Thursday 19 November 2020

देवत्व जगाने का मन्त्र - गायत्रीमंत्र एवं सूरह अल फ़ातिहा

 हिंदुओ में देवता बनने और देवत्व जगाने का मन्त्र - *गायत्री मंत्र* है। विवेकानंद जी व युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि भगवान से जुड़ने के लिए व उनकी कृपा प्राप्ति के लिए उनके जैसा बनना पड़ता है, उनकी बताई राह पर नेकनीयत व सच्चाई के साथ चलना पड़ता है।


ॐ भुर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि, धियो योन: प्रचोदयात।


उस प्राणस्वरूप दुःख नाशक, सुख स्वरूप श्रेष्ठ तेजस्वी, पाप नाशक , देवस्वरूप, परमात्मा को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करते हैं। वह हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।


सूर्य - सविता का प्रकाश हमारे भीतर का अंधकार दूर करें, हमे स्वस्थ बनाए।


मुश्लिम में इसी अल्लाह के बन्दे व नेकनीयत बनने का भाव बनाने वाले *सूरह अल फातिहा* है। सूफी संत हसन व राबिया कहते हैं कि अल्लाह की कृपा उसपर बरसती है, जो नेकनीयत होते हैं व सच्चाई की राह पर चलते हैं।


1:1 بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील तथा दयावान है|


1:2 الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ


सारी प्रशंसाएँ अल्लाह ही के लिए हैं, जो सारे संसार का रब है।


1:3 الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है।


1:4 مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ


बदला दिए जाने के दिन का मालिक है।


1:5 إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ


हम तेरी ही बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं।


1:6 اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ


हमें सीधे/सत्य मार्ग पर चला।


1:7 صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّالِّينَ


उन लोगों के मार्ग पर जो तेरे कृपापात्र हुए, जो न प्रकोप के भागी हुए और न पथभ्रष्ट। श्रेष्ठ लोगों का अनुसरण करें और उनके दिखाए मार्ग पर चलें।


इसे रोज अपनी प्रार्थना में शामिल करें। जितनी बार कर सकें उतना अच्छा है।


गलतियां इंसान से होती है, हम सोचते हैं क्रोध में कि हम दूसरों को दण्ड दे रहे हैं। लेकिन असल में दण्ड के पात्र हम स्वयं बनते चले जाते हैं।


हम बीच में खड़े हैं, जन्नत(स्वर्ग) और दोज़ख(नर्क) के, अल्लाह ने हमें अपने मन मुताबिक जीने की छूट तो दी है, अपने हिसाब से काम करने की छूट दी है लेकिन उसका फ़ल/रिज़ल्ट/परिणाम अपने हाथ में रखा है। इसलिए जो भी करें पहले हमें सोचना समझना चाहिए।


हमें रोग कुछ प्रारब्ध/पिछले जन्म के कर्मफ़ल से बनी परिस्थिति के कारण भी होते है ।


रोग हमे जीवन मे अपनी भूलो के प्रायश्चित करने का तरीका मात्र होता है, जहां हम नित्य *गायत्रीमंत्र* या *सूरह अल फ़ातिहा* पढ़कर इस पर चिंतन करें। इसके एक एक शब्द को स्वयं में अंकित करें और ख़ुदा की बताई/ईश्वर की दिखाई नेक राह पर चलने को स्वयं को प्रेरित करें।


सूर्य जो वृक्ष-वनस्पति और जीवों को प्राण देता है उससे हृदय से प्रार्थना करें कि वो भी अपनी रॉशनी से हमारे भीतर का अंधकार दूर करे, ख़ुदा का नूर बरसे, उजाला ही उजाला मन के अंदर हो। बुराइयां जलकर खाक हो जाएं और नेकनीयत हममें आ जाये। हर जीव वनस्पति मनुष्य औऱ कण कण में हमे ख़ुदा दिखे। और हमारे चेहरे पर ख़ुदा का नूर/ईश्वर की कृपा दृष्टि की रौशनी रहे।


इस ध्यान का लाभ अपने आपको अच्छा इंसान बनाने में ख़र्चे, उस ख़ुदा की इबादत/ईश्वर की प्रार्थना में समय ख़र्चे, गायत्रीमंत्र/सूरह अल फ़ातिहा का अर्थ चिंतन करते हुए, उस ख़ुदा/ईश्वर के ध्यान में खोए रहें।

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