Sunday 4 February 2018

स्कूल में सामूहिक जन्मदिन मनाने का तरीका

*स्कूल के लिए जन्मदिन मनाने की योजना प्रारूप एवं कार्यक्रम*

*पूर्व व्यवस्था* - महीने में एक दिन उस स्कूल उस महीने जन्मदिन जिन बच्चों का है उनका सामूहिक जन्मदिन मनाना है।

*जन्मदिन कार्ड* - जन्मदिन के दिन उन बच्चों की पासपोर्ट साईज़ ले लें। जन्मदिन कार्ड में एक तरफ़ शीर्षक - *नवयुग का संविधान एवं सत्संकल्प* - उज्ज्वल भविष्य के लिए। उसी कार्ड में बच्चे की फ़ोटो वाली जगह में फ़ोटो लगा दें। साथ ही समस्त स्कूल *बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करता है* ये भी लिखा होगा। ये युगपद्धति के पीछे छपे 18 सत्संकल्प होंगे जिन्हें जन्मदिन के दिन भी बच्चे दोहराएंगे साथ ही यही जन्मदिन कार्ड में भी प्रिंट होगा। जिसे बच्चे घर ले जाएंगे और टीचर इसे रोज सपरिवार पढ़ने हेतु प्रेरित करेगी।

*जन्मदिन कार्ड के पीछे निम्नलिखित जन्मदिन मनाने की संक्षिप्त विधि होगी*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*पवित्रीकरण* - *प्रेरणा*– यज्ञ शुभकार्य है, देवकार्य है। यज्ञ के प्रयोग में आने वाली हर वस्तु शुद्ध और पवित्र रखी जाती है। देवत्व से जुड़ने की पहली शर्त पवित्रता ही है। हम देवत्व से जुड़ने के लिए, देव कार्य करने योग्य बनने के लिए मंत्रों और प्रार्थना द्वारा, भावना, विचारणा एवं आचरण को पवित्र बनाने की कामना करते हैं।

*क्रिया और भावना* – सभी लोग कमर सीधी करके बैठें। दोनों हाथ गोद में रखें। आंखें बन्द करके ध्यान मुद्रा में बैठें। - अब मंत्रों सहित जल सिंचन होगा। भावना करें कि हम पर पवित्रता की वर्षा हो रही है। - हमारा शरीर धुल रहा है – आचरण पवित्र हो रहा है। - हमारा मन धुल रहा है  विचार पवित्र हो रहे हैं।  हमारा हृदय धुर रहा है – भावनाएं पवित्र हो रही हैं।

सिंचन करने वालों को संकेत करें तथा सिंचन मंत्र सूत्र खंड-खंड में दुहरवायें, विराम के स्थानों पर चिह्न (/) लगे हैं।

 *ॐ पवित्रता मम/मनःकाय/अन्तःकरणेषु/संविशेत्।*


सब पर सिचंन होने तक पुनः पुनः उक्त वाक्य दुहरायें


भावना करें कि हमें पवित्रता का अनुदान मिला, हम अंदर-बाहर से पवित्र हो गये। हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें,

पवित्रता हमें सन्मार्ग पर चलाये
*ॐ पवित्रता नः/सन्मार्गं नयेत् । *

 पवित्रता हमें महान् बनाये
*ॐ पवित्रता नः/महत्तं प्रयच्छतु ।*

पवित्रता हमें शान्ति प्रदान करे
*ॐ पवित्रता नः/शान्तिं प्रददातु ।*

*क्रिया और भावना*-  कमर सीधी करके ध्यानमुद्रा में बैठें। ध्यान करें कि हमारे चारों ओर श्वेत बादलों की तरह दिव्य प्राण समुद्र लहरा रहा है। हम प्रार्थना करें क हे विश्व के स्वामी- हे महाप्राण, हमें बुराइयों से छ़ड़ाइये, श्रेष्ठताओं से जोड़िये।

अधोलिखित मंत्र बोलने के बार प्राणायाम करने का निर्देश करें।

 *ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव, यद्भद्रं तन्नऽआसुव ।*

 *क्रिया* - धीरे-धीरे दोनों नथुनों से श्वास खींचें, थोड़ा रोकें, धीरे से छोड़ें, थोड़ी देर बाहर रोकें।

भाव निर्देश- प्राणायाम के साथ भावना करें- - हमारा रोम-रोम सविता का तेज सोख रहा है, हमारा शरीर प्राणवान् बन रहा है।  हमारा मन सविता का तेज सोख रहा है, हमारा मन तेजस्वी हो रहा है। हमारा हृदय सविता का तेज सोख रहा है, हमारा हृदय तेजोमय हो रहा है। हम बाहर-भीतर से तेजोमय हो गये हैं।

👉🏽 *अध्यापिका उन बच्चों को तिलक लगाएंगी जिनका जन्मदिन है। बाकी बच्चे एक दूसरे को लगाएंगे*

 प्रेरणा - तिलक श्रेष्ठ को किया जाता है। शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन विचारों से-मस्तिष्क से होता है। शरीर विचारों से चलने वाला यंत्र है। विचारों में श्रेष्ठता का-देवत्व का संचार होता रहे, तो सारे क्रिया-कलाप श्रेष्ठ होते हैं और मनुष्य गौरव प्राप्त करता है। मस्तिष्क को देवत्व का स्पर्श देने के लिए हम तिलक करते हैं।


क्रिया और भावना – रोली या चंदन, सभी याजक अपनी अनामिका उंगली में लें उसे सामने रखें तथा दृष्टि उसी पर टिकायें। प्रार्थना करें कि देव शक्तियां इस चन्दन-रोली के माध्यम से हमारे मस्तिष्क को सुसंस्कारित बना रही हैं। प्रार्थनाएं भावनापूर्वक सुनें, समझें और संस्कृत सूत्र दुहरायें-


-हमारा मस्तिष्क शान्त रहे

 ॐ मस्तिष्कं/शान्तं भूयात्


 इसमें अनुचित आवेश प्रवेश न करने पायें

*ॐ अनुचितः आवेशः/मा भूयात्।*


हमारा मस्तिष्क सदा ऊंचा रहे

 *ॐ शीर्षं/उन्नतं भूयात्।*


इसमें विवेक सदैव बना रहे

*ॐ विवेकः स्थिरीभूयात्*

👉🏽 *रक्षासूत्र विधान*
क्रिया और भावना- उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए महाकाल के साथ साझेदारी के लिए उपासना, साधना, आराधना, समयदान एवं अंशदान के सम्बन्ध में जो व्रत लिये हैं, उनका संकल्प ग्रहण करना है। साझेदारी के इच्छुक व्यक्ति संकल्प सूत्र-कलावा बायें हाथ में लें, दाहिने से ढंग लें।


                                                संकल्प करें

हम ईश्वर का अनुशासन स्वीकार करते हैं

*ॐ ईशानुशासनम्-स्वीकरोमि।*

मर्यादाओं का पालन करेंगे

*ॐ मर्यादां/चरिष्यामि।*

जो वर्जित हैं, वे आचरण नहीं करेंगे

*ॐ वर्जनीयं-नो चरिष्यामि।*

प्रेरणा- नमन का अर्थ है—अभिवादन-प्रणाम। देव शक्तियों काअभिवादन अर्थात् उनका सम्मान करना। हमारे मन का झुकाव देवत्वकी ओर होना चाहिए। प्रणाम नम्रता-शालीनता का भी प्रतीक है। जोविनम्र होता है, सो पाता है; इस उक्ति का अर्थ है कि सज्जन-शालीन कोसब लोग कुछ देना चाहते हैं, उद्दण्ड अहंकारी को नहीं।

