Friday 16 July 2021

प्रश्न - हमारे ससुराल में कोई पूजा पाठ नहीं करता सब पाश्चात्य प्रेरित नास्तिक हैं, मुझे साधना करने में असुविधा होती है यहाँ, क्या करूँ कैसे अनुष्ठान वगैरह करूँ?

 प्रश्न - हमारे ससुराल में कोई पूजा पाठ नहीं करता सब पाश्चात्य प्रेरित नास्तिक हैं, मुझे साधना करने में असुविधा होती है यहाँ, क्या करूँ कैसे अनुष्ठान वगैरह करूँ? 


उत्तर - एक सत्य कहानी सुनो, एक जूते बनाने वाली कम्पनी के दो सेल्समैन को अफ़्रीकी महाद्वीप के एक शहर में जूते की फैक्ट्री खोलने से पहले निरीक्षण हेतु भेजा गया। पता करके बताओ कि फैक्ट्री खोलना ठीक रहेगा या नहीं।


उस अफ़्रीकी जनजातीय क्षेत्र में कोई जूता व चप्पल पहनता नहीं था।


पहले सेल्समैन ने रिपोर्ट बनाकर कम्पनी को भेजी कि *यहां कोई जूता चप्पल पहनता नहीं*, अतः यहां जूते की फैक्ट्री खोलने का कोई लाभ नहीं।


दूसरे सेल्समैन ने रिपोर्ट बनाकर कम्पनी को भेजी कि *यहां कोई जूता चप्पल पहनता नहीं*, अतः यहां जूते की फैक्ट्री खोलने से बहुत लाभ होगा, क्योंकि हम पहली कम्पनी होंगे जो लोगों को जुते चप्पल पहनने का लाभ बताएंगे, लोगो को जूते चप्पल की उपयोगिता के प्रैक्टिकल लाभ दिखाएंगे। धीरे धीरे परिवर्तन ह्योग, व सभी हमसे जुते चप्पल खरीदेंगे, कम्पनी को यहां बहुत लाभ होगा।


जूते की कम्पनी ने पहले सेल्समैन को  वापस बुला लिया, दूसरे सैल्समैन को वहां खोली नई कम्पनी का जनरल मैनेजर बना दिया।  वह सफल हुआ।


अब यह कहानी तुम पर भी लागू होती है, *तुम्हारे ससुराल में आध्यात्मिक वातावरण नहीं है* यह कटु सत्य है। अब पहले सेल्समैन की तरह रिपोर्ट बनाओगी या दूसरे सेल्समैन की तरह रिपोर्ट व प्लान बनाओगी, यह तुम्हारा निर्णय तय करेगा, वही नियति बनेगा।


तुम अध्यात्म की सेल्समैन हो, तुम उस परिवार तक अध्यात्म पहुंचा सकती हो, सबके आत्म उत्थान का माध्यम शनैः शनैः बन सकती हो। कठिन है मगर असम्भव नहीं, कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती। जो अपनी मदद स्वयं करता है, उसकी मदद ईश्वर भी करता है।


दीपक के तल में अंधेरा हो तो भी उसका महत्त्व कम नहीं होता, यदि जो बहन  सभी ससुराल वालों को अध्यात्म से नहीं जोड़ पाई मग़र किसी एक को उनमें से अध्यात्म राह पर ले आई, वह भी बहुत है। स्वयं के अध्यात्म को जीवंत व प्रकाशित रखना भी श्रेयष्कर है।


घण्टों जप ध्यान में व्यवधान है, तो मन से ध्यानस्थ गृह कार्य करते हुए भी रहा जा सकता है। मन के जप व ध्यान को जब तक कोई अंतर्यामी न हो जान भी नहीं सकता। 


तुम ज्यों ज्यों आत्म प्रकाशित होगी, बुद्धत्व तुममें जागृत होगा त्यों त्यों ससुराल वाले भी अध्यात्म की ओर जुड़ने लगेंगे। 


गुरु का प्रथम परिचय शिष्य होता है, शिष्यत्व के परिचय को ठीक करो, गुरु  को तुम्हारे जानने व उनसे जुड़ने को परिवार के लोग अवश्य प्रेरित होंगे।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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