Saturday 23 December 2017

त्रिविध भवबंधन एवं उनसे मुक्ति

*त्रिविध भवबंधन एवं उनसे मुक्ति*

सृंगार भी स्वस्थ शरीर पर सजता है शोभनीय लगता है। रुग्ण शरीर पर श्रृंगार शोभा नहीं देता।

जीवन देवता की साधना ही साधक का स्वास्थ्य है, पूजा अर्चना उसका सृंगार। स्वास्थ्य हो और सृंगार न हो तो चलेगा, लेकिन सृंगार हो और स्वास्थ्य न हो तो बिल्कुल नहीं चलेगा। योग्यता-पात्रता हो तो स्वतः अनुदान-वरदान बरसते हैं। गिड़गिड़ाने भीख़ मांगने पर अनुदान-वरदान नहीं मिलता। योग्य-सुपात्र बनने के लिए स्वयं के जीवन को साधना पड़ता है।

दो प्रकार के नास्तिक दुनियां में है पहले जो 100% नास्तिक है और दूसरे टाइप के नास्तिक मनोकामना पूरी होने पर 100% आस्तिक होते हैं, मनोकामना मांगते वक़्त 50-50% नास्तिक होते हैं, मनोकामना पूरी न होने पर 100% नास्तिक बन के भगवान को गाली देने लगते हैं। भगवान के साथ व्यापार करता है। इनसे जीवन साधना सम्भव नहीं।

लोभ, मोह और अहंकार के तीन भारी पत्थर जिन्होंने सिर पर लाद रखे हैं, उनके लिये जीवन साधना की लम्बी और ऊँची मंजिल पर चल सकना, चल पड़ना असम्भव हो जाता है। भले ही कोई कितना पूजा- पाठ क्यों न करता रहे! जिन्हें तथ्यान्वेषी बनना है, उन्हें इन तीन शत्रुओं से अपना पीछा छुड़ाना ही चाहिये।

    हलकी वस्तुएँ पानी पर तैरती हैं, किन्तु भारी होने पर वे डूब जाती हैं। जो लोभ, मोह और अहंकार रूपी भारी पत्थर अपनी पीठ पर लादे हुए हैं, उन्हें भवसागर में डूबना ही पड़ेगा। जिन्हें तरना, तैरना है, उन्हें इन तीनों भारों को उतारने का प्रयत्न करना चाहिये।

अनेकानेक दोष- दुर्गुणों कषाय- कल्मषों का वर्गीकरण विभाजन करने पर उनकी संख्या हजारों हो सकती है, पर उनके मूल उद्गम यही तीन लोभ, मोह और अहंकार हैं। इन्हीं भव बन्धनों से मनुष्य के स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर जकड़े पड़े हैं। इनका उन्मूलन किये बिना आत्मा को उस स्वतन्त्रता का लाभ नहीं मिल सकता जिसे मोक्ष कहते हैं। इन तीनों पर कड़ी नजर रखी जाय। इन्हें अपना संयुक्त शत्रु माना जाये। इनसे पीछा छुड़ाने के लिये हर दिन नियमित रूप से प्रयास जारी रखा जाये। एकदम तो सब कुछ सही हो जाना कठिन है, पर उन्हें नित्यप्रति यथासम्भव घटाते- हटाते चलने की प्रक्रिया जारी रखने पर सुधार क्रम में सफलता मिलती ही चलती है और एक दिन ऐसा भी आता है, जब इनसे पूरी तरह छुटकारा पाकर बन्धन मुक्त हुआ जा सके।

*योग्य और मनोवांछित गुणों युक्त सन्तान चाहिए तो गर्भवती माता को स्वयं के जीवन को साधना होगा। जिससे श्रेष्ठ गर्भ में श्रेष्ठ सन्तान अवतरित हो सके*।

रेफेरेंस पुस्तक - http://literature.awgp.org/book/The_Spiritual_Training_and_Adoration_of_Life_Deity/v6.3

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

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