Tuesday 13 February 2018

यज्ञ में *स्वाहा* क्यूँ बोलते हैं मन्त्र के अंत में?

यज्ञ में *स्वाहा* क्यूँ बोलते हैं मन्त्र के अंत में?

'स्वाहा' का अर्थ है- आत्म- त्याग और अपने से लड़ने की क्षमता


यज्ञ का अर्थ मात्र अग्निहोत्र नहीं, शास्त्रों में जीवन अग्नि की दो शक्तियाँ मानी गई है - एक 'स्वाहा' दूसरी 'स्वधा'। 'स्वाहा' का अर्थ है- आत्म- त्याग और अपने से लड़ने की क्षमता। 'स्वधा' का अर्थ है- जीवन व्यवस्था में 'आत्म- ज्ञान' को धारण करने का साहस।


लौकिक अग्नि में ज्वलन और प्रकाश यह दो गुण पाये जाते हैं। इसी तरह जीवन अग्नि में उत्कर्ष की उपयोगिता सर्वविदित है। आत्मिक जीवन को प्रखर बनाने के लिए उस जीवन अग्नि की आवश्यकता है। जत 'स्वाहा' और 'स्वधा' के नाम से, प्रगति के लिए संघर्ष और आत्मनिर्माण के नाम से पुकारा जाता है।

http://literature.awgp.org/book/pragya_puran/v5.8

दो पौराणिक कथाएं :-

1- पौराणिक कथाओं के अनुसार, 'स्वाहा' दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं, जिनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था. अग्निदेव को हविष्यवाहक भी कहा जाता है. ये भी एक रोचक तथ्य है कि अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हवन ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम यही हवन आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है.

2- इसके अलावा भी एक अन्य रोचक कहानी भी स्वाहा की उत्पत्ति से जुड़ी हुई है. इसके अनुसार, स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर सम्पन्न हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हवन सामग्री को ग्रहण कर पाएंगे.

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