जब कंधा स्वस्थ हो,
तो भारी हाथ पीछे से रखो तो फर्क नहीं पड़ता,
जब उसी कंधे पर चोट हो तो,
हल्का स्पर्श भी दुःखता है।
हमें किसी की बड़ी गलत बात पर भी गुस्सा तब नहीं आता जब हमारा हृदय स्वस्थ व प्रशन्न हो, लेक़िन हृदय में छोटी तुच्छ बात भी शूल की तरह पीड़ा देती है जब मन पहले से ही किसी आघात से दर्द में चोटिल हो।
बात बड़ी व तुच्छ से फ़र्क नहीं पड़ता, फ़र्क़ पड़ता है कि हमारा हृदय कितना स्वस्थ या अस्वस्थ, चित्त कितना प्रशन्न या अप्रशन्न और मन कितना शांत या अशांत है।
🙏🏻 यदि आपको किसी की छोटी सी बात व छोटी घटना यदि अधिक पीड़ा दे रही है, तो दोष उस व्यक्ति का अधिक नहीं है। अपितु इसका अर्थ हमारा हृदय चोटिल है। हृदय के उपचार व मन शांत करने हेतु ध्यान व स्वाध्याय की आवश्यकता है। 🙏🏻
🙏🏻 श्वेता, DIYA
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