हमारा अभ्यास देवत्व की ओर अग्रगमन का बने। देवत्व के नौस्रोत-स्वरूप यहां दर्शाये गये हैं। जहां ये शक्तियां समाज में दिखें, वहीझुकना कल्याणकारी है।


क्रिया और भावना- सभी लोग हाथ जोड़ें। जिस क्रम से कहाजाए उसी क्रम से देव शक्तियों का स्मरण करें। उन्हें नमन करें। वे हमेंसही मार्ग प्रदान करती रहें। प्रगति के लिए सहयोग प्रदान करती रहें।


(हिन्दी के वचन सुनें, संस्कृत सूत्र दुहरायें।)


जो सदा देती रहती हैं और देते रहने की प्रेरणा प्रदान करती हैं,उन देव शक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ देवशक्तिभ्यो नमः ।

2- जिन्होंने अपने आपको दिव्य बनाया और हमारे लिए दिव्यवातावरण बनाने हेतु स्वयं को खपाया, उन देवपुरुषों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ देवपुरुषेभ्यो नमः ।

3- जिन्होंने अपने आप को जीता और सत्प्रवृत्ति-सम्वर्धन मेंप्राणपण से संलग्न रहे, उन महाप्राणों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो- महाप्राणेभ्यो नमः ।

4- जो मूढ़ता और अनीति से जूझने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं,उन महारुद्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ महारुद्रेभ्यो नमः ।

5- अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले आदित्यों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ आदित्येभ्यो नमः ।

6- ममता की मूर्ति, शुभ-सद्भाव जगाने वाली, कुपुत्रों को सुधारनेवाली, सुपुत्रों को दुलारने वाली समस्त मातृशक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ मातृशक्तिभ्यो नमः ।

7- जिनमें सुसंस्कारों की सुवास भरी है, जो हर सम्पर्क में आनेवाले को पुण्य-प्रेरणा करते हैं, उन दिव्य क्षेत्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यः/ तीर्थेभ्यो नमः ।

8- जिसके अभाव में मनुष्य अज्ञान-अंधकार में ही भटकता रहजाता है, उस महाविद्या को नमन।

ॐ महाविद्यायै नमः ।

9- जिसे दुर्बलता से लगाव नहीं- जो उद्दण्डता को सहन नहींकरता, उस महाकाल को नमन।

ॐ एतत्कर्मप्रधान/श्रीमन्महाकालाय नमः

👉🏽 *गुरुवंदना*
 क्रिया और भावना – प्रतिनिधि देव मंच पर गुरुदेव के प्रतीक कापूजन करें। सभी लोग हाथ जोड़कर मन्त्रोच्चारण के साथ भावना करें- हेपरम कृपालु! हमें मार्गदर्शन और सहयोग देने के लिए अपनी उपस्थितिका बोध बराबर कराते रहें—हमें भटकने न दें, जगाते रहें—बढ़ाते रहें।

ॐ अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्

तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

यथा सूर्यस्य कान्तिस्तु, श्रीरामे विद्यते हि या ।

सर्वशक्तिस्वरूपायै, दैव्यै भगवत्यै नमः ।।

ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि

👉🏽 *पांच रंग के कागज़ में पंच तत्वों के प्रतीक बना लें, उनका पूजन करवा दें*

क्रिया और भावना- देवमंच के पास नियुक्त प्रतिनिधि गन्धाक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य मन्त्रोच्चार के साथ अर्पित करें। सभी लोग हाथ जोड़कर प्रार्थना सुनें-भावनाएं अर्पित करें। - हे देव! गन्ध–अक्षत के रूप में हमारे पुण्यकर्मों, हमारी अटूट श्रद्धा-निष्ठा को स्वीकारें। - हे देव! पुष्प के रूप में हमारे अन्तः का उल्लास आपको अर्पित है। - हे देव! धूप-दीप के रूप में हमारी प्रतिभा और योग्यता को स्वीकार करें। - हे देव! नैवेद्य के रूप में हमारे साधन-सम्पदा का एक अंश समर्पित है। इसे स्वीकार करें।

मन्त्र दुहरवायें— *ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः/गन्धाक्षतं/पुष्पाणि/धूपं/दीपं/नैवेद्यं समर्पयामि ।। ततो नमसकारम् करोमि ।*
अब दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें
*ॐनमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटी युगधारिणे नमः ।।*

👉🏽  *जिन बच्चों का जन्मदिन है केवल उनसे घी के दिये अगरबत्ती या मोमबत्ती की सहायता से जलवाए*

क्रिया और भावना- मंत्रोच्चार के साथ दीपक-अगरबत्ती जलायें। मंच पर स्वयं सेवक अगरबत्तियों को क्रमशः जलायें, ताकि अंत तक क्रम चलता रहे। यदि याजकों के पास थाली में दीपक-अगरबत्ती हैं, तो वे भी दीपक और अगरबत्ती जलायें। दीपक में घृत डालते रहने का क्रम बनाये रखें। अग्नि स्थापना के समय भावना करें- - हे अग्नि देव! हमें ऊपर उठाना सिखायें। - हमें प्रकाश से भर दें। - हमें शक्ति सम्पन्न बनायें। - हमें आपके अनुरूप बनने तथा दूसरों को अपने अनुरूप बनाने की क्षमता प्रदान करें। - हम भी अपनी तरह सुगन्धि और प्रकाश बांटने लगें।

*ॐ अग्ने नय सुपथा राये, अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् । युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो, भूयिष्ठां ते नमऽउक्तिं विधेम।*

*7 गायत्री मंत्र आहुति* और *3 महामृत्युंजय*, *एक गणेश और एक सरस्वती* की आहुति मन्त्र बुलवाएं।

👉🏽 पूर्णाहूति मन्त्र

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा ।
। ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।।
 (अक्षत-पुष्प दीपयज्ञ की थाली में छोड़ दें अथवा स्वयंसेवक उन्हें एकत्रित करके देवमंच पर अर्पित करें
👉🏽
*इसके बाद 18 सत्संकल्प दुहरवाये*

*बच्चे टीचर के चरण स्पर्श करें*
👉🏽 *पुष्पवर्षा*
टीचर और अन्य बच्चे जन्मदिन वाले बच्चों पर निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए पुष्प वर्षा करें। और  बाद में बच्चों का मुंह मीठा प्रसाद से करें।

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज। मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि:।।*

(अन्त में बच्चों की फोटो लगी और 18 सत्संकल्पो के साथ स्कूल की शुभकामनक कार्ड बच्चे को दे दें)

और निम्नलिखित जयकारा भी लगवा दें:-

भारतीय संस्कृति की- जय।
भारत माता की- जय।
गायत्री माता की - जय।
एक बनेंगे-नेक बनेंगे।
हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। हम बदलेंगे-युग बदलेगा।
ज्ञान-यज्ञ की ज्योति जलाने- हम घर-घर में जायेंगे।
नया समाज बनायेंगे- नया जमाना लायेंगे।
जन्म जहां पर-हमने पाया अन्न जहां का-हमने खाया।
वस्त्र जहां के-हमने पहने ज्ञान जहां से-हमने पाया।
वह है प्यारा- देश हमारा।
देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे-हम करेंगे।
मानव मात्र-एक समान नर और नारी-एक समान।
जाति वंश सब-एक समान                             
धर्म की-जय हो।
 धर्म का-नाश हो।
 प्राणियों में-सद्भावना हो
 विश्व का-कल्याण हो।
 सावधान! युग बदल रहा है
।सावधान। नया युग आ रहा है।
 हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो।
हमारा युग निर्माण सत्संकल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो।
इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य।
 वन्दे- वेद मातरम्।

   |     |*स्कूल के लिए जन्मदिन मनाने की योजना प्रारूप एवं कार्यक्रम*

*पूर्व व्यवस्था* - महीने में एक दिन उस स्कूल उस महीने जन्मदिन जिन बच्चों का है उनका सामूहिक जन्मदिन मनाना है।

