*जब सबकुछ ऑनलाइन उपलब्ध है तो पुस्तकों से पढ़ने की क्या जरूरत*
हमने Human Psychology से ग्रेजुएशन किया है। Psychology की पढ़ाई के दौरान हम लोगों ने तीन ग्रुप एक ही उम्र के बच्चों को लिया। तीनों ग्रुप का IQ और रेलेवेन्ट अन्य टेस्ट किया।
एक ग्रुप को टीवी से वही ज्ञान दिया
एक ग्रुप को रेडियो से वही ज्ञान दिया
एक ग्रुप को पुस्तकों से वही ज्ञान दिया।
तीन महीने के बाद, सबसे ज्यादा IQ लेवल पुस्तक पढ़ने वाले बच्चों का बढ़ा क्यूंकि उनकी आँख, मष्तिष्क, कल्पनाशीलता और सूक्ष्म श्र्वनेंद्रिया तन्मयता से पुस्तक पढ़ने से बढ़ी।
रेडियो सुनने वाले बच्चों की पुस्तक पढ़ने वालों से कम और टीवी देखने वाले बच्चों से ज्यादा IQ पाया गया।
टीवी देखने वाले बच्चों के IQ में कोई बढ़ोत्तरी नोटिस नहीं हुई।
जो साहित्य हम लोग साहित्य स्टाल में लगाते हैं, इनमे कोई विज्ञापन नहीं होता।
जब आप तन्मयता से इसे पढ़ते हैं तो पुस्तक जो कहना चाहती है वो मनःसंस्थान में क्लियर पॉइंटर के साथ अंकित होता है। मन जो पढ़ते हैं वो मन में बोलता है मन ही सुनता है और मन कल्पना भी करता चलता है।
जबकि ऑनलाइन पढ़ते वक़्त वह तन्मयता हम नहीं रख पाते चाह कर भी, क्यूंकि LED लाइट अंजाने में डिस्ट्रक्शन पैदा करती ही है। साथ में फ़ोन में निरन्तर आते मेसेज, व्हाट्स अप और फ़ोन कॉल डिस्टर्ब करते हैं। उदाहरण अच्छी फ़िल्म देखते हुए बार बार यदि लाईट जाए भले ही 1 मिनट के लिए ही आप डिस्टर्ब हो जाएंगे। इसी तरह पढ़ते वक़्त भी 1 मिनट का व्यवधान भी डिस्टर्ब करता है।
किताबों और मष्तिक की प्रोग्रामिंग का लोहा विदेशी भी मानते हैं, वहां की सरकारी लाइब्रेरी और लोगो का साहित्य के प्रति रूचि प्रशंशनीय हैं।
हमारे भारत देश की सरकारें वोट कमाने में और भारतीय शिक्षक और माता पिता नोट कमाने में व्यस्त है। मनःसंस्थान और स्नायुसंस्थानो की उचित प्रोग्रामिंग और गहन ज्ञान की सर्वत्र उपेक्षा हो रही है।
सब अपने बच्चों के लिए धन-जायजाद की वसीयत के लिए व्यस्त हैं, बच्चों और स्वयं के आत्मकल्याण, आत्मज्ञान और संस्कृतिक विरासत बनाने की ओर तो किसी का ध्यान भी नहीं है।
पश्चिम पूर्व की तरफ़ ज्ञानार्जन हेतु बढ़ रहा है, लेकिन दुर्भाग्य यह है क़ि पूर्व पश्चिम की नकलची बन्दर की तरह नकल कर रहा है बिना पूर्ण ज्ञान के। पूरा पश्चिम के जैसे बन जाए तो भी भला हो जाएगा लेकिन पूर्व की भगौलिक स्थिति में पश्चिम फिट नहीं बैठेगा। पश्चिम की तरह तो पश्चिम की भौगोलिक स्थिति में ही रहा जा सकता है।
उम्मीद है भारतीय माता पिता बच्चों के अच्छे भविष्य के प्रति सम्वेदनशील हों और घर में बच्चों के लिए लाइब्रेरी जरूर बनाये भले ही जूते के छोटे से बॉक्स में ही क्यूँ न हो। उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करें। पुस्तकों से स्वाध्याय करने वाले बच्चे के अंदर डले अच्छे संस्कार कृष्ण की तरह मित्रता निभाएंगे। अन्तः और बाहर दोनों का महाभारत जितवायेंगे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
