Wednesday, 3 January 2018

मैं शरीर नहीं हूँ, आत्मा हूँ और इसकी तृप्ति हेतु प्रयास करें

स्वयं से प्रश्न करें, जब हम जन्मे तो शरीर छोटा था और अब इतना विशाल बड़ा कैसे हुआ? जवाब मिलेगा कि अन्न और जो कुछ भी खाया पिया उसी से यह शरीर बना। तो जो अन्न हम नहीं हैं तो उससे निर्मित शरीर भी हम नहीं है। अन्न के परिवर्तित रूप मांस चमड़ी से मोह क्यूं? शरीर और हम दो अलग अस्तित्व हैं जो श्वांस की डोर से बंधे है। श्वांस के हटते ही दोनों अलग हो जाएंगे ठीक उसी प्रकार जैसे तलाक होते ही पति पत्नी अलग हो जाते हैं।

दो अलग अस्तित्व है, तो एक के कल्याण हेतु भोजन व्यवस्था और दूसरे आत्मा के कल्याण का कोई ध्यान ही नहीं? जैसे पति पत्नी में कितना ही प्यार मोहब्बत हो लेकिन एक के भोजन से दूसरे का पेट नहीं भरेगा, उसी तरह शरीर की तृप्ति पर आत्मा तृप्त नहीं होगी। ये बात जितनी जल्दी हम समझ जाएं हमारा कल्याण हो जाएगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती, DIYA

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