*जन्मदिन कार्ड* - जन्मदिन के दिन उन बच्चों की पासपोर्ट साईज़ ले लें। जन्मदिन कार्ड में एक तरफ़ शीर्षक - *नवयुग का संविधान एवं सत्संकल्प* - उज्ज्वल भविष्य के लिए। उसी कार्ड में बच्चे की फ़ोटो वाली जगह में फ़ोटो लगा दें। साथ ही समस्त स्कूल *बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करता है* ये भी लिखा होगा। ये युगपद्धति के पीछे छपे 18 सत्संकल्प होंगे जिन्हें जन्मदिन के दिन भी बच्चे दोहराएंगे साथ ही यही जन्मदिन कार्ड में भी प्रिंट होगा। जिसे बच्चे घर ले जाएंगे और टीचर इसे रोज सपरिवार पढ़ने हेतु प्रेरित करेगी।

*जन्मदिन कार्ड के पीछे निम्नलिखित जन्मदिन मनाने की संक्षिप्त विधि होगी*

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*पवित्रीकरण* - *प्रेरणा*– यज्ञ शुभकार्य है, देवकार्य है। यज्ञ के प्रयोग में आने वाली हर वस्तु शुद्ध और पवित्र रखी जाती है। देवत्व से जुड़ने की पहली शर्त पवित्रता ही है। हम देवत्व से जुड़ने के लिए, देव कार्य करने योग्य बनने के लिए मंत्रों और प्रार्थना द्वारा, भावना, विचारणा एवं आचरण को पवित्र बनाने की कामना करते हैं।

*क्रिया और भावना* – सभी लोग कमर सीधी करके बैठें। दोनों हाथ गोद में रखें। आंखें बन्द करके ध्यान मुद्रा में बैठें। - अब मंत्रों सहित जल सिंचन होगा। भावना करें कि हम पर पवित्रता की वर्षा हो रही है। - हमारा शरीर धुल रहा है – आचरण पवित्र हो रहा है। - हमारा मन धुल रहा है  विचार पवित्र हो रहे हैं।  हमारा हृदय धुर रहा है – भावनाएं पवित्र हो रही हैं।

सिंचन करने वालों को संकेत करें तथा सिंचन मंत्र सूत्र खंड-खंड में दुहरवायें, विराम के स्थानों पर चिह्न (/) लगे हैं।

 *ॐ पवित्रता मम/मनःकाय/अन्तःकरणेषु/संविशेत्।*


सब पर सिचंन होने तक पुनः पुनः उक्त वाक्य दुहरायें


भावना करें कि हमें पवित्रता का अनुदान मिला, हम अंदर-बाहर से पवित्र हो गये। हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें,

पवित्रता हमें सन्मार्ग पर चलाये
*ॐ पवित्रता नः/सन्मार्गं नयेत् । *

 पवित्रता हमें महान् बनाये
*ॐ पवित्रता नः/महत्तं प्रयच्छतु ।*

पवित्रता हमें शान्ति प्रदान करे
*ॐ पवित्रता नः/शान्तिं प्रददातु ।*

*क्रिया और भावना*-  कमर सीधी करके ध्यानमुद्रा में बैठें। ध्यान करें कि हमारे चारों ओर श्वेत बादलों की तरह दिव्य प्राण समुद्र लहरा रहा है। हम प्रार्थना करें क हे विश्व के स्वामी- हे महाप्राण, हमें बुराइयों से छ़ड़ाइये, श्रेष्ठताओं से जोड़िये।

अधोलिखित मंत्र बोलने के बार प्राणायाम करने का निर्देश करें।

 *ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव, यद्भद्रं तन्नऽआसुव ।*

 *क्रिया* - धीरे-धीरे दोनों नथुनों से श्वास खींचें, थोड़ा रोकें, धीरे से छोड़ें, थोड़ी देर बाहर रोकें।

भाव निर्देश- प्राणायाम के साथ भावना करें- - हमारा रोम-रोम सविता का तेज सोख रहा है, हमारा शरीर प्राणवान् बन रहा है।  हमारा मन सविता का तेज सोख रहा है, हमारा मन तेजस्वी हो रहा है। हमारा हृदय सविता का तेज सोख रहा है, हमारा हृदय तेजोमय हो रहा है। हम बाहर-भीतर से तेजोमय हो गये हैं।

👉🏽 *अध्यापिका उन बच्चों को तिलक लगाएंगी जिनका जन्मदिन है। बाकी बच्चे एक दूसरे को लगाएंगे*

 प्रेरणा - तिलक श्रेष्ठ को किया जाता है। शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन विचारों से-मस्तिष्क से होता है। शरीर विचारों से चलने वाला यंत्र है। विचारों में श्रेष्ठता का-देवत्व का संचार होता रहे, तो सारे क्रिया-कलाप श्रेष्ठ होते हैं और मनुष्य गौरव प्राप्त करता है। मस्तिष्क को देवत्व का स्पर्श देने के लिए हम तिलक करते हैं।


क्रिया और भावना – रोली या चंदन, सभी याजक अपनी अनामिका उंगली में लें उसे सामने रखें तथा दृष्टि उसी पर टिकायें। प्रार्थना करें कि देव शक्तियां इस चन्दन-रोली के माध्यम से हमारे मस्तिष्क को सुसंस्कारित बना रही हैं। प्रार्थनाएं भावनापूर्वक सुनें, समझें और संस्कृत सूत्र दुहरायें-


-हमारा मस्तिष्क शान्त रहे

 ॐ मस्तिष्कं/शान्तं भूयात्


 इसमें अनुचित आवेश प्रवेश न करने पायें

*ॐ अनुचितः आवेशः/मा भूयात्।*


हमारा मस्तिष्क सदा ऊंचा रहे

 *ॐ शीर्षं/उन्नतं भूयात्।*


इसमें विवेक सदैव बना रहे

*ॐ विवेकः स्थिरीभूयात्*

👉🏽 *रक्षासूत्र विधान*
क्रिया और भावना- उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए महाकाल के साथ साझेदारी के लिए उपासना, साधना, आराधना, समयदान एवं अंशदान के सम्बन्ध में जो व्रत लिये हैं, उनका संकल्प ग्रहण करना है। साझेदारी के इच्छुक व्यक्ति संकल्प सूत्र-कलावा बायें हाथ में लें, दाहिने से ढंग लें।


                                                संकल्प करें

हम ईश्वर का अनुशासन स्वीकार करते हैं

*ॐ ईशानुशासनम्-स्वीकरोमि।*

मर्यादाओं का पालन करेंगे

*ॐ मर्यादां/चरिष्यामि।*

जो वर्जित हैं, वे आचरण नहीं करेंगे

*ॐ वर्जनीयं-नो चरिष्यामि।*

प्रेरणा- नमन का अर्थ है—अभिवादन-प्रणाम। देव शक्तियों काअभिवादन अर्थात् उनका सम्मान करना। हमारे मन का झुकाव देवत्वकी ओर होना चाहिए। प्रणाम नम्रता-शालीनता का भी प्रतीक है। जोविनम्र होता है, सो पाता है; इस उक्ति का अर्थ है कि सज्जन-शालीन कोसब लोग कुछ देना चाहते हैं, उद्दण्ड अहंकारी को नहीं।

