Thursday, 16 July 2020

श्रेष्ठ संस्कारी व बुद्धिमान बालक निर्माण --21 वर्षीय परियोजना है।* (भाग 1)

*श्रेष्ठ बालक निर्माण --21 वर्षीय परियोजना है।* (भाग 1)

👉🏻 *गर्भधारण से पूर्व प्रथम एक वर्ष*:-  माता पिता द्वारा सुयोग्य सन्तान प्राप्ति हेतु उच्च मनःस्थिति और परिस्थितियों का निर्माण अनिवार्य है।

घर में दीवारों में लगे चित्र, घर की साज सज्जा, माता पिता का खान-पान, वस्त्र परिधान, घर में बजने वाला सङ्गीत, चलने वाला सीरियल, पढ़ने वाले साहित्य सब वैसे होने चाहिए जैसी आत्मा को सन्तान बनाने की इच्छा है।

एक वर्ष की गायत्री मंत्र की सहस्त्रांशु साधना अनुष्ठान माता पिता को करनी चाहिए। दैनिक बलिवैश्व यज्ञ, साप्ताहिक यज्ञ या मासिक यज्ञ अवश्य करें।

गर्भ धारण दिन के समय या सायं गौधूलि बेला में या ब्रह्ममुहुर्त में न करें। गर्भ धारण हमेशा रात्रि के दूसरे तीसरे प्रहर में उत्तम है।

👉🏻 *गर्भधारण के दौरान - 9 महीने* -  गर्भस्थ आत्मा को माता गर्भ में धारण करेगी और पिता उसे मष्तिष्क में धारण करेगा। अतः माता गर्भिणी है तो पिता ने भी मष्तिष्क से गर्भ धारण किया हुआ है। दोनों स्थूल व सूक्ष्म तरंगों से सीधे गर्भ से जुड़े हैं।

गर्भस्थ बच्चे के संतुलित विकास हेतु माता ल-पिता ध्यान दें:-
*गर्भस्थ के शरीरबल के लिए* - माता संतुलित आहार करें, योग व व्यायाम करें, आनन्दमय मनोदशा में भोजन करें।

*गर्भस्थ के मनोबल व बुद्धिबल के लिए* - माता संतुलित आचार, विचार, विहार व व्यवहार करें। जो बच्चे को बनाना चाहते हैं उनके चित्र देखें, उनके बारे में सोचें, वैसा साहित्य अधिक से अधिक पढ़े व वीडियो देखें। माता के वस्त्र परिधान व कमरे की सज्जा भी गर्भस्थ के निर्माण में असर करेगी। घरवालों की बातें व व्यवहार भी असर डालता है। पहेलियां सुलझाएं व माइंड गेम्स खेलें।

*गर्भस्थ के आत्मबल व प्राण ऊर्जा हेतु* - माता-पिता जप, तप, ध्यान व संतुलित भावनाओं का समावेश जरूरी है। अतः धार्मिक व प्रेरक पुस्तको का अध्ययन करें। महापुरुषों और योद्धाओं के प्रेरक जीवन संघर्ष पढ़े। नित्य ध्यान करें। यज्ञीय औषधीय धूम्र में गहरी श्वांस ले।

गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं है, अतः बीमारों की तरह आराम करने का ख़्याल मन से निकाल दें। स्वस्थ व्यक्ति की तरह दैनिक कार्य सुचारू रूप से करें। तन को आलस्य में रखेंगे तो बच्चे का शारीरिक मानसिक विकास अवरुद्ध होगा।

पिता नित्य गर्भस्थ शिशु को कहानियां सुनाए व गर्भ सम्वाद में माता-पिता दोनों भूमिका निभाएं।

👉🏻 *बालक के जन्म से लेकर तीन वर्ष तक*  -

बच्चे को खिलाते पिलाते समय अपनी आनन्दमय मनोदशा रखें। भोजन में आपकी मनोदशा मिश्रित होकर उसके पेट मे जाएगी व उसकी मनोदशा को प्रभावित करेगी।

उसे ध्यानस्थ होकर स्तनपान यदि छः महीने भी करवा दिया, तो विश्वास मानिए बच्चे को पढ़ने हेतु कभी एकाग्रता की कमी नहीं पड़ने वाली है।

रोज़ बच्चा समझे न समझे उसे महापुरुषों की प्रेरक कहानियां सोते वक्त सुनाएं।

बच्चे के समक्ष हिंसक व अश्लील सीरियल न देखें, कोई हरकत घर में न करें।

अत्यंत वृद्ध या रोगी व्यक्ति की गोदी में बच्चे को अधिक समय न रखें अन्यथा वह बच्चे की प्राण ऊर्जा को कम कर देंगे। उन्हीं वृद्ध की गोदी में बच्चा देना सुरक्षित है जो अश्लील वीडियो न देखते हों व दिन में कम से कम आधे घण्टे ध्यान व पूजन करते हों।

बच्चे को गोदी में लेने से पूर्व हाथ धोना चाहिए औए तीन बार गायत्रीमंत्र पढंकर अपना औरा शुद्ध कर लेना चाहिए।

👉🏻 *बालक के तीन वर्ष से सात वर्ष तक*  -  बालक के तीनों शरीर स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीर को भोजन मिलना चाहिए। एक भी शरीर का पोषण सही नहीं हुआ तो संतुलित विकास नहीं हो पायेगा।

1- *स्थूल शरीर - शरीर बल* - योग-व्यायाम व अच्छा भोजन, व्यवस्थित रहना व व्यवस्थित पहनावा पहनना। वस्त्र पहनने के तरीके से पता चल जाता है कि सन्तान आत्मविश्वास से भरी है या डरी डरी सहमी है। चाल में कंधे उठे हुए व कदम सधे हुए, ऊंचा सोचते हुए  बच्चे को चलना चाहिए। बच्चे की चाल पर भी बहुत कुछ निर्भर है। 15 मिनट बच्चे को कमर सीधी रखके सर थोड़ा ऊपर करके बैठने को बोलना चाहिए।

2- *सूक्ष्म शरीर - मनोबल* - अच्छी प्रेरक पुस्तकों का स्वाध्याय व चिंतन, जीवन लक्ष्य बनाना और उसके लिए अपेक्षित मेहतन करने हेतु प्रेरित करना चाहिए।  उसके ज्ञान में निरन्तर वृद्धि करना चाहिए। आपका बच्चा जब भी बोलें तो शब्द इतने सधे व आत्मविश्वास से भरे हों कि लोग बात करके जान सके कि आपका बच्चा अपनी उम्र के अनुसार ज्ञानवान है।

3- *कारण शरीर - आत्मबल* - बच्चे से अब नित्य जप, ध्यान व स्व-संकेत देने की कला सिखाना शुरू कर दीजिए, इसके माध्यम से वह स्वयं को सन्देश देगा कि वह ईश्वर की बनाई सर्वश्रेष्ठ कृति है, उसके अंदर अपार बुद्धि है, उसका सही उपयोग वह स्वयं के उत्थान के लिए करेगा, स्वयं को मजबूत बनाएगा। वह छोटा है व कोमल है लेकिन कमज़ोर नहीं है। वह अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु समर्थ है। आपके सन्तान की दृष्टि में सूर्य सा ओज होना चाहिए, जिससे कोई बुरी नजर से उसकी ओर देख न सके।

क्रमशः......

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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