*शरीर परिचय -- आत्म परिचय*
हर दृश्य का दृष्टा हूँ मैं,
हर कर्म का सृष्टा हूँ मैं,
हर अनुभूति का साक्षी हूँ मैं,
हर कर्म की शक्ति हूँ मैं।
जो बना है, वो बिगड़ेगा भी,
जो जन्मा है, वो मरेगा भी,
जगत का हर नश्वर घटक,
एक न एक दिन मिटेगा ही।
यह नश्वर शरीर मैं नहीं हूँ,
लेकिन शरीर के भीतर मैं ही हूँ,
यह मन मैं नहीं हूँ,
लेकिन हर अनुभूति का साक्षी मैं ही हूँ।
शरीर की अवस्था भी,
बदलती रहती है,
कभी बालपन तो,
कभी युवावस्था रहती है,
मन की अवस्था भी,
बदलती रहती है,
कभी दुःख की तो
कभी सुख की अनुभूति रहती है।
हर दृश्य का दृष्टा हूँ मैं,
हर कर्म का सृष्टा हूँ मैं,
हर अनुभूति का साक्षी हूँ मैं,
हर कर्म की शक्ति हूँ मैं।
जो बाहर और भीतर के,
इन परिवर्तनों का साक्षी है,
जो शरीर और मन से परे,
एक चैतन्य शक्ति है,
जो सदा सर्वदा स्थिर है,
और शाश्वत है,
जिसके रहने से ही,
यह जीवन है।
😇😇😇😇😇
हां, वह शक्ति ही हूँ मैं। वह शक्ति ही आप है।
जाग्रत - स्वप्न -निंद्रा- सुप्तावस्था
बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था
मन के हर बदलते भावों का साक्षी हूँ मैं,
शरीर में होते हर परिवर्तन का साक्षी हूँ मैं।
हम सब अनन्त यात्री है,
कई जन्मों से यात्रा कर रहे है,
बस अंतर यह कि,
कुछ को इस सत्य का भान है,
कुछ इस सत्य अंजान है।
सबको को शरीर का परिचय याद है,
लेकिन कुछ आत्म परिचय से अंजान है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
हर दृश्य का दृष्टा हूँ मैं,
हर कर्म का सृष्टा हूँ मैं,
हर अनुभूति का साक्षी हूँ मैं,
हर कर्म की शक्ति हूँ मैं।
जो बना है, वो बिगड़ेगा भी,
जो जन्मा है, वो मरेगा भी,
जगत का हर नश्वर घटक,
एक न एक दिन मिटेगा ही।
यह नश्वर शरीर मैं नहीं हूँ,
लेकिन शरीर के भीतर मैं ही हूँ,
यह मन मैं नहीं हूँ,
लेकिन हर अनुभूति का साक्षी मैं ही हूँ।
शरीर की अवस्था भी,
बदलती रहती है,
कभी बालपन तो,
कभी युवावस्था रहती है,
मन की अवस्था भी,
बदलती रहती है,
कभी दुःख की तो
कभी सुख की अनुभूति रहती है।
हर दृश्य का दृष्टा हूँ मैं,
हर कर्म का सृष्टा हूँ मैं,
हर अनुभूति का साक्षी हूँ मैं,
हर कर्म की शक्ति हूँ मैं।
जो बाहर और भीतर के,
इन परिवर्तनों का साक्षी है,
जो शरीर और मन से परे,
एक चैतन्य शक्ति है,
जो सदा सर्वदा स्थिर है,
और शाश्वत है,
जिसके रहने से ही,
यह जीवन है।
😇😇😇😇😇
हां, वह शक्ति ही हूँ मैं। वह शक्ति ही आप है।
जाग्रत - स्वप्न -निंद्रा- सुप्तावस्था
बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था
मन के हर बदलते भावों का साक्षी हूँ मैं,
शरीर में होते हर परिवर्तन का साक्षी हूँ मैं।
हम सब अनन्त यात्री है,
कई जन्मों से यात्रा कर रहे है,
बस अंतर यह कि,
कुछ को इस सत्य का भान है,
कुछ इस सत्य अंजान है।
सबको को शरीर का परिचय याद है,
लेकिन कुछ आत्म परिचय से अंजान है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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