हमारा अभ्यास देवत्व की ओर अग्रगमन का बने। देवत्व के नौस्रोत-स्वरूप यहां दर्शाये गये हैं। जहां ये शक्तियां समाज में दिखें, वहीझुकना कल्याणकारी है।


क्रिया और भावना- सभी लोग हाथ जोड़ें। जिस क्रम से कहाजाए उसी क्रम से देव शक्तियों का स्मरण करें। उन्हें नमन करें। वे हमेंसही मार्ग प्रदान करती रहें। प्रगति के लिए सहयोग प्रदान करती रहें।


(हिन्दी के वचन सुनें, संस्कृत सूत्र दुहरायें।)


जो सदा देती रहती हैं और देते रहने की प्रेरणा प्रदान करती हैं,उन देव शक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ देवशक्तिभ्यो नमः ।

2- जिन्होंने अपने आपको दिव्य बनाया और हमारे लिए दिव्यवातावरण बनाने हेतु स्वयं को खपाया, उन देवपुरुषों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ देवपुरुषेभ्यो नमः ।

3- जिन्होंने अपने आप को जीता और सत्प्रवृत्ति-सम्वर्धन मेंप्राणपण से संलग्न रहे, उन महाप्राणों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो- महाप्राणेभ्यो नमः ।

4- जो मूढ़ता और अनीति से जूझने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं,उन महारुद्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ महारुद्रेभ्यो नमः ।

5- अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले आदित्यों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ आदित्येभ्यो नमः ।

6- ममता की मूर्ति, शुभ-सद्भाव जगाने वाली, कुपुत्रों को सुधारनेवाली, सुपुत्रों को दुलारने वाली समस्त मातृशक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ मातृशक्तिभ्यो नमः ।

7- जिनमें सुसंस्कारों की सुवास भरी है, जो हर सम्पर्क में आनेवाले को पुण्य-प्रेरणा करते हैं, उन दिव्य क्षेत्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यः/ तीर्थेभ्यो नमः ।

8- जिसके अभाव में मनुष्य अज्ञान-अंधकार में ही भटकता रहजाता है, उस महाविद्या को नमन।

ॐ महाविद्यायै नमः ।

9- जिसे दुर्बलता से लगाव नहीं- जो उद्दण्डता को सहन नहींकरता, उस महाकाल को नमन।

ॐ एतत्कर्मप्रधान/श्रीमन्महाकालाय नमः

👉🏽 *गुरुवंदना*
 क्रिया और भावना – प्रतिनिधि देव मंच पर गुरुदेव के प्रतीक कापूजन करें। सभी लोग हाथ जोड़कर मन्त्रोच्चारण के साथ भावना करें- हेपरम कृपालु! हमें मार्गदर्शन और सहयोग देने के लिए अपनी उपस्थितिका बोध बराबर कराते रहें—हमें भटकने न दें, जगाते रहें—बढ़ाते रहें।

ॐ अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्

तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

यथा सूर्यस्य कान्तिस्तु, श्रीरामे विद्यते हि या ।

सर्वशक्तिस्वरूपायै, दैव्यै भगवत्यै नमः ।।

ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि

👉🏽 *पांच रंग के कागज़ में पंच तत्वों के प्रतीक बना लें, उनका पूजन करवा दें*

क्रिया और भावना- देवमंच के पास नियुक्त प्रतिनिधि गन्धाक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य मन्त्रोच्चार के साथ अर्पित करें। सभी लोग हाथ जोड़कर प्रार्थना सुनें-भावनाएं अर्पित करें। - हे देव! गन्ध–अक्षत के रूप में हमारे पुण्यकर्मों, हमारी अटूट श्रद्धा-निष्ठा को स्वीकारें। - हे देव! पुष्प के रूप में हमारे अन्तः का उल्लास आपको अर्पित है। - हे देव! धूप-दीप के रूप में हमारी प्रतिभा और योग्यता को स्वीकार करें। - हे देव! नैवेद्य के रूप में हमारे साधन-सम्पदा का एक अंश समर्पित है। इसे स्वीकार करें।

मन्त्र दुहरवायें— *ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः/गन्धाक्षतं/पुष्पाणि/धूपं/दीपं/नैवेद्यं समर्पयामि ।। ततो नमसकारम् करोमि ।*
अब दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें
*ॐनमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटी युगधारिणे नमः ।।*

👉🏽  *जिन बच्चों का जन्मदिन है केवल उनसे घी के दिये अगरबत्ती या मोमबत्ती की सहायता से जलवाए*

क्रिया और भावना- मंत्रोच्चार के साथ दीपक-अगरबत्ती जलायें। मंच पर स्वयं सेवक अगरबत्तियों को क्रमशः जलायें, ताकि अंत तक क्रम चलता रहे। यदि याजकों के पास थाली में दीपक-अगरबत्ती हैं, तो वे भी दीपक और अगरबत्ती जलायें। दीपक में घृत डालते रहने का क्रम बनाये रखें। अग्नि स्थापना के समय भावना करें- - हे अग्नि देव! हमें ऊपर उठाना सिखायें। - हमें प्रकाश से भर दें। - हमें शक्ति सम्पन्न बनायें। - हमें आपके अनुरूप बनने तथा दूसरों को अपने अनुरूप बनाने की क्षमता प्रदान करें। - हम भी अपनी तरह सुगन्धि और प्रकाश बांटने लगें।

*ॐ अग्ने नय सुपथा राये, अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् । युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो, भूयिष्ठां ते नमऽउक्तिं विधेम।*

*7 गायत्री मंत्र आहुति* और *3 महामृत्युंजय*, *एक गणेश और एक सरस्वती* की आहुति मन्त्र बुलवाएं।

👉🏽 पूर्णाहूति मन्त्र

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा ।
। ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।।
 (अक्षत-पुष्प दीपयज्ञ की थाली में छोड़ दें अथवा स्वयंसेवक उन्हें एकत्रित करके देवमंच पर अर्पित करें
👉🏽
*इसके बाद 18 सत्संकल्प दुहरवाये*

*बच्चे टीचर के चरण स्पर्श करें*
👉🏽 *पुष्पवर्षा*
टीचर और अन्य बच्चे जन्मदिन वाले बच्चों पर निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए पुष्प वर्षा करें। और  बाद में बच्चों का मुंह मीठा प्रसाद से करें।

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज। मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि:।।*

(अन्त में बच्चों की फोटो लगी और 18 सत्संकल्पो के साथ स्कूल की शुभकामनक कार्ड बच्चे को दे दें)

आरती एवं  शांतिपाठ

और निम्नलिखित जयकारा भी लगवा दें:-

भारतीय संस्कृति की- जय।
भारत माता की- जय।
गायत्री माता की - जय।
एक बनेंगे-नेक बनेंगे।
हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। हम बदलेंगे-युग बदलेगा।
ज्ञान-यज्ञ की ज्योति जलाने- हम घर-घर में जायेंगे।
नया समाज बनायेंगे- नया जमाना लायेंगे।
जन्म जहां पर-हमने पाया अन्न जहां का-हमने खाया।
वस्त्र जहां के-हमने पहने ज्ञान जहां से-हमने पाया।
वह है प्यारा- देश हमारा।
देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे-हम करेंगे।
मानव मात्र-एक समान नर और नारी-एक समान।
जाति वंश सब-एक समान                             
धर्म की-जय हो।
 धर्म का-नाश हो।
 प्राणियों में-सद्भावना हो
 विश्व का-कल्याण हो।
 सावधान! युग बदल रहा है
।सावधान। नया युग आ रहा है।
 हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो।
हमारा युग निर्माण सत्संकल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो।
इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भवि*स्कूल के लिए जन्मदिन मनाने की योजना प्रारूप एवं कार्यक्रम*