हमने Human Psychology से ग्रेजुएशन किया है। Psychology की पढ़ाई के दौरान हम लोगों ने तीन ग्रुप एक ही उम्र के बच्चों को लिया। तीनों ग्रुप का IQ और रेलेवेन्ट अन्य टेस्ट किया।
एक ग्रुप को टीवी से वही ज्ञान दिया
एक ग्रुप को रेडियो से वही ज्ञान दिया
एक ग्रुप को पुस्तकों से वही ज्ञान दिया।
तीन महीने के बाद, सबसे ज्यादा IQ लेवल पुस्तक पढ़ने वाले बच्चों का बढ़ा क्यूंकि उनकी आँख, मष्तिष्क, कल्पनाशीलता और सूक्ष्म श्र्वनेंद्रिया तन्मयता से पुस्तक पढ़ने से बढ़ी।
रेडियो सुनने वाले बच्चों की पुस्तक पढ़ने वालों से कम और टीवी देखने वाले बच्चों से ज्यादा IQ पाया गया।
टीवी देखने वाले बच्चों के IQ में कोई बढ़ोत्तरी नोटिस नहीं हुई।
जो साहित्य हम लोग साहित्य स्टाल में लगाते हैं, इनमे कोई विज्ञापन नहीं होता।
जब आप तन्मयता से इसे पढ़ते हैं तो पुस्तक जो कहना चाहती है वो मनःसंस्थान में क्लियर पॉइंटर के साथ अंकित होता है। मन जो पढ़ते हैं वो मन में बोलता है मन ही सुनता है और मन कल्पना भी करता चलता है।
जबकि ऑनलाइन पढ़ते वक़्त वह तन्मयता हम नहीं रख पाते चाह कर भी, क्यूंकि LED लाइट अंजाने में डिस्ट्रक्शन पैदा करती ही है। साथ में फ़ोन में निरन्तर आते मेसेज, व्हाट्स अप और फ़ोन कॉल डिस्टर्ब करते हैं। उदाहरण अच्छी फ़िल्म देखते हुए बार बार यदि लाईट जाए भले ही 1 मिनट के लिए ही आप डिस्टर्ब हो जाएंगे। इसी तरह पढ़ते वक़्त भी 1 मिनट का व्यवधान भी डिस्टर्ब करता है।
किताबों और मष्तिक की प्रोग्रामिंग का लोहा विदेशी भी मानते हैं, वहां की सरकारी लाइब्रेरी और लोगो का साहित्य के प्रति रूचि प्रशंशनीय हैं।
हमारे भारत देश की सरकारें वोट कमाने में और भारतीय शिक्षक और माता पिता नोट कमाने में व्यस्त है। मनःसंस्थान और स्नायुसंस्थानो की उचित प्रोग्रामिंग और गहन ज्ञान की सर्वत्र उपेक्षा हो रही है।
सब अपने बच्चों के लिए धन-जायजाद की वसीयत के लिए व्यस्त हैं, बच्चों और स्वयं के आत्मकल्याण, आत्मज्ञान और संस्कृतिक विरासत बनाने की ओर तो किसी का ध्यान भी नहीं है।
पश्चिम पूर्व की तरफ़ ज्ञानार्जन हेतु बढ़ रहा है, लेकिन दुर्भाग्य यह है क़ि पूर्व पश्चिम की नकलची बन्दर की तरह नकल कर रहा है बिना पूर्ण ज्ञान के। पूरा पश्चिम के जैसे बन जाए तो भी भला हो जाएगा लेकिन पूर्व की भगौलिक स्थिति में पश्चिम फिट नहीं बैठेगा। पश्चिम की तरह तो पश्चिम की भौगोलिक स्थिति में ही रहा जा सकता है।
उम्मीद है भारतीय माता पिता बच्चों के अच्छे भविष्य के प्रति सम्वेदनशील हों और घर में बच्चों के लिए लाइब्रेरी जरूर बनाये भले ही जूते के छोटे से बॉक्स में ही क्यूँ न हो। उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करें। पुस्तकों से स्वाध्याय करने वाले बच्चे के अंदर डले अच्छे संस्कार कृष्ण की तरह मित्रता निभाएंगे। अन्तः और बाहर दोनों का महाभारत जितवायेंगे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
bahut achha
ReplyDeleteclick www.molekhaa.wordpress.com......and read my stories and songs
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