एकाग्रता ही सफलता की प्रथम शर्त है
अर्जुन के मछली के आंख के बेधन की क्षमता की कथा जो जानते हैं वह समझते ही होंगे कि एकाग्रता और सफलता एक दूसरे के पूरक हैं।
अध्यात्म क्षेत्र हो या संसार क्षेत्र सफल होना है तो एकाग्रता का अभ्यास होना चाहिए।
एकाग्रता के अभ्यास का एक छोटा उपक्रम में शांतिकुंज का ध्यान। मन की एकाग्रता के लिए शरीर की स्थिरता जरूरी है। तो प्रथम कम से कम 15 मिनट बिना हिले डुले रीढ़ की हड्डी सीधी रख बैठने का प्रयास करें, कमर दर्द हो तो कुर्सी का प्रयोग कर लें। शरीर की स्थिरता मिलने पर मन की स्थिरता हेतु क्रमशः निम्नलिखित प्रयास करें।
1- शुरुआती एक हफ्ते मन को घर से शांतिकुंज यात्रा करवाइए
2- अगले एक हफ्ते मन को शांतिकुंज के अंदर कहीं भी घूमने की इजाजत दें
3- अगले दूसरे हफ्ते मन को समाधि क्षेत्र में रोककर रखें मानो आपका मन समाधि क्षेत्र में लगा कैमरा हो जो मात्र समाधि क्षेत्र को ही देख सकता हो।
4- इसी तरह कुछ हफ्ते कभी सप्तर्षि में मन को रोकिए, तो कभी ग़ायत्री मन्दिर, तो कभी यज्ञस्थल, तो कभी अखंडज्योति दर्शन तो कभी गुरुदेव के साधना कक्ष के भीतर मन को केंद्रित करें। मग़र ध्यान रखे चुने क्षेत्र से मन बाहर न जाये।कम से कम 15 मिनट और अधिक से अधिक एक घण्टे यह अभ्यास करें।
5- मन जब थोड़ा अभ्यस्त हो गया तो अब मन को ग़ायत्री मन्दिर में मात्र माता की मूर्ति पर कुछ दिन केंद्रित करें। माता का मुकुट, चेहरा, वस्त्र व चरण सब को गहराई से अंतर्मन में अंतर चक्षु से देखने का प्रयत्न करें।
6- जब मन माता की मूर्ति पर एकाग्रता का अभ्यास कर ले, तब मन को मात्र ग़ायत्री माता की आंखों पर या चरण पर केंद्रित करें। फोकस चरण या नेत्र में से जो भी सोचा हो उस पर ही केंद्रित हो।
7- इस एकाग्रता से ध्यान के सफर में आप आगे बढोगे। मन इतना अभ्यस्त हो जाएगा कि आध्यात्मिक कोई भी ध्यान में मन लगने लगेगा, सांसारिक पढ़ाई हो या जॉब व्यवसाय का काम कहीं भी मन को एकाग्र करने की कुशलता मिल जाएगी।
करत करत अभ्यास से,
जड़मति होत सुजान,
रसरी आवत जात ही,
सल पर पड़त निशान।
निरंतर अभ्यास से एकाग्रता हासिल की जा सकती है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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