*पूर्व व्यवस्था* - महीने में एक दिन उस स्कूल उस महीने जन्मदिन जिन बच्चों का है उनका सामूहिक जन्मदिन मनाना है।

*जन्मदिन कार्ड* - जन्मदिन के दिन उन बच्चों की पासपोर्ट साईज़ ले लें। जन्मदिन कार्ड में एक तरफ़ शीर्षक - *नवयुग का संविधान एवं सत्संकल्प* - उज्ज्वल भविष्य के लिए। उसी कार्ड में बच्चे की फ़ोटो वाली जगह में फ़ोटो लगा दें। साथ ही समस्त स्कूल *बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करता है* ये भी लिखा होगा। ये युगपद्धति के पीछे छपे 18 सत्संकल्प होंगे जिन्हें जन्मदिन के दिन भी बच्चे दोहराएंगे साथ ही यही जन्मदिन कार्ड में भी प्रिंट होगा। जिसे बच्चे घर ले जाएंगे और टीचर इसे रोज सपरिवार पढ़ने हेतु प्रेरित करेगी।

*जन्मदिन कार्ड के पीछे निम्नलिखित जन्मदिन मनाने की संक्षिप्त विधि होगी*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*पवित्रीकरण* - *प्रेरणा*– यज्ञ शुभकार्य है, देवकार्य है। यज्ञ के प्रयोग में आने वाली हर वस्तु शुद्ध और पवित्र रखी जाती है। देवत्व से जुड़ने की पहली शर्त पवित्रता ही है। हम देवत्व से जुड़ने के लिए, देव कार्य करने योग्य बनने के लिए मंत्रों और प्रार्थना द्वारा, भावना, विचारणा एवं आचरण को पवित्र बनाने की कामना करते हैं।

*क्रिया और भावना* – सभी लोग कमर सीधी करके बैठें। दोनों हाथ गोद में रखें। आंखें बन्द करके ध्यान मुद्रा में बैठें। - अब मंत्रों सहित जल सिंचन होगा। भावना करें कि हम पर पवित्रता की वर्षा हो रही है। - हमारा शरीर धुल रहा है – आचरण पवित्र हो रहा है। - हमारा मन धुल रहा है  विचार पवित्र हो रहे हैं।  हमारा हृदय धुर रहा है – भावनाएं पवित्र हो रही हैं।

सिंचन करने वालों को संकेत करें तथा सिंचन मंत्र सूत्र खंड-खंड में दुहरवायें, विराम के स्थानों पर चिह्न (/) लगे हैं।

 *ॐ पवित्रता मम/मनःकाय/अन्तःकरणेषु/संविशेत्।*


सब पर सिचंन होने तक पुनः पुनः उक्त वाक्य दुहरायें


भावना करें कि हमें पवित्रता का अनुदान मिला, हम अंदर-बाहर से पवित्र हो गये। हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें,

पवित्रता हमें सन्मार्ग पर चलाये
*ॐ पवित्रता नः/सन्मार्गं नयेत् । *

 पवित्रता हमें महान् बनाये
*ॐ पवित्रता नः/महत्तं प्रयच्छतु ।*

पवित्रता हमें शान्ति प्रदान करे
*ॐ पवित्रता नः/शान्तिं प्रददातु ।*

*क्रिया और भावना*-  कमर सीधी करके ध्यानमुद्रा में बैठें। ध्यान करें कि हमारे चारों ओर श्वेत बादलों की तरह दिव्य प्राण समुद्र लहरा रहा है। हम प्रार्थना करें क हे विश्व के स्वामी- हे महाप्राण, हमें बुराइयों से छ़ड़ाइये, श्रेष्ठताओं से जोड़िये।

अधोलिखित मंत्र बोलने के बार प्राणायाम करने का निर्देश करें।

 *ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव, यद्भद्रं तन्नऽआसुव ।*

 *क्रिया* - धीरे-धीरे दोनों नथुनों से श्वास खींचें, थोड़ा रोकें, धीरे से छोड़ें, थोड़ी देर बाहर रोकें।

भाव निर्देश- प्राणायाम के साथ भावना करें- - हमारा रोम-रोम सविता का तेज सोख रहा है, हमारा शरीर प्राणवान् बन रहा है।  हमारा मन सविता का तेज सोख रहा है, हमारा मन तेजस्वी हो रहा है। हमारा हृदय सविता का तेज सोख रहा है, हमारा हृदय तेजोमय हो रहा है। हम बाहर-भीतर से तेजोमय हो गये हैं।

👉🏽 *अध्यापिका उन बच्चों को तिलक लगाएंगी जिनका जन्मदिन है। बाकी बच्चे एक दूसरे को लगाएंगे*

 प्रेरणा - तिलक श्रेष्ठ को किया जाता है। शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन विचारों से-मस्तिष्क से होता है। शरीर विचारों से चलने वाला यंत्र है। विचारों में श्रेष्ठता का-देवत्व का संचार होता रहे, तो सारे क्रिया-कलाप श्रेष्ठ होते हैं और मनुष्य गौरव प्राप्त करता है। मस्तिष्क को देवत्व का स्पर्श देने के लिए हम तिलक करते हैं।


क्रिया और भावना – रोली या चंदन, सभी याजक अपनी अनामिका उंगली में लें उसे सामने रखें तथा दृष्टि उसी पर टिकायें। प्रार्थना करें कि देव शक्तियां इस चन्दन-रोली के माध्यम से हमारे मस्तिष्क को सुसंस्कारित बना रही हैं। प्रार्थनाएं भावनापूर्वक सुनें, समझें और संस्कृत सूत्र दुहरायें-


-हमारा मस्तिष्क शान्त रहे

 ॐ मस्तिष्कं/शान्तं भूयात्


 इसमें अनुचित आवेश प्रवेश न करने पायें

*ॐ अनुचितः आवेशः/मा भूयात्।*


हमारा मस्तिष्क सदा ऊंचा रहे

 *ॐ शीर्षं/उन्नतं भूयात्।*


इसमें विवेक सदैव बना रहे

*ॐ विवेकः स्थिरीभूयात्*

👉🏽 *रक्षासूत्र विधान*
क्रिया और भावना- उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए महाकाल के साथ साझेदारी के लिए उपासना, साधना, आराधना, समयदान एवं अंशदान के सम्बन्ध में जो व्रत लिये हैं, उनका संकल्प ग्रहण करना है। साझेदारी के इच्छुक व्यक्ति संकल्प सूत्र-कलावा बायें हाथ में लें, दाहिने से ढंग लें।


                                                संकल्प करें

हम ईश्वर का अनुशासन स्वीकार करते हैं

*ॐ ईशानुशासनम्-स्वीकरोमि।*

मर्यादाओं का पालन करेंगे

*ॐ मर्यादां/चरिष्यामि।*

जो वर्जित हैं, वे आचरण नहीं करेंगे

*ॐ वर्जनीयं-नो चरिष्यामि।*

प्रेरणा- नमन का अर्थ है—अभिवादन-प्रणाम। देव शक्तियों काअभिवादन अर्थात् उनका सम्मान करना। हमारे मन का झुकाव देवत्वकी ओर होना चाहिए। प्रणाम नम्रता-शालीनता का भी प्रतीक है। जोविनम्र होता है, सो पाता है; इस उक्ति का अर्थ है कि सज्जन-शालीन कोसब लोग कुछ देना चाहते हैं, उद्दण्ड अहंकारी को नहीं।

