 मिनट में नहीं हो रहा। रोज एक मोटिवेशन वाले सदवाक्य ब्लैक बोर्ड में लिख कर बच्चों से दोहराने को कहें।
*व्यथित व उद्विग्न शिक्षक बच्चों को एकाग्रता का पाठ नहीं पढ़ा सकता। बुझा दीपक नए दीपक नहीं जला सकता। स्वयं रौशन होना होगा। युगऋषि पँडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है - हम बदलेंगे तभी युग बदलेगा, हम सुधरेंगे तभी युग सुधरेगा। यदि परिवर्तन चाहते हो तो स्वयं परिवर्तन का हिस्सा बनो।*
सबसे पहले शिक्षक को स्वयं अच्छा विद्यार्थी बनना पड़ेगा, सबसे पहले शिक्षक को नित्य आधे घण्टे ध्यान करना होगा। स्वयं को शांत व चित्त को एकाग्र करना होगा। सब्जेक्ट को ऐसे पढ़ाना होगा कि विद्यार्थी को वह गूगल बाबा भी न दे सकें। वह आत्मियता देनी होगी जिससे बच्चे को यह महसूस हो कि इनसे ज्यादा भला मेरा और कोई नहीं चाहता।
पुस्तक -📖 *शिक्षा एवं विद्या* और 📖 *शिक्षक अपना उत्तरदायित्व समझें* जरूर पढ़ें।
*"अध्यापक है युग निर्माता, छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता" सभी शिक्षकों को सादर नमन वन्दन एवं हृदय से कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।*
आप के हाथ में देश का भविष्य है, आपका प्रश्न यह बताता है कि आप कितनी गहराई से अपने कर्तव्यों को समझती हैं, व प्रयासरत हैं। डियर समस्या जहां है समाधान भी वहीं है। स्वयं के व्यक्तित्व में चुम्बकत्व गहन ध्यान व आत्मियता विस्तार से बढाना होगा, अपने विषय में दक्षता के साथ पढ़ाने में इनोवेशन लाना होगा। कड़वी दवा में शहद मिलाकर जैसे बच्चों को देते हैं, वैसे ही बोरिंग सब्जेक्ट में कुछ रुचिकर तरीक़े पढ़ाने के अपनाने होंगे। ध्यान करेंगी तो समाधान आपके भीतर से स्वयं उभरेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन,
जंग लगा लोहा हो तो चुम्बक से नहीं आकर्षित होता या चुम्बक अयोग्य हो तो भी लोहा आकर्षित नहीं होता।
*शिक्षक का व्यक्तित्व चुम्बक है और विद्यार्थी का व्यक्तित्व लोहे के टुकड़े के समान हैं। चुम्बक की क्षमता पर बहुत कुछ निर्भर करता है।*
स्कूल का डेकोरेशन और वातावरण से भी ऊपर शिक्षक का व्यवहार और शिक्षण में दक्षता बच्चों को क्लास में उपस्थित रहने को प्रेरित करती है।
*वेदों में कहा गया है, जिस जगह ध्यान केंद्रित होगा ऊर्जा उसी ओर प्रवाहित होगी। आध्यात्मिक अंतर्जगत के चक्रों के जागरण में भी ध्यान ही एक मात्र माध्यम होता है।*
अब यही नियम संसार मे भी लागू है और क्लास में भी लागू है।
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*शिक्षक का ध्यान कहाँ केंद्रित है?*
👉🏻कमाने/आय में
👉🏻या सम्बन्धित विषय के कोर्स को कम्प्लीट करने में
👉🏻या बालक के सर्वांगीण विकास में?
कहाँ है शिक्षक का ध्यान?
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*शिक्षक स्वयं को क्या समझता है?* 👉🏻बच्चों का गुरु (गुरु अर्थात जीवन का अँधेरा मिटा सकें ऐसा व्यक्ति गढ़ने वाला)
👉🏻या सब्जेक्ट का टीचर या
👉🏻पढ़ाने की मजदूरी करके कमाने वाला मज़दूर या
👉🏻बच्चे पढंकर कुछ कमा सकें ऐसी सुविधा देने वाला फैसिलिटेटर?
