Monday, 2 March 2020

परिवार एक तपोवन है, जहाँ जीवन को व्यवस्थित करने के लिए नित्य स्वयं को साधना पड़ता है।

*परिवार एक तपोवन है, जहाँ जीवन को व्यवस्थित करने के लिए नित्य स्वयं को साधना पड़ता है।*

गलती कबूल करने में और गुनाह को छोड़ने में देरी ना करें क्योंकि सफ़र जितना लंबा होगा मुश्किलें उतनी ज्यादा आयेंगी, और वापसी भी उतनी ही मुश्किल होगी।

मनुष्य हैं जाने व अनजाने में, क्रोध में मोह में ग़लती अगर हो गयी, तो जिस अनुपात में गलती हुई है ठीक दोगुने अनुपात में हृदय से प्रायश्चित करते हुए क्षमा मांग लेनी चाहिए औऱ जीवन मे यह गलतियाँ दोबारा न हो इसके लिए ईश्वर के समक्ष सङ्कल्प लेना चाहिए।

कोई पुरुष है तो केवल जेंडर के आधार पर उसे श्रेष्ठता का अधिकार उसके खुद के माता पिता भूलवश व ममता वश दे सकते हैं। समाज, ऑफिस और घर पर पत्नी बच्चे नहीं देंगे। स्वयं की श्रेष्ठता अच्छे स्वभाव, व्यवहार और सत्कर्मो से साबित करनी पड़ेगी तभी सम्मान मिलेगा। पत्नी व बच्चों से प्रेम करते हो तो उन्हें सम्मान भी दो। प्रेम बिना सम्मान अधूरा है।

आप स्त्री हैं तो जेंडर के आधार पर जिस प्रकार आपका अपमान गलत है, ठीक वैसे ही जेंडर के आधार पर विशेषाधिकार व सम्मान मिलना चाहिए यह अपेक्षा भी गलत है। स्त्री कभी भी बेरोजगार नहीं होती, वह या तो घर में ही कार्य करती है या ऑफिस में कार्य करती है या दोनो जगह कार्य करती है। अतः अपने कार्य को स्वयं सर्वप्रथम सम्मान दें, स्वयं को योग्य बनाएं व जीवन को व्यवस्थित बनाये। अपने अच्छे स्वभाव, व्यवहार और सत्कर्मो से स्वयं के लिए सम्मान अर्जित करें।

विवाह एक समझौता है, जहां कोई परफेक्ट नहीं होता। दो अधूरे लोग एक दूसरे के साथ होकर एक दूसरे को पूर्णता प्रदान करते हैं। यहाँ प्रतिद्वंदी बनने से मात्र हानि ही होती है।

यदि दो अनाथ लोगों ने विवाह नहीं किया है, तो दो परिवारों के बीच भी सम्बन्ध हुआ है। दो विभिन्न विचारधारा व विभिन्न सँस्कार के लोग एक जैसा नहीं सोच सकते, अतः उन्हें अलग व्यक्तित्व का जैसा हैं वैसा स्वीकारे व कुशलता से उन्हें हैंडल करें।

सुने सबकी मग़र कोई भी निर्णय विवेक अनुसार ही लें। दामाद को बेटे का प्यार नहीं मिल सकता और बहू को बेटी जैसा प्यार नहीँ मिल सकता। अतः जो रिश्ता जैसा है उसे उसी के अनुसार निभाएं। उसकी वही गरिमा निभाएं।

गुलदस्ते की तरह परिवार है, रंग बिरंगे फूल यहां है। किसी भी फूल को किसी की तरह बनने की जरूरत नहीं है, जो जैसा है उसे वैसा स्वीकारने व मान्यता के साथ प्रेम व सम्मान देना है।

परिवार एक खेल का मैदान है, जो खेलना जानता है वह परिवार को एन्जॉय करता है, जो अनाड़ी है वह रोता है। अच्छा ताश का प्लेयर जो भी पत्ते मिलते हैं उसे देखकर रोता नहीं, बल्कि उन पत्तो से खेलना कैसे है यह सोचता है। अच्छा क्रिकेटर अपोज़िट टीम की बॉलिंग को दोष नहीं देता, अपितु वह अपनी बैटिंग पर ध्यान देता है।

जीवनसाथी स्वर्ण धातु नहीं कि एक बार परख लिया तो जीवन भर वैसा ही रहेगा। मनुष्य की प्रकृति में परिवर्तन होता रहता है। एक स्वभाव का अच्छा व्यक्ति परिस्थिति वश या बुरी संगति में बुरा बन जाता है और एक स्वभाव का बुरा व्यक्ति परिस्थिति वश या अच्छे महान सन्तो के सत्संग में अच्छा बन जाता है।

अतः जीवन में सर्वप्रथम जो और जैसा भी रिश्ता मिला है, उसे ऑब्जर्व करें, कुशल मैनेजर की तरह सोचें कि इन सबके साथ जीवन को व्यवस्थित जीना कैसे है? योजना बनाइये। किन बातों को इग्नोर करना है, किन बातों का जवाब देना है, किन पर एक्शन लेना है और किस हद तक लेना है। यह सब विचारिये।

इमोशनल होकर रोने धोने से कुछ हासिल नहीं होता। क्षणिक सफ़लता भले मिल जाये मग़र रोने-धोने से स्थायी समाधान नहीं मिलता। गुलाब के फूल के साथ हरे पत्ते व कांटे भी रहेंगे, मनुष्य के साथ भी उसके अच्छे व बुरे व्यवहार भी साथ रहेंगे।

बुद्धि प्रयोग कीजिये और साथ में प्रेम, आत्मियता व सम्मान देकर रिश्तों को सम्हालिये। जीवन का आनन्द लीजिए। ईश्वर उसी की मदद करता है, जो अपनी मदद स्वयं करता है।

प्रत्येक माता-पिता को यह अपने बच्चों को विवाह से पूर्व समझाना चाहिए कि माता जैसी पत्नी नहीं मिलती और पिता जैसे पति नहीं मिलेगा। क्योंकि यह रिश्ते केयर करने वाले होते हैं, जन्म से जुड़े होते हैं। अतः यह इमेज लेकर विवाह मत करो। विवाह दो अलग प्रकृति व अलग संस्कारो में पले बढ़े अलग लोगो के बीच हो रहा है। जो जैसा है उसे वैसा स्वीकारो। पति की तुलना पिता से करना गुनाह है, पत्नी की तुलना माँ से करना गुनाह है। समझदारी से रिश्ते निभाएं, बुद्धि प्रयोग, भावसम्वेदना और आत्मियता से रिश्ते निभाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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