हमारा अभ्यास देवत्व की ओर अग्रगमन का बने। देवत्व के नौस्रोत-स्वरूप यहां दर्शाये गये हैं। जहां ये शक्तियां समाज में दिखें, वहीझुकना कल्याणकारी है।


क्रिया और भावना- सभी लोग हाथ जोड़ें। जिस क्रम से कहाजाए उसी क्रम से देव शक्तियों का स्मरण करें। उन्हें नमन करें। वे हमेंसही मार्ग प्रदान करती रहें। प्रगति के लिए सहयोग प्रदान करती रहें।


(हिन्दी के वचन सुनें, संस्कृत सूत्र दुहरायें।)


जो सदा देती रहती हैं और देते रहने की प्रेरणा प्रदान करती हैं,उन देव शक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ देवशक्तिभ्यो नमः ।

2- जिन्होंने अपने आपको दिव्य बनाया और हमारे लिए दिव्यवातावरण बनाने हेतु स्वयं को खपाया, उन देवपुरुषों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ देवपुरुषेभ्यो नमः ।

3- जिन्होंने अपने आप को जीता और सत्प्रवृत्ति-सम्वर्धन मेंप्राणपण से संलग्न रहे, उन महाप्राणों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो- महाप्राणेभ्यो नमः ।

4- जो मूढ़ता और अनीति से जूझने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं,उन महारुद्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ महारुद्रेभ्यो नमः ।

5- अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले आदित्यों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ आदित्येभ्यो नमः ।

6- ममता की मूर्ति, शुभ-सद्भाव जगाने वाली, कुपुत्रों को सुधारनेवाली, सुपुत्रों को दुलारने वाली समस्त मातृशक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ मातृशक्तिभ्यो नमः ।

7- जिनमें सुसंस्कारों की सुवास भरी है, जो हर सम्पर्क में आनेवाले को पुण्य-प्रेरणा करते हैं, उन दिव्य क्षेत्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यः/ तीर्थेभ्यो नमः ।

8- जिसके अभाव में मनुष्य अज्ञान-अंधकार में ही भटकता रहजाता है, उस महाविद्या को नमन।

ॐ महाविद्यायै नमः ।

9- जिसे दुर्बलता से लगाव नहीं- जो उद्दण्डता को सहन नहींकरता, उस महाकाल को नमन।

ॐ एतत्कर्मप्रधान/श्रीमन्महाकालाय नमः

👉🏽 *गुरुवंदना*
 क्रिया और भावना – प्रतिनिधि देव मंच पर गुरुदेव के प्रतीक कापूजन करें। सभी लोग हाथ जोड़कर मन्त्रोच्चारण के साथ भावना करें- हेपरम कृपालु! हमें मार्गदर्शन और सहयोग देने के लिए अपनी उपस्थितिका बोध बराबर कराते रहें—हमें भटकने न दें, जगाते रहें—बढ़ाते रहें।

ॐ अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्

तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

यथा सूर्यस्य कान्तिस्तु, श्रीरामे विद्यते हि या ।

सर्वशक्तिस्वरूपायै, दैव्यै भगवत्यै नमः ।।

ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि

👉🏽 *पांच रंग के कागज़ में पंच तत्वों के प्रतीक बना लें, उनका पूजन करवा दें*

क्रिया और भावना- देवमंच के पास नियुक्त प्रतिनिधि गन्धाक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य मन्त्रोच्चार के साथ अर्पित करें। सभी लोग हाथ जोड़कर प्रार्थना सुनें-भावनाएं अर्पित करें। - हे देव! गन्ध–अक्षत के रूप में हमारे पुण्यकर्मों, हमारी अटूट श्रद्धा-निष्ठा को स्वीकारें। - हे देव! पुष्प के रूप में हमारे अन्तः का उल्लास आपको अर्पित है। - हे देव! धूप-दीप के रूप में हमारी प्रतिभा और योग्यता को स्वीकार करें। - हे देव! नैवेद्य के रूप में हमारे साधन-सम्पदा का एक अंश समर्पित है। इसे स्वीकार करें।

मन्त्र दुहरवायें— *ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः/गन्धाक्षतं/पुष्पाणि/धूपं/दीपं/नैवेद्यं समर्पयामि ।। ततो नमसकारम् करोमि ।*
अब दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें
*ॐनमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटी युगधारिणे नमः ।।*

👉🏽  *जिन बच्चों का जन्मदिन है केवल उनसे घी के दिये अगरबत्ती या मोमबत्ती की सहायता से जलवाए*

क्रिया और भावना- मंत्रोच्चार के साथ दीपक-अगरबत्ती जलायें। मंच पर स्वयं सेवक अगरबत्तियों को क्रमशः जलायें, ताकि अंत तक क्रम चलता रहे। यदि याजकों के पास थाली में दीपक-अगरबत्ती हैं, तो वे भी दीपक और अगरबत्ती जलायें। दीपक में घृत डालते रहने का क्रम बनाये रखें। अग्नि स्थापना के समय भावना करें- - हे अग्नि देव! हमें ऊपर उठाना सिखायें। - हमें प्रकाश से भर दें। - हमें शक्ति सम्पन्न बनायें। - हमें आपके अनुरूप बनने तथा दूसरों को अपने अनुरूप बनाने की क्षमता प्रदान करें। - हम भी अपनी तरह सुगन्धि और प्रकाश बांटने लगें।

*ॐ अग्ने नय सुपथा राये, अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् । युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो, भूयिष्ठां ते नमऽउक्तिं विधेम।*

*7 गायत्री मंत्र आहुति* और *3 महामृत्युंजय*, *एक गणेश और एक सरस्वती* की आहुति मन्त्र बुलवाएं।

👉🏽 पूर्णाहूति मन्त्र

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा ।
। ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।।
 (अक्षत-पुष्प दीपयज्ञ की थाली में छोड़ दें अथवा स्वयंसेवक उन्हें एकत्रित करके देवमंच पर अर्पित करें
👉🏽
*इसके बाद 18 सत्संकल्प दुहरवाये*

*बच्चे टीचर के चरण स्पर्श करें*
👉🏽 *पुष्पवर्षा*
टीचर और अन्य बच्चे जन्मदिन वाले बच्चों पर निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए पुष्प वर्षा करें। और  बाद में बच्चों का मुंह मीठा प्रसाद से करें।

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज। मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि:।।*

(अन्त में बच्चों की फोटो लगी और 18 सत्संकल्पो के साथ स्कूल की शुभकामनक कार्ड बच्चे को दे दें)

और निम्नलिखित जयकारा भी लगवा दें:-

भारतीय संस्कृति की- जय।
भारत माता की- जय।
गायत्री माता की - जय।
एक बनेंगे-नेक बनेंगे।
हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। हम बदलेंगे-युग बदलेगा।
ज्ञान-यज्ञ की ज्योति जलाने- हम घर-घर में जायेंगे।
नया समाज बनायेंगे- नया जमाना लायेंगे।
जन्म जहां पर-हमने पाया अन्न जहां का-हमने खाया।
वस्त्र जहां के-हमने पहने ज्ञान जहां से-हमने पाया।
वह है प्यारा- देश हमारा।
देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे-हम करेंगे।
मानव मात्र-एक समान नर और नारी-एक समान।
जाति वंश सब-एक समान                             
धर्म की-जय हो।
 धर्म का-नाश हो।
 प्राणियों में-सद्भावना हो
 विश्व का-कल्याण हो।
 सावधान! युग बदल रहा है
।सावधान। नया युग आ रहा है।
 हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो।
हमारा युग निर्माण सत्संकल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो।
इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य।
 वन्दे- वेद मातरम्।

   |     |*स्कूल के लिए जन्मदिन मनाने की योजना प्रारूप एवं कार्यक्रम*

*पूर्व व्यवस्था* - महीने में एक दिन उस स्कूल उस महीने जन्मदिन जिन बच्चों का है उनका सामूहिक जन्मदिन मनाना है।

