Thursday, 4 January 2018

कुछ कर, कहीं देर न हो जाये

*कुछ कर, कहीं देर न हो जाये*

दर्द वही वाला,
फिर दिल में उभर रहा है,
जिस दर्द को महसूस कर,
हर देशभक्त रो रहा है।

प्रदुषित गैस चैंम्बर बनी,
जिस देश की राजधानी,
दिल्ली के प्रदूषण से,
विदा ले रही है जवानी।

खाँसते खखारते बच्चे बूढ़े और जवान,
फेफड़े इनके पॉल्यूशन से बन रहे बेजान,
रोगयुक्त-प्रदूषणयुक्त भारत कैसे बनेगा महान?
कैसे फ़िर स्वस्थ हवा का करें हम इंतज़ाम?

ग्लेशियर पिघल रहा,
विश्व तापमान बढ़ रहा,
प्रदूषण से जनसामान्य,
हा हा कार कर रहा।

इस विपदा की घड़ी में,
तू कैसे चैन की नींद सो रहा?
व्हाट्स फेसबुक में सेल्फ़ी और स्टेटस,
पोस्ट करने में ही तू व्यस्त रहा?

मोह की निंद्रा से अरे,
इंसान जाग जा,
उठ! कुछ कर,
इस विश्व वसुधा को बचा।

हवा तू नहीं बांट सकता,
हवा तू ख़रीद भी नहीं सकता,
पेड़ों को बचा और पेड़ लगा,
मात्र यही समाधान है बचा।

सही औषधियों और घी को,
यज्ञ में आहुति कर,
प्रकृति का समग्र उपचार,
यग्योपैथी से तू कर।

एकजुट हो प्रयास कर,
कहीं देर न हो जाये,
तेरे अपनों के श्वांस में ही कहीं,
मौत का ज़हर न घुल जाए।

मौत का सामूहिक दर्दनाक मंजर,
देख न पायेगा तू,
अभी कुछ न किया तो,
बहुत भयंकर पछतायेगा तू।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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