Friday, 16 July 2021

क्षमाशील व प्रेममय वृद्धावस्था ही उत्तम है।

 *क्षमाशील व प्रेममय वृद्धावस्था ही उत्तम है।*


मनःस्थिति बदलिए परिस्थिति बदल जाएगी,

कहीं स्वयं बदल जाइये, कहीं दुसरो को प्यार से बदल दीजिये। जहां स्वयं बदलना या दूसरों का बदलना सम्भव न हो, तो जो जैसा है उसे स्वीकारिये।


वृद्धावस्था फलदार वृक्ष नहीं है, लेकिन वृद्धावस्था एक छायादार वृक्ष है।  परिवारजन जहां आकर सुकून चाहते हैं, आशीर्वाद चाहते हैं।


वृद्धावस्था में हँसी ख़ुशी रहने हेतु सन्त प्रकृति अपनानी पड़ती है। जब कोई मांगे तभी सलाह दें अन्यथा मौन रहना पड़ता है। अपनी दिनचर्या पोते पोती के कारण अडजस्ट भी करनी पड़ती है। 


बहु बेटे सबकुछ आपसे शेयर नहीं करेंगे, अतः जो जितना वह शेयर करते हैं केवल उतना ही ठीक है। वैसे भी उनके कार्य व व्यवसाय में हम सहयोगी ज्यादा बन नहीं सकते, उनकी कोई बड़ी प्रॉब्लम सॉल्व भी नहीं कर सकते। हम मात्र प्रार्थना कर सकते हैं।


यदि वृद्धावस्था में हम प्रेममय व क्षमाशील रहेंगे तो ही स्वयं भी आनन्द में रहेंगे व दूसरे भी आनन्द में रहेंगे। 


यदि वृद्धावस्था में हम चिड़चिड़े व क्रोधी हुए तो हम भी दुःखी रहेंगे व दूसरे को भी दुःखी करेंगे। 


जो सहयोग कर सकते हैं करें जो न बन सके तो सॉरी बोल दें, इससे कोई बात आगे न बढ़ेगी।


स्वयं का सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है।


हिन्दू सनातन संस्कृति में जीवन के उत्तरार्द्ध में सन्यास आश्रम कहा गया है, अर्थात शरीर से जंगल मे रहो या घर मे रहो, लेकिन सन्यासी की तरह निर्लिप्त रहो व आत्म उन्नति में लगे रहो।


💐श्वेता, DIYA

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