*जन्मदिन कार्ड* - जन्मदिन के दिन उन बच्चों की पासपोर्ट साईज़ ले लें। जन्मदिन कार्ड में एक तरफ़ शीर्षक - *नवयुग का संविधान एवं सत्संकल्प* - उज्ज्वल भविष्य के लिए। उसी कार्ड में बच्चे की फ़ोटो वाली जगह में फ़ोटो लगा दें। साथ ही समस्त स्कूल *बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करता है* ये भी लिखा होगा। ये युगपद्धति के पीछे छपे 18 सत्संकल्प होंगे जिन्हें जन्मदिन के दिन भी बच्चे दोहराएंगे साथ ही यही जन्मदिन कार्ड में भी प्रिंट होगा। जिसे बच्चे घर ले जाएंगे और टीचर इसे रोज सपरिवार पढ़ने हेतु प्रेरित करेगी।

*जन्मदिन कार्ड के पीछे निम्नलिखित जन्मदिन मनाने की संक्षिप्त विधि होगी*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*पवित्रीकरण* - *प्रेरणा*– यज्ञ शुभकार्य है, देवकार्य है। यज्ञ के प्रयोग में आने वाली हर वस्तु शुद्ध और पवित्र रखी जाती है। देवत्व से जुड़ने की पहली शर्त पवित्रता ही है। हम देवत्व से जुड़ने के लिए, देव कार्य करने योग्य बनने के लिए मंत्रों और प्रार्थना द्वारा, भावना, विचारणा एवं आचरण को पवित्र बनाने की कामना करते हैं।

*क्रिया और भावना* – सभी लोग कमर सीधी करके बैठें। दोनों हाथ गोद में रखें। आंखें बन्द करके ध्यान मुद्रा में बैठें। - अब मंत्रों सहित जल सिंचन होगा। भावना करें कि हम पर पवित्रता की वर्षा हो रही है। - हमारा शरीर धुल रहा है – आचरण पवित्र हो रहा है। - हमारा मन धुल रहा है  विचार पवित्र हो रहे हैं।  हमारा हृदय धुर रहा है – भावनाएं पवित्र हो रही हैं।

सिंचन करने वालों को संकेत करें तथा सिंचन मंत्र सूत्र खंड-खंड में दुहरवायें, विराम के स्थानों पर चिह्न (/) लगे हैं।

 *ॐ पवित्रता मम/मनःकाय/अन्तःकरणेषु/संविशेत्।*


सब पर सिचंन होने तक पुनः पुनः उक्त वाक्य दुहरायें


भावना करें कि हमें पवित्रता का अनुदान मिला, हम अंदर-बाहर से पवित्र हो गये। हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें,

पवित्रता हमें सन्मार्ग पर चलाये
*ॐ पवित्रता नः/सन्मार्गं नयेत् । *

 पवित्रता हमें महान् बनाये
*ॐ पवित्रता नः/महत्तं प्रयच्छतु ।*

पवित्रता हमें शान्ति प्रदान करे
*ॐ पवित्रता नः/शान्तिं प्रददातु ।*

*क्रिया और भावना*-  कमर सीधी करके ध्यानमुद्रा में बैठें। ध्यान करें कि हमारे चारों ओर श्वेत बादलों की तरह दिव्य प्राण समुद्र लहरा रहा है। हम प्रार्थना करें क हे विश्व के स्वामी- हे महाप्राण, हमें बुराइयों से छ़ड़ाइये, श्रेष्ठताओं से जोड़िये।

अधोलिखित मंत्र बोलने के बार प्राणायाम करने का निर्देश करें।

 *ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव, यद्भद्रं तन्नऽआसुव ।*

 *क्रिया* - धीरे-धीरे दोनों नथुनों से श्वास खींचें, थोड़ा रोकें, धीरे से छोड़ें, थोड़ी देर बाहर रोकें।

भाव निर्देश- प्राणायाम के साथ भावना करें- - हमारा रोम-रोम सविता का तेज सोख रहा है, हमारा शरीर प्राणवान् बन रहा है।  हमारा मन सविता का तेज सोख रहा है, हमारा मन तेजस्वी हो रहा है। हमारा हृदय सविता का तेज सोख रहा है, हमारा हृदय तेजोमय हो रहा है। हम बाहर-भीतर से तेजोमय हो गये हैं।

👉🏽 *अध्यापिका उन बच्चों को तिलक लगाएंगी जिनका जन्मदिन है। बाकी बच्चे एक दूसरे को लगाएंगे*

 प्रेरणा - तिलक श्रेष्ठ को किया जाता है। शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन विचारों से-मस्तिष्क से होता है। शरीर विचारों से चलने वाला यंत्र है। विचारों में श्रेष्ठता का-देवत्व का संचार होता रहे, तो सारे क्रिया-कलाप श्रेष्ठ होते हैं और मनुष्य गौरव प्राप्त करता है। मस्तिष्क को देवत्व का स्पर्श देने के लिए हम तिलक करते हैं।


क्रिया और भावना – रोली या चंदन, सभी याजक अपनी अनामिका उंगली में लें उसे सामने रखें तथा दृष्टि उसी पर टिकायें। प्रार्थना करें कि देव शक्तियां इस चन्दन-रोली के माध्यम से हमारे मस्तिष्क को सुसंस्कारित बना रही हैं। प्रार्थनाएं भावनापूर्वक सुनें, समझें और संस्कृत सूत्र दुहरायें-


-हमारा मस्तिष्क शान्त रहे

 ॐ मस्तिष्कं/शान्तं भूयात्


 इसमें अनुचित आवेश प्रवेश न करने पायें

*ॐ अनुचितः आवेशः/मा भूयात्।*


हमारा मस्तिष्क सदा ऊंचा रहे

 *ॐ शीर्षं/उन्नतं भूयात्।*


इसमें विवेक सदैव बना रहे

*ॐ विवेकः स्थिरीभूयात्*

👉🏽 *रक्षासूत्र विधान*
क्रिया और भावना- उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए महाकाल के साथ साझेदारी के लिए उपासना, साधना, आराधना, समयदान एवं अंशदान के सम्बन्ध में जो व्रत लिये हैं, उनका संकल्प ग्रहण करना है। साझेदारी के इच्छुक व्यक्ति संकल्प सूत्र-कलावा बायें हाथ में लें, दाहिने से ढंग लें।


                                                संकल्प करें

हम ईश्वर का अनुशासन स्वीकार करते हैं

*ॐ ईशानुशासनम्-स्वीकरोमि।*

मर्यादाओं का पालन करेंगे

*ॐ मर्यादां/चरिष्यामि।*

जो वर्जित हैं, वे आचरण नहीं करेंगे

*ॐ वर्जनीयं-नो चरिष्यामि।*

प्रेरणा- नमन का अर्थ है—अभिवादन-प्रणाम। देव शक्तियों काअभिवादन अर्थात् उनका सम्मान करना। हमारे मन का झुकाव देवत्वकी ओर होना चाहिए। प्रणाम नम्रता-शालीनता का भी प्रतीक है। जोविनम्र होता है, सो पाता है; इस उक्ति का अर्थ है कि सज्जन-शालीन कोसब लोग कुछ देना चाहते हैं, उद्दण्ड अहंकारी को नहीं।

हमारा अभ्यास देवत्व की ओर अग्रगमन का बने। देवत्व के नौस्रोत-स्वरूप यहां दर्शाये गये हैं। जहां ये शक्तियां समाज में दिखें, वहीझुकना कल्याणकारी है।