वह जो स्वयं को समझेगा वही तदनुसार व्यवहार करेगा, वैसे ही विचार प्रवाह व तरंग उतपन्न होगी? उसी के अनुसार बच्चे उस शिक्षक से आकर्षित होंगे या उससे दूर भागेंगे।
क्लास में पहुंचने से पहले स्वयं को शिक्षक कितना तैयार करता है? स्वयं के विषय में बच्चों की रुचि बढाने के लिए क्या क्या इनोवेशन लाता है? आत्मियता व बच्चों के कल्याण का कितना भाव उसके अंदर है? यह सब भी बहुत मायने रखता है। हित अनहित पशु पक्षी भी पहचानते हैं? फिर क्या बच्चे अपने शिक्षक के मनोभाव न पढ़ेंगे। वो तो बचपन में भी जब बोलना नहीं जानते थे तब भी उसी की गोदी में जाते थे जो उनके प्रति प्रेम रखता व उस बालक का भला चाहता था।
प्रशासन वह समस्त परिवर्तन करने को तैयार है जो एक कुशल देशभक्त योग्य नागरिक गढ़ने की गारण्टी दे। बस यह परिवर्तन का सुझाव एक लाख से अधिक शिक्षक गण एक मत से सुझाएँ। लेकिन क्या शिक्षकों को यह क्लियर है कि वस्तुतः परिवर्तन होना क्या चाहिए और क्यों?
45 मिनट की क्लास में आप ही भगवान हैं आप ही मालिक है, कोई सरकार, पुलिस, कानून व्यवस्था या अन्य कोई हस्तक्षेप नहीं करता कि आप को कैसे पढ़ाना है? यदि 2 से 5 मिनट उन्हें माइंड की कोई एक्टिविटी जैसे जप या ध्यान या पहेली करवाकर पढ़ाना शुरू करें तो अगले 30 मिनट में वह क़माल हो जाएगा तो अभी 45 मिनट में नहीं हो रहा। रोज एक मोटिवेशन वाले सदवाक्य ब्लैक बोर्ड में लिख कर बच्चों से दोहराने को कहें।
*व्यथित व उद्विग्न शिक्षक बच्चों को एकाग्रता का पाठ नहीं पढ़ा सकता। बुझा दीपक नए दीपक नहीं जला सकता। स्वयं रौशन होना होगा। युगऋषि पँडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है - हम बदलेंगे तभी युग बदलेगा, हम सुधरेंगे तभी युग सुधरेगा। यदि परिवर्तन चाहते हो तो स्वयं परिवर्तन का हिस्सा बनो।*
सबसे पहले शिक्षक को स्वयं अच्छा विद्यार्थी बनना पड़ेगा, सबसे पहले शिक्षक को नित्य आधे घण्टे ध्यान करना होगा। स्वयं को शांत व चित्त को एकाग्र करना होगा। सब्जेक्ट को ऐसे पढ़ाना होगा कि विद्यार्थी को वह गूगल बाबा भी न दे सकें। वह आत्मियता देनी होगी जिससे बच्चे को यह महसूस हो कि इनसे ज्यादा भला मेरा और कोई नहीं चाहता।
पुस्तक -📖 *शिक्षा एवं विद्या* और 📖 *शिक्षक अपना उत्तरदायित्व समझें* जरूर पढ़ें।
*"अध्यापक है युग निर्माता, छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता" सभी शिक्षकों को सादर नमन वन्दन एवं हृदय से कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।*
आप के हाथ में देश का भविष्य है, आपका प्रश्न यह बताता है कि आप कितनी गहराई से अपने कर्तव्यों को समझती हैं, व प्रयासरत हैं। डियर समस्या जहां है समाधान भी वहीं है। स्वयं के व्यक्तित्व में चुम्बकत्व गहन ध्यान व आत्मियता विस्तार से बढाना होगा, अपने विषय में दक्षता के साथ पढ़ाने में इनोवेशन लाना होगा। कड़वी दवा में शहद मिलाकर जैसे बच्चों को देते हैं, वैसे ही बोरिंग सब्जेक्ट में कुछ रुचिकर तरीक़े पढ़ाने के अपनाने होंगे। ध्यान करेंगी तो समाधान आपके भीतर से स्वयं उभरेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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