Thursday 28 December 2017

आइये हम सुनने की कला का महत्त्व समझें

आइये हम सुनने की कला को समझें । सुनना भी अपने आप में एक अच्छी कला है ।  इन दिनों हम सुनते तो हैं,  पर सिर्फ जवाब देने हेतु , समझने के लिए सुनते ही कहां हैं ?  तल्लीनता पूर्वक सुनने पर हमारे मस्तिष्क की धारण करने की क्षमता तो बढ़ती ही है,  साथ ही हमारे निर्णय ले सकने की क्षमता में भी बढ़ोत्तरी होती है ।  हम जवाब देना सीखते हैं । यही वजह है कि पहले के समय बच्चों को सोते समय सुनने के लिए दादी माँ की कहानियां , पौराणिक कहानियां , परियों की कहानियां होती थीं ।

पिछले वर्ष DSVV में सौभाग्यवश मुझे ' सुनने की कला'  विषय पर श्रद्धेय का व्याख्यान *"श्रवण ध्यान"** सुनने का मौका मिला जिसके कुछ महत्वपूर्ण बिंदु आपलोगों के साथ बांटना चाहती हूँ -
   
 सुनना  =   भोजन (खाना)
आत्मसात कर लेना =  पचाना (कर लेना)                         जो कि रक्त में जा मिलता है

जब वक्ता एवं श्रोता का मानसिक स्तर समान होता है , तभी सुनना संभव हो सकता है  । एक अच्छा श्रोता बनना बड़ा ही कठिन कार्य है । वक्ता भगवान शिव हैं एवं श्रोता माता पार्वती ।
जब अहंकार आक्रमण करता है तो हम अच्छी बातें सुन पाने में असमर्थ होते हैं । अहंकारी श्रोता के सामने वक्ता को कठिनाई तो होती ही है , उसके सम्मान की भी अवहेलना होती है । सुनना एक मानसिक प्रक्रिया है ,  अपने अंतर्मन में बसाने की प्रक्रिया है, शांति पाठ की तरह ,  पहले सुनें, अनुभव करें एवं उसका अनुकरण करें ।

बच्चों में  सुनने की आदत का विकास होने से उनकी  कल्पना  शक्ति बढ़ती  है। वक्ता यदि  विभिन्न हाव भाव एवं शब्दों के उतार चढ़ाव
के  साथ अपना  वक्तव्य रखे तो सुनने  की प्रक्रिया को और रोचक एवं प्रभावशाली बना सकता है ।

आइये एक कहानी के माध्यम से सुनने की कला को समझते हैं ।
 एक गांव में एक जमींदार रहता था । एक दिन जब वह खेत में  किसानों और अन्य मजदूरों  द्वारा किए गए काम की देखरेख के लिए पहुंचा  तो उन्होंने पाया कि उनकी कलाई की घड़ी जो उन्होंने पहनी थी,  वो कहीं गुम हो गई थी। सभी ने अपना काम छोड़ दिया और घड़ी की खोज में जुट गए। घंटों बीत गए पर घड़ी नहीं मिली।  शाम हो गई तो एक किसान का बेटा अपने पिता की खोज में आया और लोगों को व्यस्त में देखकर पूछा कि आखिर मामला क्या है?  उन्होंने बताया कि हमारे स्वामी की कलाई घड़ी खो गई है जो मिल नहीं रही । हम अभी भी उसे ही खोज रहे हैं ।
अचानक लड़के ने मालिक से पूछा, "आप आखिर में कहां  खड़े थे जहां आपने देखा कि आपकी घड़ी  नहीं है ? उन्होंने कहा कि मैं  घास की ढेर के पास खड़ा था और सभी से बातें कर रहा था।  लड़का घास की ढेर के पास गया तो  लोगों ने उसे बताया कि हमने पहले से ही वहां पर खोज कर ली है।  लड़के ने सभी को बिलकुल शांत रहने के लिए कहा और घास की ढेर के  पास चुपचाप बैठा रहा । कुछ समय बाद उसने अपने हाथों को ढेर  के अंदर डाला और लंबी  खोज के बाद सबको आश्चचर्यचकित करते हुए  कलाई की घड़ी को  बाहर निकाल लाया। फिर उसने सभी को बताया कि जब मैंने सभी को चुप रहने  के लिए कहा, तब  मैंने इस घड़ी की टिक टिक पर ध्यान केंद्रित किया और आखिरकार घड़ी को खोज निकाला । 

इससे हम सब सुनने की शक्ति के महत्व को समझ सकते हैं। 🙏🙏

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