क्रिया और भावना- सभी लोग हाथ जोड़ें। जिस क्रम से कहाजाए उसी क्रम से देव शक्तियों का स्मरण करें। उन्हें नमन करें। वे हमेंसही मार्ग प्रदान करती रहें। प्रगति के लिए सहयोग प्रदान करती रहें।


(हिन्दी के वचन सुनें, संस्कृत सूत्र दुहरायें।)


जो सदा देती रहती हैं और देते रहने की प्रेरणा प्रदान करती हैं,उन देव शक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ देवशक्तिभ्यो नमः ।

2- जिन्होंने अपने आपको दिव्य बनाया और हमारे लिए दिव्यवातावरण बनाने हेतु स्वयं को खपाया, उन देवपुरुषों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ देवपुरुषेभ्यो नमः ।

3- जिन्होंने अपने आप को जीता और सत्प्रवृत्ति-सम्वर्धन मेंप्राणपण से संलग्न रहे, उन महाप्राणों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो- महाप्राणेभ्यो नमः ।

4- जो मूढ़ता और अनीति से जूझने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं,उन महारुद्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ महारुद्रेभ्यो नमः ।

5- अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले आदित्यों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ आदित्येभ्यो नमः ।

6- ममता की मूर्ति, शुभ-सद्भाव जगाने वाली, कुपुत्रों को सुधारनेवाली, सुपुत्रों को दुलारने वाली समस्त मातृशक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ मातृशक्तिभ्यो नमः ।

7- जिनमें सुसंस्कारों की सुवास भरी है, जो हर सम्पर्क में आनेवाले को पुण्य-प्रेरणा करते हैं, उन दिव्य क्षेत्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यः/ तीर्थेभ्यो नमः ।

8- जिसके अभाव में मनुष्य अज्ञान-अंधकार में ही भटकता रहजाता है, उस महाविद्या को नमन।

ॐ महाविद्यायै नमः ।

9- जिसे दुर्बलता से लगाव नहीं- जो उद्दण्डता को सहन नहींकरता, उस महाकाल को नमन।

ॐ एतत्कर्मप्रधान/श्रीमन्महाकालाय नमः

👉🏽 *गुरुवंदना*
 क्रिया और भावना – प्रतिनिधि देव मंच पर गुरुदेव के प्रतीक कापूजन करें। सभी लोग हाथ जोड़कर मन्त्रोच्चारण के साथ भावना करें- हेपरम कृपालु! हमें मार्गदर्शन और सहयोग देने के लिए अपनी उपस्थितिका बोध बराबर कराते रहें—हमें भटकने न दें, जगाते रहें—बढ़ाते रहें।

ॐ अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्

तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

यथा सूर्यस्य कान्तिस्तु, श्रीरामे विद्यते हि या ।

सर्वशक्तिस्वरूपायै, दैव्यै भगवत्यै नमः ।।

ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि

👉🏽 *पांच रंग के कागज़ में पंच तत्वों के प्रतीक बना लें, उनका पूजन करवा दें*

क्रिया और भावना- देवमंच के पास नियुक्त प्रतिनिधि गन्धाक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य मन्त्रोच्चार के साथ अर्पित करें। सभी लोग हाथ जोड़कर प्रार्थना सुनें-भावनाएं अर्पित करें। - हे देव! गन्ध–अक्षत के रूप में हमारे पुण्यकर्मों, हमारी अटूट श्रद्धा-निष्ठा को स्वीकारें। - हे देव! पुष्प के रूप में हमारे अन्तः का उल्लास आपको अर्पित है। - हे देव! धूप-दीप के रूप में हमारी प्रतिभा और योग्यता को स्वीकार करें। - हे देव! नैवेद्य के रूप में हमारे साधन-सम्पदा का एक अंश समर्पित है। इसे स्वीकार करें।

मन्त्र दुहरवायें— *ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः/गन्धाक्षतं/पुष्पाणि/धूपं/दीपं/नैवेद्यं समर्पयामि ।। ततो नमसकारम् करोमि ।*
अब दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें
*ॐनमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटी युगधारिणे नमः ।।*

👉🏽  *जिन बच्चों का जन्मदिन है केवल उनसे घी के दिये अगरबत्ती या मोमबत्ती की सहायता से जलवाए*

क्रिया और भावना- मंत्रोच्चार के साथ दीपक-अगरबत्ती जलायें। मंच पर स्वयं सेवक अगरबत्तियों को क्रमशः जलायें, ताकि अंत तक क्रम चलता रहे। यदि याजकों के पास थाली में दीपक-अगरबत्ती हैं, तो वे भी दीपक और अगरबत्ती जलायें। दीपक में घृत डालते रहने का क्रम बनाये रखें। अग्नि स्थापना के समय भावना करें- - हे अग्नि देव! हमें ऊपर उठाना सिखायें। - हमें प्रकाश से भर दें। - हमें शक्ति सम्पन्न बनायें। - हमें आपके अनुरूप बनने तथा दूसरों को अपने अनुरूप बनाने की क्षमता प्रदान करें। - हम भी अपनी तरह सुगन्धि और प्रकाश बांटने लगें।

*ॐ अग्ने नय सुपथा राये, अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् । युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो, भूयिष्ठां ते नमऽउक्तिं विधेम।*

*7 गायत्री मंत्र आहुति* और *3 महामृत्युंजय*, *एक गणेश और एक सरस्वती* की आहुति मन्त्र बुलवाएं।

👉🏽 पूर्णाहूति मन्त्र

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा ।
। ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।।
 (अक्षत-पुष्प दीपयज्ञ की थाली में छोड़ दें अथवा स्वयंसेवक उन्हें एकत्रित करके देवमंच पर अर्पित करें
👉🏽
*इसके बाद 18 सत्संकल्प दुहरवाये*

*बच्चे टीचर के चरण स्पर्श करें*
👉🏽 *पुष्पवर्षा*
टीचर और अन्य बच्चे जन्मदिन वाले बच्चों पर निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए पुष्प वर्षा करें। और  बाद में बच्चों का मुंह मीठा प्रसाद से करें।

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज। मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि:।।*

(अन्त में बच्चों की फोटो लगी और 18 सत्संकल्पो के साथ स्कूल की शुभकामनक कार्ड बच्चे को दे दें)

आरती एवं  शांतिपाठ

और निम्नलिखित जयकारा भी लगवा दें:-

भारतीय संस्कृति की- जय।
भारत माता की- जय।
गायत्री माता की - जय।
एक बनेंगे-नेक बनेंगे।
हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। हम बदलेंगे-युग बदलेगा।
ज्ञान-यज्ञ की ज्योति जलाने- हम घर-घर में जायेंगे।
नया समाज बनायेंगे- नया जमाना लायेंगे।
जन्म जहां पर-हमने पाया अन्न जहां का-हमने खाया।
वस्त्र जहां के-हमने पहने ज्ञान जहां से-हमने पाया।
वह है प्यारा- देश हमारा।
देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे-हम करेंगे।
मानव मात्र-एक समान नर और नारी-एक समान।
जाति वंश सब-एक समान                             
धर्म की-जय हो।
 धर्म का-नाश हो।
 प्राणियों में-सद्भावना हो
 विश्व का-कल्याण हो।
 सावधान! युग बदल रहा है
।सावधान। नया युग आ रहा है।
 हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो।
हमारा युग निर्माण सत्संकल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो।
इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य।
 वन्दे- वेद मातरम्।

   |     |ष्य।
 वन्दे- वेद मातरम्।

   |     |

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