प्रश्न - भगवान बेरहम क्यों है?
उत्तर - बेटे, भगवान एक न्यायाधीश है, वह न दयालु है और न ही बेरहम है।
कर्म प्रधान यह विश्व बनाया है, जंगल में शेर व हिरण दोनों को बनाया है। सुबह दौड़ दोनों लगाते हैं एक नाश्ते के लिए और दूसरा जीवन बचाने के लिए..शेर जीता तो भोजन इनाम में मिलेगा, हिरण जीता तो जीवन इनाम में मिलेगा।
प्रत्येक जीव की स्वतंत्र यात्रा और कर्मफ़ल है। ऋणानुबंध जिसका जैसा सम्बंध प्रतिफल में उसके वैसे... दो पूर्वजन्म के मित्र जीवनसाथी बने तो प्रेमी युगल...दो पूर्वजन्म के शत्रु जीवनसाथी बने तो युद्ध प्रचंड.. किसका कितने दिनों का साथ यह भी पूर्व जन्म के कर्मफ़ल का ही है विधान...
जब तक मनुष्य स्वयं को शरीर व इसी जन्म को सबकुछ मानेगा उसे भगवान बेरहम दिखाई देगा। जब मनुष्य स्वयं के अस्तित्व की पहचान करेगा, यह जानेगा कि वह आत्मा है और उसका कर्मफ़ल बैंक का अकाउंट आत्मा से लिंक है मात्र इस वर्तमान शरीर से नहीं... उसे पता चलेगा कि वह अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है... तब उसे भगवान बेरहम नहीं लगेगा अपितु दयालु न्यायाधीश लगेगा... जो बड़े बड़े अपराध सच्चे हृदय से साधना व प्रायश्चित करने पर माफ कर देता है... गलत कर्म करने वालो पर दण्ड विधान अपनाता है... अच्छे कर्म करने वालो को प्यार ही प्यार देता है...
धरती में जो जैसा बोता है वही काटता है। धरती पक्षपात नहीं करती व न्यायाधीश की तरह कर्म बीज अनुसार फल देती है। ऐसे ही मनुष्य जो कर्म बीज समय की जमीन पर बोता है, परमात्मा वही फसल के रूप में लौटाता है। फिर भगवान बेरहम कैसे हुआ?
जब किसान धरती को बेरहम नहीं बोलता तो आप भगवान को बेरहम कैसे बोल सकते हैं? जब किसान डिमांड नहीं करता कि बीज बबूल के और फल आम के दो, तो हम सब यह क्यों चाहते हैं कि करे गलत कर्म और आये अच्छा परिणाम?
जीवन समग्र है, टुकड़ों में यह चाहोगे कि आधा बुरे कर्म करें व आधा अच्छा तो नहीं चलेगा, सब मिक्स परिणाम मिलेगा। अच्छा जीवन परिणाम चाहिए तो सब अच्छा करने का अभ्यास करना होगा।
सही कर्म बीज समय की जमीन पर बोइये, उनका पोषण कीजिये। शुभ परिणाम अवश्य मिलेगा।
💐श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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